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________________ 男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男%%%%%%%%%; {327} शर्म यच्छत द्विपदे चतुष्पदे। (ऋ.10/37/11) मनुष्य और पशु-सब को सुख अर्पण करो। {328} यत्ते क्रूरं यदास्थितं तत्त आ प्यायताम्। (य.6/15) जो भी तेरा क्रूर कर्म या क्रूरता आदि का अशांतिपूर्ण विचार है, वह सब शांत हो जाए। {329} प्रियं मा कृणु देवेषु प्रियं राजसु मा कृणु। प्रियं सर्वस्य पश्यत उत शूद्र उतार्ये॥ (अ.19/62/1) __ हे देव! मुझ को देवों में प्रिय बनाइए और राजाओं में प्रिय बनाइए। मुझे जो भी * ॐ देखें, मैं इन का प्रिय रहूँ, शूद्रों और आर्यो में भी मैं प्रिय रहूँ। {330} स्वस्तिदा मनसा मादयस्व, (ऋ..10/116/2) विश्व के प्राणियों को स्वस्ति (मंगल-कामना) दो, आनन्द दो,और अन्तरमन से सदा प्रसन्न रहो। 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听凯听听听听非 {331} अनभिध्या परस्वेषु सर्वसत्त्वेषु सौहृदम्। कर्मणां फलमस्तीति त्रिविधं मनसा चरेत्॥ (म.भा. 13/13/5) दूसरे के धन को लेने का उपाय न सोचना, समस्त प्राणियों के प्रति मैत्रीभाव रखना भ और 'कर्मों का फल अवश्य मिलता है' इस बात पर विश्वास रखना-ये मन से आचरण म करने योग्य तीन कार्य हैं। इन्हें सदा करना चाहिये। (इनके विपरीत, दूसरे के धन का लालच है म करना, समस्त प्राणियों से वैर रखना और कर्मों के फल पर विश्वास न करना-ये तीन # मानसिक पाप हैं-इनसे सदा बचे रहना चाहिये)। %% %%%%% %%% %%%%% %%% %%%% %%% % अहिंसा कोश/97]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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