SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男 ___{405} परेषां च तथा दोषं न प्रशंसेद् विचक्षणः। विशेषेण तथा ब्रह्मन् श्रुतं दृष्टं च नो वदेत्॥ (शि.पु. 1/13/79) विद्वान व्यक्ति को चाहिए कि दूसरों का दोष-कथन न करे, और कोई विशेष दोष किसी का देखा-सुना भी हो तो उसे नहीं कहे। {406} असूयैकपदं मृत्युरतिवादः श्रियो वधः। अशुश्रूषा त्वरा श्लाघा विद्यायाः शत्रवस्त्रयः।। (म.भा. 5/40/4) गुणों में दोष देखना एकदम मृत्यु के समान है, निन्दा करना लक्ष्मी का वध है तथा * + सेवा का अभाव, उतावलापन और आत्मप्रशंसा-ये तीन विद्या के शत्रु हैं। {407} 判纲听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 सम्भोगसंविद् विषमोऽतिमानी, दत्त्वा विकत्थी कृपणो दुर्बलश्च। बहुप्रशंसी वन्दितद्विद् सदैव, सप्तैवोक्ताः पापशीला नृशंसाः॥ (म.भा. 5/45/4) सम्भोग में मन लगाने वाले, विषमता रखनेवाले, अत्यन्त अभिमानी, दान देकर आत्मश्लाघा करनेवाले, कृपण, असमर्थ होकर भी अपनी बहुत बड़ाई करने वाले और संमान्य पुरुषों से सदा द्वेष रखने वाले ये सात प्रकार के मनुष्य ही पापी और क्रूर कहे गये हैं। 第垢玩垢听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 第 {408} अधीयानः पण्डितंमन्यमानो यो विद्यया हन्ति यशः परस्य। तस्यान्तवन्तः पुरुषस्य लोका न चास्य तद् ब्रह्मफलं ददाति॥ (म.पु. 39/24) जो विद्याओं को पढ़कर, अपने को महान् पण्डित समझ कर, अपनी विद्या के बल पर दूसरे (को पराजित कर, उस) के यश को नष्ट करता है, उस पुरुष के लिए सभी लोक तो बिगड़ ही जाते हैं, वह (ज्ञान से मिलने वाले फल) ब्रह्म-प्राप्ति रूपी फल से भी वंचित हो जाता है। 男男男男男男男男男男男%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%岁 विदिक/ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/114
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy