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शालिहोत्र
प्राचीन चरित्रकोश
शाल्व
महाभारत में इस ग्रंथ में इसे एक श्रेष्ठ ऋषि कहा | हुए कालयवन के द्वारा कृष्ण का वध कराने की सलाह गया है, जिसके आश्रम में, व्यास एवं पांडव इसकी | जरासंध को दी। भेंट लेने के लिए उपस्थित हुए थे (म. आ. १४३, परि.
पश्चात् जरासंध की ओर से यह स्वयं कालयवन के १.८७-८८)।
पास गया, एवं इसने उससे कृष्ण का वध करने की इसके आश्रम के समीप एक सरोवर एवं पवित्र वृक्ष प्रार्थना की। इस प्रार्थना के अनुसार, कालयवन ने कृष्ण था, जिनका निर्माण इसने अपनी तपस्या के द्वारा किया |
को काफ़ी त्रस्त कर, उसे अपनी मथुरा राजधानी के था (म. आ. १४४.१५७९ *)। इस सरोवर का केवल त्याग करने पर विवश किया। किन्तु अंत में कृष्ण ने जल पी लेने से भूखप्यास दूर हो जाती थी।
मुचुकुंद राजा के द्वारा कालयवन का वध कराया (ह. तीर्थ-इसके नाम से 'शालिशूर्प' (शालिशीष वं. २.५२-५४: कालयवन देखिये)। अथवा शालिसूर्य) नाम से एक तीर्थस्थान प्रसिद्ध हुआ |
| सौभ विमान की प्राप्ति--रुक्मिणी स्वयंवर के समय, था, जहाँ स्नान करने से सहस्र-गोदान का फल प्राप्त
यादवों के द्वारा जरासंध एवं शाल्व पुनः एक बार परास्त होता था (म. व. ८१.९०)।
हुए । तत्पश्चात् एक वर्ष के कालावधि में समस्त पृथ्वी को २. शूलिन् नामक शिवावतार का शिष्य ।
'निर्यादव' करने की घोर प्रतिज्ञा इसने की, एवं तत्प्री३. पौष्यं जिपुत्र लांगलिन् नामक सामवेत्ता आचार्य गस्त की प्राणा का नामांतर (लांगलिन् देखिये)।
इसकी तपस्या से प्रसन्न हो कर, रुद्र ने इसे मयासुर शालीय-एक आचाय, जो भागवत एव विष्णु क के द्वारा निर्मित 'सौभ' विमान प्रदान किया, जो देवाअनुसार, व्यास की ऋक् शिष्यपरंपरा में से क्रमशः |
स क्रमशः सुरों के लिए अजेय एवं अदृश्य होने की दैवी शक्ति से 'शाकल्य' एवं 'वेदमित्र का शिष्य था ( विष्णु. ३.४.
युक्त था। २२) । शाकल्य एवं वेदमित्र ये दोनों एक ही वेदमित्र ( देवमित्र ) शाकल्य के नाम थे (शाकरय देखिये)।
प्रद्युम्न से युद्ध--पश्चात् कृष्ण जब पांडवों के राजसूय वायु एवं ब्रह्मांड में इसे क्रमशः 'खालीय' एवं यज्ञ के लिए हस्तिनापुर गया था, यही सुअवसर समझ 'खलीयस्' कहा गया है।
| कर इसने द्वारका नगरी पर आक्रमण किया। उस समय
इसने सत्ताइस दिनों तक कृष्ण पुत्र प्रद्युम्न से युद्ध किया, शाल्व--(सो. क्रोटु.) एक दानव अथवा दैत्य, जो
एवं इस युद्ध में विजयी हो कर यह अपने नगर को लौट सौम देश का अधिपति था (ह. वं. २.५२; अमि. |
| आया। २७६.२२, म. व. २१.५)। किंतु भागवत के अनुसार 'सौभ' इसके विमान का नाम था, जिस कारण इसे |
___ कृष्ण से युद्ध-कृष्ण को यह घटना ज्ञात होते ही, 'सौभपति' नाम प्राप्त हुआ था (भा. १०.७६)।
उसने इसके वध का निश्चय कर इस पर आक्रमण महाभारत में इसे मार्तिकावत का राजा कहा गया है, 1 किया। इसन साभ विमा
जाटामा किया। इसने सौभ विमान की सहायता से कृष्ण के जो नगर अबू पहाडी के समीप स्थित था (म. व. १५. साथ अनेक प्रकार के मायावी युद्ध के प्रयोग किये. यहाँ १६; २१. १४)। इसे यौगंधरि नामांतर भी प्राप्त था।
तक की कृष्णपिता वसुदेव के मृत्यु का मायावी दृश्य भी __ यह चेदिराज शिशुपाल राजा का भाई था (म. व.
कृष्ण के सम्मुख प्रस्तुत किया (भा. १०.७७ )। किंतु अंत १५.१३ )। किन्तु भागवत में इसे शिशुपाल राजा का
में कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से इसके 'सौभ' विमान मित्र कहा गया है (भा. १०.७६)। यह प्रारंभ से ही
का विच्छेद किया, एवं इसका वध केया (म. व. १५मगधराज जरासंध का पक्षपाती, एवं कृष्ण का विरोधक | २३; भा. १०.७६-७७)। था। इसी कारण, महाभारत एवं पुराणों में इसे दानव भीष्म से युद्ध--वाराणसी के काशिराज की तीन एवं दैत्य कहा गया होगा (साल्व देखिये)।
कन्याओं में से अंबा ने इसका वरण किया था। किंतु जरासंध-दौत्य---प्रथम से ही जरासंध कृष्ण से अंबा के स्वयंवर के समय, भीष्म ने अंबा का एवं अंबिका अत्यधिक डरता था। किस प्रकार कृष्ण का वध किया एवं अंबालिका नामक उसके दो बहनों का भी हरण किया। जा सकता है, इसके षड्यंत्र वह रातदिन रचाया करता | उस समय इसने भीष्म का पीछा कर उससे युद्ध करना' था। एक बार इसने गाये ऋषि को रुद्रप्रसाद से प्राप्त | चाहा। किंतु इस युद्ध में भीष्म ने इसे परास्त किया।