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शिखंडिन्
प्राचीन चरित्रकोश
शिजय
भारतीय युद्ध में भारतीय युद्ध में यह पांडवपक्ष | चार शिष्य थे:--१. वाचःश्रवस् ; २.रुचीक;३. शावाश्व; का 'महारथ', एवं एक अक्षौहिणी सेना का सेनामुख | ४. यतीश्वर (शिव. शत. ५)। था। यह युद्धनिपुण एवं उच्च श्रेणी का व्यूहरचनातज्ञ | शिखंडिन् याज्ञसेन--एक आचार्य, जो केशिन था, जो विद्या इसने द्रोणाचार्य से प्राप्त की थी। पांचाल | दाल्भ्य राजा का पुरोहित था (कौ. ब्रा. ७.४ )। केशिन् देश के बारह हज़ार वीरों में से, छः हज़ार वीर इसीके | दाल्भ्य के द्वारा किये गये यज्ञ में, इसने कई आचायों के ही सैन्य में समाविष्ट थे (म. द्रो. २२.१६०.*; पंक्ति. | साथ वादविवाद किया था। ७-८)। इसके रथ के अश्व भूरे वर्ण के थे, जो इसे तुंबुरु यज्ञसेन का वंशज होने के कारण, इसे 'याज्ञसेन' ने प्रदान किये थे। इसका ध्वज 'अमंगल' वर्ण का था | पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा। (म. भी. १०८.१९-२०)।
| शिखंडिनी--विजिताश्व राजा की पत्नी, जिससे इसे भीष्मवध--भारतीय युद्ध के पहले दस दिनों में, तीन पुत्र उत्पन्न हुए थे (भा. ४.२४.३)। भीष्म ने अपने पराक्रम के कारण पांडवसेना में हाहाः- २.अंतधीन राजा की पत्नी, जो हविर्धान राजा की कार मचा दिया। उस समय भीष्म ने स्वयं ही शिखंडिन् | माता थी। को आगे कर युद्ध करने की सलाह पांडवों को दी (भीष्म ३. द्रपद राजा की कन्या, जो आगे चल कर शिखंडिन् देखिये)। यह जन्म से स्त्री था, जिस कारण धर्मयुद्ध के | नामक पत्र में रूपांतरित हुई (शिखंडिन् देखिये)। नियमानुसार इससे युद्ध करना भीष्म निषिद्ध मानता था।। शिखंडिनी अप्सरा काश्यपी--एक वैदिक सूक्त
भारतीय युद्ध के दसवें दिन, यह भीष्म के सम्मुख | द्रष्ट्रीद्वय (ऋ. ९.१०४)। खड़ा होते ही, भीष्म ने अपने शस्त्र नीचे रख दिये, शिखाग्रीविन्--अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । जिसे सुअवसर समझ कर अर्जुन ने भीष्म का वध किया। शिखावत्--युधिष्ठिरसभा में उपस्थित एक ऋषि (म. भी. ११४.५३-६०)।
| (म. स. ४.१२)। वध--भारतीय युद्ध के अठारहवें दिन हुए रात्रियुद्ध
| शिखावर्ण--भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। में अश्वत्थामन् ने इसका वध किया (म. सौ. ८.६०)। शिखावर्त--कुवेरसभा में उपस्थित एक यक्षः (म. इसकी मृत्यु का दिन पौष्य अमावस्या माना जाता है | स. १०.१६)। . (भारतसावित्री)।
शिखि--तामस मन्वंतर का इंद्र । भीष्मवध का पूर्ववृत्त--महाभारत के कुंभकोणम् |
शिखिध्वज--एक राजा, जिसकी पत्नी का नाम संस्करण में, शिखंडिन् भीष्मवध के लिए कारण किस प्रकार | चुडाला था। बन गया, इसकी चमत्कारपूर्ण कथा दी गयी है । काशिराज
२. मयूरध्वज राजा का नामांतर । की कन्या अंबा ने भीष्मवध की प्रतिज्ञा की थी, जिस हेतु
| शिखिन्--कश्यपकुलोत्पन्न एक नाग (म. उ. १०३. उसने कार्तिकेय के द्वारा एक दिव्य माला प्राप्त की थी। । १२)। वह माला प्रदान करते समय, कार्तिकेय ने उसे वर दिया | शिग्रु--एक जातिविशेष, जो दाशराज्ञ युद्ध में सुदास था कि, जो मनुष्य वह माला परिधान करेंगा, वह भीष्मवध | राजा के शत्रुपक्ष में शामिल थी । अज एवं यक्ष लोगों के के कार्य में सफलता प्राप्त करेंगा।
साथ, ये लोग भी सुदास राजा से परास्त हुए थे (ऋ. पश्चात अंबा ने वह माला द्रपद के राजभवन में फेंक | ७.१८.१९)। लुडविग के अनुसार ये लोग भेद राजा के दी, जो आगे चल कर शिखंडिन ने परिधान की। इसी | नेतृत्त्व में थे (लुडविग, ऋग्वेद अनुवाद ३.१७३)। देवी माला के कारण, शिखंडिन् भीष्मवध के कार्य में संभवतः ये लोग उत्तरकाल में प्रसिद्ध हुए 'सहिजनसफल हुआ (म. द्रो. २२.१६०; पंक्ति ७-८)। वृक्ष' से संबंधित थे। इसी कारण ये लोग अनार्य प्रतीत
२. एक शिवावतार, जो सातवे वाराह कल्पांतर्गत | होते हैं। वैवस्वत मन्वंतर के अठारहवें युगचक्र में उत्पन्न हुआ। शिजय---एक राजा, जो पहले क्षत्रिय था, किंतु था। हिमालय पर्वत में स्थित 'शिखंडिन् ' नामक शिखर | आगे चल कर तपोबल से ब्राह्मण एवं ऋषि बन गया पर यह शिवावतार अवतीर्ण हुआ। इसके निम्नलिखित | गया ( वायु. ९१.११४)।
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