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________________ शांडिल्य प्राचीन चरित्रकोश शांडिल्य काप्य (बृ. उ. २.५.२२; ४.५.२८ माध्य.); २. वैष्ट- शंकराचार्य विरचित 'ब्रह्मसूत्रभाष्य' में शांडिल्य के पुरेय (बृ. उ. २.५.१०; ४.५.२६ माध्य.) ३. कौशिक (बृ. | उपर्युक्त तत्त्वज्ञान का निर्देश 'शांडिल्यविद्या' नाम से उ. २.६.१, ४.६.१ काण्व.); ४. गौतम (बृ. उ. २. | किया गया है। ५.२०, ४.५.२६ माध्यं ); ५. बैजवाप (बृ. उ. २.५. गोत्रकार आचार्य-आश्वलायन गृहसूत्र में प्राप्त गोत्र २०; ४.५.२६ माध्य.); ६. आनभिम्लात (बृ. उ. २. | कारों के नामावलि में शांडिल्य का निर्देश प्राप्त है, जहाँ ६.२ काण्व.)। इसके गोत्र के प्रवर शांडिल्य, असित, एवं देवल दिये गये हैं। इसके द्वारा लिखित 'गृह्यसूत्र' का निर्देश इसी ग्रंथ में निम्नलिखित आचार्यों को इसकी शिष्य | 'आपस्तंब धर्मसूत्र' में प्राप्त है (आप. य. ९.११. कहा गया है:- कौडिन्य, आमिवेश्य, वात्स्य, वाम २१)। भक्ति के संबंध इसके उद्धरण भी उत्तरकालीन कक्षायण, वैष्ठपूरेय, भारद्वाज (बृ. उ. २.६.१.३; ६.५. सूत्रनंथों में प्राप्त हैं। ४; श. ब्रा. १४.७.३.२६)। । ग्रंथ--इसके नाम पर निम्नलिखित ग्रंथ प्राप्त है :-- किंतु यहाँ संभवतः एक ही 'शांडिल्य' का १. शांडिल्यस्मृति; २. शांडिल्यधर्मसूत्र; ३. शांडित्यतत्त्वसंकेत न हो कर, 'शांडिल्य पैतृक नाम धारण करने दीपिका (C. C.)| वाले अनेकानेक आचार्यों का निर्देश प्रतीत होता है। २. एक पैतृक नाम, जो निम्नलिखित आचार्यों के इनमें से 'शतपथ ब्राहाण' में निर्दिष्ट 'शांडिल्य' कौनसे लिए प्रयुक्त किया गया है :--१. उदर (छां. उ..१. आचार्य का शिष्य था, यह कहना कठिन है। | ९.३); २. सुयज्ञ (जै. उ. ब्रा. ४.१७.१)। ३. एक ऋषि, जो मरीचिपुत्र कश्यप ऋषि के वंश में तत्वज्ञान-'छांदोग्य उपनिषद' में शांडिल्य का उत्पन्न हुआ था। आगे चल कर, इसीके कुल में अग्नि ने तत्त्वज्ञान दिया गया है (छां. उ. ३.१५)। इस तत्त्वज्ञान जन्म लिया था, जिस कारण उसे 'शांडिल्यगोत्रीय' के अनुसार, ब्रह्मा को 'तज्जलान्' कहा गया है; एवं कहा जाता है (वैश्वदेवप्रयोग देखिये)। सारी सृष्टि इसी तत्त्व से प्रारंभ होती है, जीवित रहती है, एवं अंत में इसी तत्त्व में विलीन होती है, ऐसा सुमन्यु राजा ने इसे 'भक्ष्य-भोज्यादि' पक्षों की कहा गया है । शांडिल्य के इस तत्त्वज्ञान का तात्पर्य यही पर्वतप्राय राशि दान में प्रदान की थी (म. अनु. १३७. था कि, सृष्टि के समस्त भूतमात्रों के उत्पत्ति, स्थिति एवं २२)। इसने अन्यत्र बैलगाडी के दान को सुवर्ण-द्रव्य लय का अधिष्ठाता केवल एक ईश्वर ही है। आदि द्रव्यों के दान से श्रेष्ठ बताया है (म. अनु. ६४. १९; ६५.१९)। आत्मा का स्वरूप-शांडिल्य के तत्त्वज्ञान में 'आत्मा' ४. एक ऋषि, जिसने वैदिक मार्ग से विष्णु की पूजा का वर्णन अर्थपूर्ण एवं निश्चयात्मक शब्दों में किया गया न कर, अवैदिक मागों से उसकी उपासना करना चाहा। है, एवं उसके 'महत्तम' एवं 'लघुतम' ऐसे दो स्वरूप एक ग्रंथ की रचना कर इसने अपने इस अवैदिक तस्ववहाँ वर्णन किये गये हैं। इनमें से 'महत्तम' आत्मा प्रणाली का समर्थन भी किया। अनंत एवं सारे विश्व का व्यापन करनेवाला कहा गया इस पापकर्म के कारण, इसे 'नकवास की शिक्षा भुगहै, एवं 'लघुतम ' आत्मा अणुस्वरूपी वर्णन किया गया | तनी पड़ी, एवं आगे चल कर भृगवंश में जमक्षमि के रूप है। आत्मा का नकारात्मक वर्णन करनेवाले याज्ञवल्क्य के में इसे जन्म प्राप्त हुआ ( वृद्धहारितस्मृति. १८०-१९३)। तत्त्वज्ञान से शांडिल्य के इस तत्त्वज्ञान की तुलना अक्सर ५. ब्रह्मदेव का सारथि (कंद. ७.१.१२६ )। की जाती है (याज्ञवल्क्य वाजसनेय देखिये )। इन दोनों ६. एक शिवभक्त राजा । युवावस्था में प्रविष्ट होते तत्त्वज्ञानों की कथनपद्धति विभिन्न होते हुए भी, उन ही, कामासक्त बन कर यह अनेकानेक स्त्रियों पर दोनों में प्रणीत आत्मा के संबंधित तत्त्वज्ञान एक ही प्रतीत अत्याचार करने लगा। शिव की कृपा के कारण, साक्षात् होता है। यमधर्म भी इसे कुछ सज़ा नहीं कर सकता था। - शांडिल्य के अनुसार, मानवीय जीवन का अंतिम । अंत में शिव को इसके अत्याचार ज्ञान होते ही, ध्येय मृत्यु के पश्चात् आत्मन् में विलीन होना बताया उसने इसे एक हज़ार वर्षों तक कछुआ (कुर्म ) बनने का गया है। | शाप दिया (स्कंद. १.२.१२)।
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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