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शाल्व
प्राचीन चरित्रकोश
पश्चात् भीष्म की अनुशा प्राप्त कर अंत्रा इसके पस आयी, एवं इससे विवाह करने के लिए उसने इसका बार बार अनुनय-विनय किया किंतु भीम ने इसका हरण करने के कारण, उससे विवाह करने से इसने साफ इन्कार कर दिया।
भारतीय युद्ध में इस युद्ध में यह कौरवों के पक्ष में शामिल था इसका हाथी, पति के समान विशाल काय, ऐरावत के समान शक्तिशाली, एवं महाभद्र नामक सुविख्यात गजकुल में उत्पन्न हुआ था ( म. श. १९.२ - ३ ) । इसी हाथी पर आरूढ हो कर, इसने पांडवसेना पर आक्रमण किया, एवं उसमें हाहाःकार मचा दिया। पश्चात् इतने पृष्टद्युम्न पर आक्रमण किया एवं उसके रथ को कुचल
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पश्चात् पृष्टा के द्वारा इसके हाथी का एवं सात्यकि के द्वारा इसका वध हुआ (म. श. १९.२५) २. एक म्लेच्छ राजा, जो वृषपर्वन् के छोटे भाई के अंश से उत्पन्न हुआ था (म. आ. ६१.१७ नं. १९१) 1 २.पदका एक योद्धा, जो कौरवपक्षीय भीमरथ राजा के द्वारा मारा गया था यह भीमरथ धृतराष्ट्र पुत्र भीमरथ से भिन्नथा ( म. द्रो. २४.२६ ) ।
४. तीन राजाओं का एक समूह, जो व्युषिताश्व राजा की पत्नी भद्रा ने अपने पति की मृत्यु के पश्चात्, उसके मृतदेह से उत्पन्न किये थे ( म. आ. ११२.३३ ) । ५. एक लोकसमूह जो भारतीय युद्ध में पांडवों के पक्ष में शामिल था ( म. द्रो. १२९.७ ) । ये लोग जरासंध के भय से दक्षिण दिशा में भाग गये थे ( म. स. १३. २४ - २६ ) । इन योद्धाओं ने द्रोण पर आक्रमण किया था।
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६. एक असुर, जो सिंहिका का पुत्र होने के कारण 'सिंहिकापुत्र ' अथवा 'संहिकेय' नाम से सुविख्यात था शिव की आज्ञा से परशुराम ने इसका वध किया ( विष्णुधर्म. १.३७.३८-३९ ) ।
७. एक दैत्य, जिसने अपने अनाचार के कारण वैदिक धर्म का उच्छेद किया था। इसी कारण श्रीविष्णु ने संग्राम में विष्णुमशस् नामक ब्राह्मण के घर अवतार
साकिया (२.१.२.४०)। इस कथा का संकेत संभवतः विष्णु के कल्कि अवतार की ओर प्रतीत होता है (विष्णुयशस् कल्कि देखिये) ।
८. शाल्वदेश के द्युतिमत् राजा का नामांतर ( द्युतिमत् देखिये ) |
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शिखंडिन्
शाल्वल - दधिवाहन नामक शिवावतार का एक शिष्य । शावस्त - - ( सू. इ. ) एक इक्ष्वाकुवंशीय राजा, जो युवनाश्व (द्वितीय) राजा का पुत्र था। मत्स्य, विष्णु एवं वायु में इसे 'श्रावस्त' कहा गया है।
शाश्वत - - (सु. निमि.) विदेह देश का एक राजा, जो विष्णु के अनुसार श्रुत राजा का पुत्र था।
शापेययाणिनीय व्याकरण के शाखा प्रवर्तक आचार्यों में से एक (पाणिनि देखिये) ।
शास भारद्वाज एक वैदिक सूक्त (ऋ. १०. १५२ ) ।
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शास्तु –— कश्यप एवं सुरभि के पुत्रों में से एक । शिक्ष-- एक देवगंधर्व, जो ऋषभ पर्वत पर रहता था । शिख एक आचार्य, जिसने अपने अनुशिख नाम के मित्र के साथ सर्पयज्ञ में क्रमशः 'नेट' एवं 'पोतृ' का काम निभाया था (पं. बा. २५.१५.३ ) ।
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शिखंडिन् – (सो. अज.) पांचाल देश के द्रुपद राजा का एक पुत्र, जो पहले 'शिखंडिनी' नामक कन्या के रूप में उत्पन्न हुआ था। पश्चात् स्थूणाकर्ण नामक यक्ष की कृपा से यह पुरुष बन गया (म. १९२-१९३ ) । महाभारत में अन्यत्र यह शिव की कृपा से पुरुष बनने का निर्देश प्राप्त है । इसे 'याज्ञसे नि' नामान्तर भी प्राप्त था ।
बाल्यकाल एवं विवाह- इसके मातापिता इसका स्त्री छिपाना चाहते थे, जिस कारण उन्होंने एक पुत्र जैसा ही इसका पालनपोषण किया। इतना ही नहीं, जवान होने पर दशार्ण राजा हिरण्यवर्मन् की कन्या से उन्होंने इसका विवाह संपन्न कराया ।
इसके पत्नी को इसके स्त्री का पता चलते ही, उसने अपने पिता के पास यह समाचार पँहुचा दिया | अपना जमाई स्त्री है, यह शत होते ही हिरण्यवर्मन् अत्यंत क्रुद्ध हुआ, एवं इस प्रकार धोखा देनेवाले द्रुपद राजा जड़मूल से उखाड़ फेंकने के लिए उद्यत हुआ। इसी दुरवस्था में यह घर से भाग कर वन में चल गया, जहाँ स्थूणाकर्ण यक्ष की कृपा से, पुनः लौटा - ने की शर्त पर इसे पुरुषत्त्व की प्राप्ति हुई । इसी पुरुषत्व के आधार से इसने अपने श्वसुर हिरण्यवर्मन् राजा की चिंता दूर की पश्चात् स्थूणाकर्ण वक्ष को कुवेर का शाप प्राप्त होने के कारण, शिखंडिन् का पुरुषत्व आमरण इसके पास ही रहा ( म. उ. १९०-१९३ ) : किंतु फिर भी स्त्रीजन्म का इसका कलंक सारे आयुष्य भर इसका पीछा करता रहा।
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