________________
शुक
प्राचीन चरित्रकोश
शुक वैयासकि
पूर्वजन्मकृत्त--अपने पूर्वजन्म में यह ब्राह्मण था। इसके निम्नलिखित पुत्र थे :- १. भूरिश्रवस् (भूरिकिन्तु अगस्त्य ऋषि को नरमांसयुक्त भोजन खिलाने की | श्रुत, भरि); २. शंभु; ३.प्रभुः ४. कृष्ण;५.गौर (गौरगलती इससे हुई, जिस कारण इसे राक्षसयोनि प्राप्त | प्रभ); ६. देवश्रुत (ब्रह्मांड. ३.८.९३; वायु. ७०.८४हुई । आगे चल कर, राम के पुण्यदर्शन के कारण यह | दे. भा. १.१४, नारद. १.५८)। मुक्त हुआ।
इसकी कन्या का नाम कृत्वी (कीर्तिमती, योगमाता, ४. (सू. नरिष्यंत.) एक राजा, जो नरिष्यंत राजा का | योगिनी) था, जो अणुह राजा की पत्नी थी (ह. वं. १. पुत्र था (पन. सृ. ८.१२५)।
२३.६: वायु. ७३.२८-३०)। अणुह राजा से उसे . गांधारराज सुबल का पुत्र, जो शकनि का भाई | ब्रह्मदत्त नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था (मत्स्य. १५)। था। भारतीय युद्ध में अर्जुनपुत्र इरावत् ने इसका वध | शुक वैयासकि--एक महर्षि, जो व्यास पाराशय किया (म. भी. ८.२४-३१)।
नामक सुविख्यात ऋषि का पुत्र एवं शिष्य था। व्यास ने ६. एक ऋषि, जो दीर्घतमस् व्यास ऋषि का पुत्र था।
इसे संपूर्ण वेद तथा महाभारत की शिक्षा प्रदान की थी कृष्ण के पुण्यस्पर्श के कारण, अपने अगले जन्म में यह (म. आ. ५७.७४-७५)। अपने ज्ञान एवं नैष्ठिक उपनन्द नामक गोप की कन्या बन गया (पन. पा. ७२)।
ब्रह्मचर्य के कारण, यह प्राचीन काल से प्रातःस्मरणीय पुराणों में प्राप्त अट्ठाईस व्यासों की नामावलि में इसका
विभूति माना जाता है। इसी कारण, पुराणों में इसे नाम अप्राप्य है।
'महातप, ' 'महायोगी,' एवं 'योगशास्त्र का प्रणयिता' ७. एक राजा, जो शर्यातिवंशीय पृषत् राजा का पुत्र |
| कहा गया है (वायु ७३.२८)। था। इसने समस्त पृथ्वी को जीत कर, सौ अश्वमेध
जन्म-घृताची अप्सरा (अरणी) को देख कर यज्ञ किये।
व्यास महर्षि का वीर्य स्खलित हुआ, जिससे आगे चल
कर शुक का जन्म हुआ (म. आ. ५७.७४)। महाभारत अपने उत्तर आयुष्य में इसने वानप्रस्थाश्रम को स्वीकार में अन्यत्र, व्यास के वीर्य के द्वारा अरणीकाष्ठ से इसका किया, एवं शतशंग पर्वत पर पर्णकुटी में रहने लगा। जन्म होने का निर्देश प्राप्त है (म. शां. ३११.९-१०)। अस्मविद्याशास्त्र में यह पांडवों का गुरु था, एवं इसीने ही
___ विद्याध्ययन--इसका लौकिक गुरु बृहस्पति था (म. भीम को गदायुद्ध, युधिष्ठिर को तोमर युद्ध, नकुल-सहदेवों
शां. ३११.२३ )। अपने पिता के आदेशानुसार, इसने को खड्गयुद्ध, एवं अर्जुन को धनुर्वेद की शिक्षा प्रदान की
अपने गुरु से मोक्षतत्त्व का उपदेश प्राप्त किया था (म. थी (म. आ. परि. ६७. २८-३७)। .
शां. ३१२)। शिव के द्वारा इसका उपनयनसंस्कार ... ८. एक ऋषि, जो दक्षिण पांचाल के अणुह एवं ब्रह्म
संपन्न हुआ था ( म. शां. ३११.१९)। व्यास ने इसे दत्त राजा का समकालीन था । यह व्यास पाराशर्य ऋषि के
भागवत सिखाया था। पुत्र शुक वैयासकि से काफी पूर्वकालीन था।
| इसके उपनयन के समय इंद्र ने इसे कमंडलु एवं पौराणिक साहित्य में शुक ऋषि की अनेकानेक पत्नियाँ | कषायवस्त्र प्रदान किये । बृहस्पति ने इसे वेदादि का ज्ञान एवं विस्तृत वंशक्रम प्राप्त है। पार्गिटर के अनुसार, दिया था, एवं उपनिषद, वेदसंग्रह, इतिहास, राजनीति यह सारा परिवार व्यास ऋषि के पुत्र शुक वैयासकि का एवं मोक्षादि धर्म आदि का ज्ञान स्वयं व्यास ने इसे दिया न हो कर अणुह एवं ब्रह्मदत्त राजा के समकालीन शुरू था। आगे चल कर ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति के लिए, यह बहुऋषि का था। शुक वैयासकि जन्म से ही अत्यंत विरागी | लाश्व जनक राजा के पास गया। वहाँ जनक राजा ने इसे स्त्रीएवं ब्रह्मचारी था।
जाल में फंसाने की कोशिश की, किन्तु उसका यह प्रयत्न परिवार-इसकी निम्नलिखित दो पत्नियाँ थी:- असफल ही रहा । इसने नारद से भी आत्मकल्याण का १. पीवरी, जो विभ्राज अथवा बर्हिषद पितरों की मानस- उपाय पूछा था (म. शां. ३१८)। कन्या थी। हरिवंश में इसे सुकाल पितरों की कन्या कहा| विरक्ति-यह शुरू से ही अत्यंत विरक्त था, एवं गया है (ह. वं. १.१८.५८), २. गो (एकशंगा)। उपनयन के पूर्व ही इसने जीवन के समस्त भोगवस्तुओं का हरिवंश में एकशंगा गो की नहीं, बल्कि पीवरी का | त्याग किया था। अपने पिता की आज्ञा से यह ननावस्था नामांतर बताया गया है।
में कुरुजांगल एवं मिथिला नगरी गया था। मिथिला नगरी ९७५