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शांडिल्य
प्राचीन चरित्रकोश
शांतनव
७. अग्नि का ज्येष्ठ पुत्र, जो कश्यप का ज्येष्ठ भाई शाताताप स्मृति ' आनंदाश्रम, पूना के द्वारा प्रकाशित की था (म. अनु. ५३.२६ कुं.)।
गयी है। शांडिल्यायन-गर्दभीमुख नामक आचार्य का पैतृक 'मिताक्षरा' (३.२९०), एवं विश्वरूप (३.२३६) नाम।
ने इसके स्मृति के उद्धरण उद्धत किये है। 'बृहत्शापातप शांडिल्यायन 'चेलक'-एक आचार्य, जिसका स्मृति' का निर्देश 'मिताक्षरा' में प्राप्त है (याज्ञ. ३. निर्देश शतपथ ब्राह्मण में प्राप्त है (श. बा. ९.५.१.६४) २९०)। 'वृद्धशातातप स्मृति' का, एवं उसके भाष्य इसका सही नाम चेलक था, एवं शांडिल्यायन इसका का निर्देश क्रमशः 'व्यवहारमातृका' (३०५) में, एवं पैतृक नाम था, जो इसे शांडिल्य का वंशज होने के कारण | हेमाद्रि ( ३.१.८०१) में प्राप्त है। प्राप्त हुआ था (श. ब्रा. १०.४.५.३) । इसके पुत्र का नाम शुक्ल यजुर्वेदशाखीय ब्राह्मणों में प्रचलित मातृगोत्रचैलकि जीवल था (श. बा.१०.४.५.३)। कई अभ्यासको पालन करने के परंपरा का निर्देश, इसकी स्मृति में पाया के अनुसार, प्रवाहण जैवल इसका ही पौत्र था। किंतु | जाता है। प्रवाहण स्वयं एक ब्राह्मण न हो कर राजा था । इसी कारण | शाद्वलायन--वसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । इस संबंध में निश्चित रूप से कहना कठिन है।
शांत--अहन् अथवा आप नामक वसु के चार पुत्रों दैव्यांपति नामक आचार्य ने अग्निचयन के संबंध में में से एक । इसके अन्य तीन भाइयों के नाम शम, इससे चर्चा की थी (श. बा. ९.५.१.१४)। ज्योति एवं मुनि थे (म. आ. ६०.२२; मत्स्य. ५.
शातकर्णि-(आंध्र. भविष्य.) एक आंध्रवंशीय २२)। राजा, जो विष्णु एवं ब्रह्मांड के अनुसार कृष्ण राजा का २. (स्वा. प्रिय.) एक राजा, जो प्रियव्रतपुत्र इध्मजिह पुत्र था। भागवत में इसे 'शांतकर्ण', वायु में इसे | राजा का पुत्र था । प्लक्षद्वीपान्तर्गत एक 'वर्ष' पर इसका 'सातकर्णि' एवं ब्रह्मांड में 'श्रीमल्लकर्णि' कहा गया है। राज्य था (भा. ५.२०.३)। - इसके पुत्र का नाम पूर्णोत्संग था (विष्णु. ४.२४.४५)। ३. (सो. पुरूरवस्.) एक राजा, जो आयु राजा का
२. (आंध्र. भविष्य.) एक राजा, जो मत्स्य एवं विष्ण | पुत्र था (ब्रह्मांड. ३.३.२४)। के अनुसार पूर्णोत्संग राजा का पुत्र था । इसने ५६ वर्षों। ४. तामस मनु के पुत्रों में से एक । तक राज्य किया था (मत्स्य. २७३.४)।
५. एक राजा, जो दुर्दम राजा की पत्नी सुभद्रा का ३. (आंध्र. भविष्य.) एक राजा, जो ब्रह्मांड के
पिता था (मार्क. ७२.४५, दुर्दम १. देखिये)। अनुसार पुरीषभीरु राजा का पुत्र था। वायु में इसे शांतकणे--शातकर्णि राजा का नामांतर । 'सातकणि कहा गया है।
शांतनव-एक व्याकरणकार, जो वेदों के स्वर के ४. (आंध्र. भविष्य.) एक राजा, जो विष्ण के | संबंध में विचार करनेवाले 'फिट् सूत्रों' का रचयिताअनुसार अहिमान् राजा का पुत्र, एवं शिवश्री राजा का माना जाता है। इसके द्वारा रचित सूत्रों के अंत में पिता था।
'शांतनवाचार्य प्रणीत' ऐसा स्पष्ट निर्देश प्राप्त है । इसका शातपर्णेय--धीर नामक आचार्य का पैतक नाम | सही नाम शंतनु था, किंतु 'तद्धित' प्रत्यय का उपयोग (श. ब्रा. १०.३.३.१)।
कर इसका 'शांतनव' नाम प्रचलित हुआ होगा। इसके - शातवनेय-एक राजा, जो भरद्वाज ऋषि का आश्रय- नाम से यह दक्षिण भारतीय प्रतीत होता है। दाता था (ऋ. १.५९.७)।
फिट्सूत्र--'फिट' का शब्दशः अर्थ 'प्रातिपदिक' शातातप--एक स्मृतिकार (याज्ञ. १.५)। इसकी | होता है। प्रातिपदिकों के लिए नैसर्गिक क्रम से उपयोजित छः अध्यायोंवाली एक गद्यपद्यात्मक स्मृति है, जो वेंकटेश्वर | 'उदात्त', 'अनुदात्त', एवं 'स्वरित ' स्वरों की जानप्रेस, एवं आनंदाश्रम, पूना के द्वारा प्रकाशित 'स्मृतिसंग्रह' कारी प्रदान करने के लिए इन सूत्रों की रचना की गयी में प्राप्त है।
है । इन सूत्रों की कुल संख्या ८७ हैं, जो निम्नलिखित शातातप स्मृति--श्री. मित्रा के द्वारा ८७ अध्याय एवं चार पादों (अध्यायों) में विभाजित की गयी है:-१. २३७६ श्लोकोवाली इसकी एक स्मृति प्रकाशित की गयी | अन्तोदात्तः २. आधुदात्तः ३. द्वितीयोदात्त; ४. है। इसके अतिरिक्त 'लघु-शातातप स्मृति ' एवं 'वृद्ध- | पर्यायोदात्त । प्रा. च. १२१]