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________________ Seeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeee उनके उपदेश का सार था- मन, वचन व शरीर से 'अहिंसा' या 'समता' की ये र साधना ही 'मोक्ष' की साधना है। उनके अनुसार 'धर्म' की पहली सीढ़ी है-सच्ची/यथार्थ ए दृष्टि, जिसकी पहचान है-शांति व मैत्री भाव के मानस का निर्माण। जिस व्यक्ति के मन में प्राणियों के प्रति मैत्री भाव नहीं है, वह धार्मिक नहीं हो सकता। किसी भी प्राणी को मारना, र S उसे पीड़ित करना और उसका शोषण करना 'अधर्म' है। इस 'अधर्म' में प्रेरक होना या अनुमोदक/समर्थक होना भी पाप है। 'जीओ और जीने दो'- उनके उपदेश का सार है। ए उनके द्वारा उपदिष्ट 'जैन धर्म' समस्त प्राणिमात्र के अभ्युदय का मार्ग प्रशस्त करता है, Sइसीलिए उसे 'सर्वोदय तीर्थ' के नाम से भी जाना जाता है। भगवान महावीर की 'अहिंसा' अपने में समग्र धार्मिक सद्गुणों को समेटे हुए है। 'अहिंसा' का अर्थ मात्र किसी को न मारना ही नहीं है, अपितु उन सभी कार्यों व विचारों से बचना है जिनसे कोई भी प्राणी पीड़ित, दुःखी, शोषित या व्यथित होता हो। अहिंसा की । Sसर्वोत्कृष्ट स्थिति तो उस उदात्त मानसिक स्थिति का निर्माण होना है जहां किसी भी प्राणी केS प्रति मनोमालिन्य या मनोविकारों का उत्पन्न होना ही समाप्त हो जाय। क्षमा, मैत्री, दया, ले एकरुणा, प्रेम, उदारता, परोपकारिता,सह-अस्तित्व-भावना, मानसिक सरलता व पवित्रता, Sसमता-भाव, सभी प्राणियों में आत्मवत् दृष्टि (सर्वभूतात्मता)-ये सभी अहिंसा रूपी महानदी । की विविध धाराएं हैं। आज समस्त मानवता को संघर्ष, वैर-विरोध, असहिष्णुता, विचारसंकीर्णता, आतंकवाद, शक्ति-विस्तार की लालसा, घृणा, द्वेष आदि-आदि राक्षसी वृत्तियों व विभीषिकाओं ने घेर रखा है और मानवता का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। इस भयावह र एस्थिति में भग. महावीर की अहिंसा ही विश्व-शान्ति की स्थापना कर, समस्त मानवता को से बचाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। र सन् 1974 में भगवान महावीर का 2500 वां परिनिर्वाण दिवस मनाया गया था। यह S समारोह एक वर्ष तक न केवल भारत में चला था, अपितु विदेशों में भी उत्साह और उमंग LAGeeeeeeeeeeeeeeeeeneral II
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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