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________________ अहिंसकः मांस का क्रय-विक्रय आदि का भी त्यागी {427} यो हि खादति मांसानि प्राणिनां जीवितैषिणाम्। हतानां वा मृतानां वा यथा हन्ता तथैव सः॥ ___(म.भा. 13/115/37) जीवित रहने वाले प्राणी चाहे मारे गए हों या स्वयं मर गए हों, उनके मांस को जो व्यक्ति खाता है, वह, भले ही उन प्राणियों को नहीं भी मारता है, फिर भी, उन प्राणियों का ई हत्यारा ही है। {428} “听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐%%%%%%%%%听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 धनेन क्रयिको हन्ति खादकश्चोपभोगतः। घातको वधबन्धाभ्यामित्येष त्रिविधो वधः॥ (म.भा. 13/115/38; वि. ध. पु. 3/268/14-15 में आंशिक परिवर्तन के साथ) खरीदने वाला धनके द्वारा, खानेवाला उपभोग के द्वारा और घातक व्यक्ति वध एवं बन्धन के द्वारा पशुओं की हिंसा करता है। इस प्रकार यह तीन तरह से प्राणियों का वध होता है। 听听听听听听听听听听听听听听听乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听垢听听听听听听听听听听听听。 {429} अनुमन्ता विशसिता निहन्ता क्रयविक्रयी। संस्कर्ता चोपहर्ता च खादकश्चेति घातकाः॥ ___ (म.स्मृ. 5/51; वि. ध. पु. 3/252/23-24) (वध की)अनुमति देने वाला, शस्त्र से मरे हुए जीव के अङ्गों को टुकड़े-टुकड़े करने वाला, मारने वाला, खरीदने वाला, बेचने वाला, पकाने वाला, परोसने या लानेवाला और खाने वाला; (जीव-वध में) ये सभी घातक (हिंसक) माने गए हैं। {430} यदि चेत् खादको न स्यात् न भवेत् घातकस्तथा। एतास्मात्कारणात् निन्द्यो घातकादपि खादकः॥ (वि.ध. पु. 3/252/18) यदि (कोई मांस का) खाने वाला ही न हो तो (पशु आदि को)मारने वाला ही कोई नहीं होगा। इसलिए वध करने वाले से खाने वाला अधिक निन्दा का पात्र है। 听听听听听听听听玩玩乐乐玩玩乐乐玩玩乐乐玩玩玩乐乐玩玩乐乐贝贝听听听听张 अहिंसा कोश/121]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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