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________________ शिशुपाल प्राचीन चरित्रकोश शुक थी। कृष्ण भी इन मिथ्या आरोपों के कारण, इसका वध शिशुरोमन्-तक्षककुलोत्पन्न एक नाग, जो जनमेजय करना चाहता था, किन्तु अपनी फूफी को दिये वचन का | के सर्पसत्र में दग्ध हुआ था (म. आ. ५२.९)। स्मरण कर, वह शांत रहा। किन्तु राजसूय यश्मंडप से शिष्ट-(स्वा. उत्तान.) एक राजा, जो ध्रुव एवं बाहर आते ही शिशुपाल पुनः एक बार कृष्ण के संबंध धन्या का का पुत्र था। अग्नि की कन्या सुच्छाया इसकी में भलाबरा कहने लगा। इसने कहा, 'रुक्मिणी मेरी पत्नी थी, जिससे इसे कृप, रिपुंजय, वृत्त, एवं वृक नामक पत्नी है, एवं उसने मेरा ही वरण किया है। किंन्तु | चार पुत्र उत्पन्न हुये (मत्स्य. ४.३८)। इसे ' सृष्टि' श्रीकृष्ण ने उसका हरण किया है। नामांतर भी प्राप्त था। शिशुपाल का यह वचन सुन कर, एवं इसके सौ शीघ्र--(सू. इ. भविष्य.) एक राजा, जो भागवत, अपराध पूर्ण हुए हैं, यह जान कर श्रीकृष्ण ने अपने विष्णु एवं वायु के अनुसार, अग्निवर्ण राजा का पुत्र, एवं सुदर्शन चक्र से इसका वध किया (म. स. ४२.२१; भा. मरु राजा का पिता था (भा. ९.२.५)। भविष्य पुराण १०.७४) । मृत्यु क पश्चात् इसके शरीर का तेज कृष्ण में इसे 'शीघ्रगन्तृ' कहा गया है, एवं इसके पिता की देह में विलीन हो गया। | का नाम अपवर्मन् दिया गया है । परिवार--इसके धृष्टकेतु, सुकेतु, एवं शरभ नामक शीत्रग-एक पक्षिराज, जो संपाति के पुत्रों में से एक तीन पुत्र, एवं करेणुमती (रेणुमती) नामक एक कन्या | था (मत्स्य. ६.३५)। शीत्रगन्त-इक्ष्वाकुवंशीय शीव राजा का नामांतर । महाभारत में इसका करकर्ष नामक अन्य एक पुत्र भी शीततोया--वरुण की पत्नियों में से एक। दिया गया है। इसकी बहन का नाम काली था, जो भीम शीतवृत्त--वसिष्ठकुलोत्पन्न गोत्रकार ऋषिगण। . की पत्नी थी (म. आश्र. ३२.११)। शुक-एक महर्षि, जो व्यास पाराशर्य ऋषि का पुत्र । शिशुमार-एक ऋषि, जो पानी में ग्राह का रूप था (शुक वैयासकि देखिये)। धारण कर रहता था (पं. वा. १४.५.१५) । 'शिशुमार' २. एक वानर, जो शरभ वानर का पुत्र था। इसकी का शब्दशः अर्थ 'ग्राह' ही है। इसे 'सिशुमार' | पत्नी का नाम व्याधी था, जिससे इसे ऋक्ष नामक पुत्र नामांतर भी प्राप्त था। उत्पन्न हुआ था (ब्रह्मांड ३.७.२०८)। पुराणों में इसका इसका सही नाम शकर था। एक बार सृष्टि के समस्त विस्तृत वंशक्रम प्राप्त है (वानर देखिये)। ऋषियों ने इंद्र की स्तुति की, किंतु यह मौन ही रहा । इंद्र ३. रावण का एक अमात्य, जो अपने सारण नामक के द्वारा स्तुति करने की आज्ञा होने पर, इसने औद्धत्य मित्र के साथ उसके गुप्तचर का काम भी निभाता था। से कहा, 'तुम्हारी स्तुति करने के लिए मेरे पास समय राम-रावण-युद्ध के समय, राम का सैन्यबल, शस्त्रबल नहीं है। फिर भी एक बार पानी उछालने के कार्य में आदि की जानकारी प्राप्त करने के लिए, रावण ने इसे जितना समय व्यतीत होगा, उतने ही समय तुम्हारी एवं सारण को गुप्तचर के नाते राम' के सेना शिविर में स्तुति करूँगा। भेजा था। पश्चात् ये दोनों वानर का रूप धारण कर, राम किंतु इंद्र की स्तुति प्रारंभ करने पर इसे पता चला कि, के शिविर में आ पहुँचे। . इंद्र की जितनी स्तुति की जाये, उतनी ही कम है। फिर विभीषण ने इनका सही रूप पहचाना, एवं उन्हें इसने तपश्चर्या कर सामविद्या प्राप्त की, एवं इंद्र के स्तुति- गिरफ्तार कर, इन्हें राम के सम्मुख पेश किया। रम ने वाचक साम की रचना की, जो आगे चल कर इसीके इनकी निःशस्त्र अवस्था की ओर ध्यान दे कर इन पर नाम के कारण 'शार्कर-साम' नाम से सुविख्यात हुआ। दया की, एवं इन्हें देहदण्ड के बिना ही मुक्त किया। (पं. बा. १४.५.१५)। पश्चात् इसने रावण के पास जा कर राम की सन्य२. स्वायंभुव मन्वंतर का एक प्रजापति, जिसकी भ्रमी | सामर्थ्य एवं उदारता की काफी प्रशंसा की, एवं उससे नामक कन्या का विवाह ध्रुव से हुआ था (भा. ४.१०. संधि करने की प्रार्थना रावण से की। किंतु रावण ने ११)। इसकी एक न सुनी, एवं अन्य गुप्तचर राम की सेना के .. ३. भगवान् विष्णु का एक अवतार, जो दोष वसु एवं | ओर भेज दिये (वा. रा. यु. २५-२९; म. व. २६७. . शर्वरी का पुत्र था (भा. ६.६.१४)। ९७४
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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