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________________ 男 男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男 कृपणता= आत्मघाती प्रवृत्ति {754} हिंस्ते अदत्ता पुरुषं याचितां च न दित्सति। (अ.12/4/13) जो पुरुष माँगने पर भी जिस वस्तु को नहीं देना चाहता, वह (न दी हुई वस्तु) अन्ततः उस पुरुष का संहार कर देती है। {755} अहमस्मि प्रथमजा ऋतस्य, पूर्वं देवेभ्यो अमृतस्य नाम यो मा ददाति स इदेवमावद्, अहमनमनमदन्तमद्मि ॥ (सा.1/6/1/9/594) मैं अन्न देवता, अन्य देवताओं तथा सत्यस्वरूप अमृत ब्रह्म से भी पूर्व जन्मा हूँ। जो मुझ अन्न को अतिथि आदि को देता है, वही सब प्राणियों की रक्षा करता है। जो लोभी दूसरों को नहीं खिलाता है, मैं अन्न देवता उस कृपण को स्वयं खा जाता हूँ, नष्ट कर देता हूँ। 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听玩乐听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐 听听听听听垢听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听。 {756} यत्सर्वं नेति ब्रूयात् पापिकाऽस्य कीर्तिर्जायेत,सैनं तत्रैव हन्यात्। (ऐ. आ. 2/3/6) जो लोभी मनुष्य प्रार्थी लोगों को सदैव 'ना ना' करता है, तो जनसमाज में उस की है म अपकीर्ति (निन्दा) होती है और वह अपकीर्ति उस को घर में ही मार देती है, अर्थात् जीता हुआ भी वह कृपण निन्दित मृतक के समान हो जाता है। दान धर्म का स्वरूप {757} यद्यदिष्टतमं द्रव्यं न्यायेनैवागतं च यत। तत्तद् गुणवते देयमित्येतद् दानलक्षणम्॥ (म.पु. 145/51) जो-जो पदार्थ अपने को अभीष्ट हों तथा न्याय द्वारा उपार्जित किये गये हों, उन्हें ' म गुणी व्यक्ति को दे देना-यह 'दान' का लक्षण है। अहिंसा कोश/211]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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