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________________ % % % %% % %%%% %%%% % % %%%%%%%% % {725} अति यज्ञविदां लोकान् क्षमिणः प्राप्नुवन्ति च। अति ब्रह्मविदां लोकानति चापि तपस्विनाम्॥ (म.भा. 3/29/38) यज्ञवेत्ता, ब्रह्मवेत्ता और तपस्वी पुरुषों (को प्राप्त होने वाले लोकों) से भी ऊंचे लोकों को क्षमाशील मनुष्य प्राप्त करते हैं। ___{726} क्षमावतामयं लोकः परश्चैव क्षमावताम्। इह सम्मानमृच्छन्ति परत्र च शुभां गतिम्॥ (म.भा. 3/29/43) क्षमावानों के लिये ही यह लोक है। क्षमावानों के लिये ही परलोक है। क्षमाशील पुरुष इस जगत् में सम्मान और परलोक में भी उत्तम गति पाते हैं। ¥纸织$$¥¥¥¥¥¥¥¥巩巩巩巩巩听听听听听听垢垢玩垢听听听听听听垢垢垢圳垢玩垢军¥¥% {727} अन्ये वै यजुषां लोकाः कर्मिणामपरे तथा। क्षमावतां ब्रह्मलोके लोकाः परमपूजिताः॥ ___ (म.भा. 3/29/39) यज्ञ कर्मों का अनुष्ठान करने वाले पुरुषों के लोक दूसरे हैं एवं (सकामभाव से) वापी, कूप, तड़ाग और दान आदि कर्म करने वाले मनुष्यों के लोक दूसरे हैं। परंतु क्षमावान् के लोक (उनसे भी ऊपर) ब्रह्मलोक के अन्तर्गत हैं, जो अत्यन्त पूजित हैं। {728} प्रभाववानपि नरः तस्य लोकाः सनातनाः। क्रोधनस्त्वल्पविज्ञानः प्रेत्य चेह च नश्यति॥ (म.भा. 3/29/34) वह क्षमावान् मनुष्य ही प्रभावशाली कहा जाता है। उसी को सनातन लोक प्राप्त होते . की हैं। इसके विपरीत, क्रोधी मनुष्य अल्पज्ञ होता है। वह इस लोक और परलोक-दोनों में है (दुर्गति)विनाश को प्राप्त करता है। E EEEEEEEEEEEEEEEEEEEti अहिंसा कोश/203]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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