SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ < % %%%%%%% %%%%%%%%%%%%% %% %%%%%%%% % ___{472} सदा यजति सत्रेण सदा दानं प्रयच्छति। सदा तपस्वी भवति मधुमांसविवर्जनात्॥ (म.भा. 13/115/15) मद्य और मांस का परित्याग करने से मनुष्य सदा यज्ञ करने वाला, सदा दान देने वाला और सदा तप करने वाला होता है। 4731 सर्वे वेदा न तत् कुर्युः सर्वे यज्ञाश्च भारत। यो भक्षयित्वा मांसानि पश्चादपि निवर्तते॥ (म.भा. 13/115/16) जो पहले मांस खाता रहा हो और पीछे उसका सर्वथा परित्याग कर दे, उसको जिस पुण्य की प्राप्ति होती है, उसे सम्पूर्ण वेद और यज्ञ भी नहीं प्राप्त करा सकते। 望听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 {474} सर्वान्कामानवाप्नोति हयमेधफलं तथा। गृहेऽपि निवसन्विप्रो मुनिर्मासविवर्जनात्॥ . ___ (या. स्मृ., 1/7/181) मांस का त्याग करने वाला ब्राह्मण सभी कामनाओं को प्राप्त करता है तथा म अश्वमेध यज्ञ के फल को प्राप्त करता है। ऐसा ब्राह्मण गृह में निवास करते हुये भी मुनि (तुल्य) है। {475} हिरण्यदानैर्गोदानैर्भूमिदानैश्च सर्वशः। मांसस्याभक्षणे धर्मो विशिष्ट इति नः श्रुतिः॥ (म.भा. 13/115/41) सुवर्णदान, गोदान और भूमिदान करने से जो धर्म प्राप्त होता है, मांस का भक्षण न करने से उसकी अपेक्षा भी अधिक विशिष्ट धर्म की प्राप्ति होती है। ऐसा हमारे सुनने में के आया है। 明明明明明明明明明明明明明明明勇勇勇%%%%%%%%%%%%%%%、 अहिंसा कोश/133]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy