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________________ %%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%% %%%%%%% {454} मधु मांसं च ये नित्यं वर्जयन्तीह मानवाः। जन्म प्रभृति मद्यं च दुर्गाण्यतितरन्ति ते॥ (वि. ध. पु. 2/122/23) जो मनुष्य जन्म से लेकर जीवन-पर्यन्त मधु, मांस व मद्य (आदि) का सेवन नहीं है # करते, वे दुर्गम संकटों को पार कर लेते हैं। 呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢 {455} यस्तु सर्वाणि मांसानि यावजीवं न भक्षयेत्। स स्वर्गे विपुलं स्थानं लभते नात्र संशयः॥ यत् तु वर्षशतं पूर्णं तप्यते परमं तपः। यच्चापि वर्जयेन्मांसं सममेतन वा समम्॥ न हि प्राणैः प्रियतमं लोके किंचन विद्यते। तस्मात् प्राणिदया कार्या यथाऽऽत्मनि तथा परे॥ ___ (म.भा.13/145/पृ. 5990) जो जीवन भर सब प्रकार के मांस त्याग देता है-कभी मांस नहीं खाता, वह स्वर्ग में विशाल स्थान पाता है, इसमें संशय नहीं है। मनुष्य जो पूरे सौ वर्षों तक उत्कृष्ट तपस्या करता है और वह जो सदा के लिये मांस का परित्याग कर देता है-उसके ये दोनों कर्म * समान हैं अथवा समान नहीं भी हो सकते हैं (मांस का त्याग तपस्या से भी उत्कृष्ट है)। 卐 संसार में प्राणों के समान प्रियतम दूसरी कोई वस्तु नहीं है। अतः समस्त प्राणियों पर दया है करनी चाहिये। जैसे अपने ऊपर दया अभीष्ट होती है, वैसे ही दूसरों पर भी होनी चाहिये। 號垢玩垢听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听垢听听听听 {456} अचिन्तितमनिर्दिष्टमसंकल्पितमेव च। रसगृद्ध्याऽभिभूता ये प्रशंसन्ति फलार्थिनः॥ ___ (म.भा. 13/114/16) जो मांस के रस/स्वाद के प्रति होने वाली आसक्ति के कारण उसी अभीष्ट फल (मांस-भक्षण) की अभिलाषा रखते हैं तथा उसके बारंबार गुण गाते हैं, उन्हें ऐसी अचिन्तित क दुर्गति प्राप्त होती है, जिसे वाणी द्वारा कहा नहीं जा सकता तथा जिसकी कल्पना भी नहीं की है ॐ जा सकती। % %%%%%%%%%%%%%% % % % %%% % %%%%%%%% वैदिक/बाह्मण संस्कृति खण्ड/128
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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