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________________ ( % %% %%% % % % %%%% %%%%%% %%%%%%%%% % {346} परेषामुपकारं च ये कुर्वन्ति स्वशक्तितः। धन्यास्ते चैव विज्ञेयाः, पवित्रा लोकपालकाः॥ (स्कं.पु. माहे./केदार/12/49) जो व्यक्ति शक्तिभर दूसरों का उपकार करते हैं- वे ही लोक का पालन करने वाले कृतकृत्य पुरुष हैं। {347} परोपकरणं येषां, जागर्ति हृदये सताम्। नश्यन्ति विपदस्तेषां, संपदः स्युः पदे पदे॥ (चाणक्य-नीति 17/120) जिन सज्जनों के हृदयों में परोपकार का भाव सदा जागरूक रहता है, उनकी सभी विपदाएं नष्ट हो जाती हैं और उन्हें पग-पग पर संपत्ति प्राप्त होती है। 用頻頻頻頻頻折坎坎坎坎坎坎坎坎坎圳乐乐乐乐听听听听听听听听听乐乐乐巩巩巩巩巩巩巩听听听听听听听听 {348} हितं यत् सर्वभूतानामात्मनश्च सुखावहम्। तत् कुर्यादीश्वरे ह्येतन्मूलं सर्वार्थसिद्धये॥ (म.भा.5/37/40, विदुरनीति 5/40) जो सम्पूर्ण प्राणियों के लिये हितकर और अपने लिये भी सुखद हो, उसे ईश्वरार्पणबुद्धि से निष्काम रूप से करे; सम्पूर्ण सिद्धियों का यही मूलमन्त्र है। {349} कर्मणा मनसा वाचा यदभीक्ष्णं निषेवते। तदेवापहरत्येनं तस्मात् कल्याणमाचरेत्॥ (म.भा. 5/39/55, विदुरनीति 7/55) मनुष्य मन, वाणी और कर्म से जिसका निरन्तर सेवन करता है, वह कार्य उस पुरुष को अपनी ओर खींच लेता है (अर्थात् उसे करने के लिए प्रेरित करता रहता है)। इसलिये सदा कल्याणकारी कार्यों को ही करे। 9%垢玩垢听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听垢巩巩听听听听听听听 {350} प्रोक्तं पुण्यतमं सत्यं परोपकरणं तथा॥ (शु.नी. 2/206) सत्य और परोपकार को सब पुण्यों से श्रेष्ठ कहा गया है। वैदिक/ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/102
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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