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शिशुनाग
प्राचीन चरित्रकोश
शिशुपाल
राजा को परास्त कर, शिशुनाग राजवंश की स्थापना की। कृष्ण का विद्वेष—यह शुरू से ही मगधराज जरासंध यह काशिदेश का रहनेवाला था, किंतु आगे चल कर, का पक्षपाती था, एवं कृष्ण से द्वेष करता था (ह. वं. यह मगध देशनिवासी बन गया । इसके पुत्र का नाम | २३४.१३)। इसके कृष्ण की तुलना में अधिक सामर्थ्य - काकवर्ण था।
शाली राजा होते हुए भी, सभी लोग कृष्ण को ही अधिक इसके राजवंश में निम्नलिखित दस राजा उत्पन्न हुए, | मान देते थे, यह इसे बिलकुल अच्छा नहीं लगता था। जिन्होंने ३६० वर्षों तक मगध देश पर राज्य किया :-- शिशुपाल के अनाचार-इसी विद्वेष के कारण यह १. काकवर्णः २. क्षेमधर्म: ३. क्षेमजित; ४. विध्यसेन; | अनेकानेक पापकर्म एवं अनाचार करता रहा। कृष्ण जब ५. भूमिमित्र; ६. अजातशत्रु; ७. वंशक; ८. उदासि; प्राग्ज्योतिष पुर गया था, उस समय उसकी अनुपस्थिति में ९. नन्दिवर्धनः १०. महानन्दिन् (मत्स्य. २७२.६-१७; | इसने द्वारका नगरी जलायी थी। रैवतक पर्वत पर हुए वायु. ९९.३१४-३१५)।
यादवों के उत्सव के समय, इसने हमला कर अनेकानेक शिशपाल-चेदि देश का सुविख्यात राजा, जो चेदि यादवों को मारपीट कर उन्हें कैद किया था। कृष्ण पिता राजा दमघोष एवं वसुदेवभगिनी श्रुतश्रवा का पुत्र था। इस वसुदेव के अश्वमेध यज्ञ के समय, इसने उसका अश्वप्रकार यह कृष्ण का फुफेरा भाई, एवं पांडवों का मौसेरा | मेधीय अश्व चुरा कर, यज्ञ में विघ्न उपस्थित किया भाई था (म. स. ४०.२१: भा. ७.१.१७; ९.२४.४०)। । था। बभ्र राजा की पत्नी का इसने हरण किया था, एवं इसे 'चैद्य' एवं 'सुनीथ' नामांतर भी प्राप्त थे(म. स. | अपने मामा विशालक की कन्या भद्रा पर बलात्कार किया ३३.३५२* पंक्ति. ४; परि. १.२१.२, ३६.१३)। था। रुक्मिणीस्वयंवर के समय इसने कृष्ण पर आरोप
यह शुरू से ही अत्यंत दुष्टप्रकृति, एवं कृष्ण का प्रखर | लगाया था की, कृष्ण ने रुक्मिणी को बहका कर उससे विद्वेषक था, जिसका संकेत पुराणों में इसे हिरण्यकशिपु |
सेरिण्यकशिप | जबर्दस्ती शादी की है। एवं रावण का अंशावतार मान कर किया गया है (मत्स्य. कृष्ण की निंदा-कृष्ण के प्रति इसके विद्वेष का रौद्र ४६.६; विष्णु. ४. १४.१५, ब्रह्म. १४.२०; वायु. ९६. | उद्रेक युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में हुआ, जहाँ इसने कृष्ण १५८: ब्रह्मांड. ३.३१.१५९)।
को अग्रपूजा का मान देने के प्रस्ताव को अत्यंत कटोर जन्म-इसके स्वरूप के संबंध में एक चमत्कृतिपूर्ण | शब्दों में विरोध किया। इसने कहा, 'कृष्ण एक कायर कथा महाभारत में प्राप्त है, जिसके द्वारा कृष्ण से इसका एवं अप्रशंसनीय व्यक्ति है, एवं उसकी शूरता एवं पराक्रम जन्मजात शत्रुत्व प्रस्थापित करने का प्रयत्न किया गया की जो गाथाएँ आज समाज में प्रचलित हैं, वे सारी सरासर है। जन्म से यह अत्यंत विष्य था, एवं इसके तीन | झूट एवं अतिशयोक्त हैं। बचपन में कृष्ण ने पूतना का नेत्र, एवं चार भुजाएँ थीं । इसकी आवाज भी गर्दभ के वध किया, जो एक चिड़िया मात्र थी। वल्मीक जैसा समान थी। इसके जन्म के समय आकाशवाणी हुई | छोटा गोवर्धन पर्वत उसने उठाया, इसमें बहादुरी क्या ? थी, 'जिस पुरुष के गोद में यह बालक देते ही, इसकी दो | बछड़े, साँप, गधे को मारनेवाले को क्या तुम शूरवीर भुजाएँ एवं एक नेत्र लुप्त हो कर इसका विरूपत्व नष्ट हो कहाँग ? रुई जैसे झाड़ उखाड़ डाले, अथवा एक आधा जायेगा, उसीके हाथों शस्त्र के द्वारा इसकी मृत्यु होगी। नाग नष्ट ही किया, तो क्या यह वीरता कही जायेगी ? |
इस विचित्र बालक को देखने के लिए, अन्य राजाओं। रही बात कंसवध की, उसमें भी कोई शौर्य नहीं था ? गौओं एवं रिश्तेदारों की भाँति कृष्ण एवं बलराम भी उपस्थित को चरानेवाले एक क्षुद्र व्यक्ति की तुम लोग प्रशंसा क्यों हुए थे। उस समय, कृष्ण के इस बालक को गोद में लेते करते हो, यह मेरे समझ में नहीं आता ' (म.स.३८)। ही, इनका विरूपत्त्व नष्ट हुआ, एवं आकाशवाणी के इसी सभा में कृष्ण की स्तुति करनेवाले भीष्म से कथनानुसार कृष्ण इसका शत्रु साबित हुआ (म. स. ४०. इसने कहा, 'तुम सरासर नपुंसक हो, जो अन्य सम्राटों १-१७)। कृष्ण की फूफी श्रुतश्रवा ने अपने बालक को को छोड़ कर आज भरी सभा में कृष्ण की स्तुति कर बचाने के लिए उससे बार-बार प्रार्थना की। उस समय | रहे हो। कृष्ण ने उसे अभिवचन दिया, 'शिशुपाल के सौ शिशुपालवध--शिशुपाल के इन आक्षेपों को सुन अपराधों को मैं क्षमा करूंगा, एवं उसके सौ अपराध पूर्ण | कर, भीम ऋद्ध हो कर इसे मारने के लिए दौड़ा, किन्तु होने पर ही में उसका वध करूंगा।
| भीष्म ने उसे रोक दिया (म. स. ३९.९-१४)। ९७३