SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 219
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ %%%%%明與 %%%¥¥¥¥¥¥¥¥¥巩巩巩%%%%%% E%% 1666 अनाथं विक्लवं दीनं रोगार्तं वृद्धमेव च। नानुकम्पन्ति ये मूढास्ते वै निरयगामिनः॥ (प.पु. 2/96/18) जो लोग अनाथ, विकलांग, दीन, रोगी व वृद्ध व्यक्तियों पर अनुकम्पा नहीं करते, वे मूढ लोग नरक में जाते हैं। अहिंसकः शरणागत-रक्षक {667} अहिंसकस्ततः सम्यक् धृतिमान् नियतेन्द्रियः। शरण्यः सर्वभूतानां गतिमाजोत्यनुत्तमाम्॥ (ब्रह्म. 15/75) जो इन्द्रियजयी , धृतिसम्पन्न, पूर्णत:/सम्यक्तया अहिंसक, एवं समस्त प्राणियों के ई लिए शरण-स्थान होता है, वह उत्तम गति को प्राप्त करता है। हत्या के दोषीः शरणागत-रक्षा से विमुख ___668} धिक्तस्य जीवितं पुंसः शरणार्थिनमागतम्। यो नार्तमनुगृह्णाति वैरिपक्षमपि ध्रुवम्॥ (मा.पु. 128/25) शत्रुपक्षी मनुष्य के भी आर्त होकर शरण में आने पर जो मनुष्य उसकी रक्षा नहीं करता, उस मनुष्य के जीवन को धिक्कार है। {669} आशया ह्यभिपन्नानामकृत्वाऽश्रुप्रमार्जनम्। राजा वा राजपुत्रो वा भ्रूणहत्यैव युज्यते॥ (म.भा.12/360/9) जो आशा लगाकर अपनी शरण में आये हों, उनके आँसू जो नहीं पोंछता है, वह राजा हो या राजकुमार, उसे भ्रूणहत्या का पाप लगता है। 4CXEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEERS अहिंसा कोश/189]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy