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________________ शाट्यायनि प्राचीन चरित्रकोश शांडिल्य (जै. उ. बा. ९.१०; ३.१३.६; २८.५)। 'आश्व- रात्रि में सोते सोते गरुड के मन में विचार आया, 'इस लायन श्रौतसूत्र' में इसके अभिमतों का निर्देश 'शाट्या- तपस्विनी को अगर मैं अपने पंखों पर बिठा कर विष्णुलोक यनक' नाम से प्राप्त है (आश्व. श्री. १.४.१३)। ले जाऊं, तो बहुत ही अच्छा होगा'। गरुड के इस औद्धआर्टल के अनुसार, यह ब्राह्मण ग्रन्थ 'जैमिनीय ब्राह्मण' त्यपूर्ण विचारों के कारण, एक ही रात्रि में उसके पंख से काफी मिलता जुलता था। गिर गये, एवं वह पंखविहीन बन गया। जैमिनीय उपनिषद् ब्रह्मण (गाच्युपनिषद--इस ग्रंथ पश्चात् गरुड एवं गालव दोनों इसकी शरण में आये, का प्रमुख प्रणयिता भी शाट्याय नि माना जाता है । इस ग्रन्थ जिस कारण इसने उन्हें अनेकानेक वर प्रदान किये (म. में प्राप्त गुरुपरंपरा के अनुसार, यह ग्रन्थ सर्वप्रथम इंद्र ने उ. १११.१-१७; स्वंद. ६.८१-८२)। ज्वालायन नामक आचार्य को प्रदान किया, जिसने वह केकयदेशीय सुमना नामक राजकन्या से इसने पातिव्रत्य अपने शिष्य शाट्यायन को सिखाया। आगे चल कर के संबंध में उपदेश प्रदान किया था (म. अनु. १२३. यही ग्रंथ शाटयायन ने अपने शिष्य राम कातुजातेय | ८-२३)। वैयाघ्रपद्य को प्रदान किया। इन सारे आचायों में से, शांडिल्य-एक श्रेष्ठ आचार्य, जो अग्निकार्य से शट्याय नि ने इस ग्रन्थ को विशेष प्रतिष्ठा प्राप्त करायी संबंधित समस्त यज्ञप्रक्रिया में अधिकारी व्यक्ति माना (जै. उ. ब्रा. ४.१६-१७)। जाता था। बृहदारण्यक उपनिषद में इसे वात्स्य नामक शिष्यपरंपरा--इसके अनुगामी 'शाट्यायनिक.' | आचार्य का शिप्य कहा गया है (बृ. उ. ६.५.४ काण्व.) 'शाट्यायनक' अथवा 'शाट्याय निन' नाम से प्रसिद्ध 'शंडिल' का वंशज होने के कारण, इसे यह नाम प्राप्त थे, जिनका निर्देश सूत्रग्रंथों में, एवं 'शाट्यायन ब्राह्मण' में हुआ होगा। प्राप्त है (ला. श्री. ४.५.१८; १.२.२४; आ. श्री. ५. यज्ञप्रक्रियों का आचार्य-शतपथ ब्राह्मण के पाँचवे एवं - २३.३; आश्व. श्री. १.४.१३)। , उसके बाद के कांडों में, अग्नि से संबंधित जिन संस्कारों २. विश्वामित्रकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । का निर्देश प्राप्त है, वहाँ सर्वत्र इसका निर्देश इन प्रक्रियों शांडिल-शांडिल्य ऋषि के वंशजों के लिए प्रयक्त | का श्रेष्ठ आचार्य के नाते किया गया है (श. वा. ५.२. सामुहिक नाम ( ते. आ. १.२२.१०)। १५; १०.१.४.१०, ४.१.११, ६.३.५; ५.९, ९.४.४. 'शांड--एक उदार दाता, जिसने भरद्वाज ऋषि को १७) । शतपथ ब्राह्मण के इन सारे अध्यायों में विपुल दान प्रदान किया था (ऋ. ६.६३.९)। यज्ञाग्नि को 'शाण्डिल' कहा गया है, (श. ब्रा. १०.६. शांडिलायन-एक पैतृक नाम, जो वैदिक साहित्य ५.९)। में निम्नलिखित आचार्यों के लिए प्रयुक्त किया गया। शतपथ ब्राह्मण के अग्निकांड-शतपथ ब्राह्मण के छः ह: १. सुतमनस् (वं.बा.१ ): २. गंर्दभीमख (वं. | से नौ कांड 'अग्निचयन' से संबधित हैं, जिनमें कल ब्रा.२)। ६० अध्याय हैं । ये चार कांड 'अभि' अथवा 'षष्टिपथ' शांडिलि-वसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। सामूहिक नाम से प्रसिद्ध थे, एवं उनका अध्ययन अलग शांडिली--दक्ष प्रजापति की कन्या, जो धर्म ऋषि | किया जाता था। इन कांडो का अध्ययन करनेवाले की पत्नियों में से एक थी (म. आ. ६६.१७-२०)। आचार्यों को 'षष्टिपथक' कहा जाता था । इन सारे कांडों २. कौशिक ऋषि की पत्नी दीपिका का नामांतर | का प्रमुख आचार्य शांडिल्य माना गया है। ( दीर्घिका एवं कौशिक १४. देखिये)। ___शतपथ ब्राह्मण का दसवाँ कांड 'अग्निरहस्य कांड' ३. शांडिल्य ऋषि की तपस्विनी कन्या, जो स्वयंप्रभा | कहलाता है, जिसमें अग्निचयन के रहस्यतत्त्वों का निरुपण नाम से भी सुविख्यात थी। यह ऋषभ पर्वत पर तपस्या किया गया है। यहाँ भी शांडिल्य को इस विद्या का करती थी। प्रमुख आचार्य माना गया है । यज्ञ की वेदि की रचना गरुड का गर्वहरण-एक बार गालव ऋषि एवं करना, आदि विषयों में इसके मत पुनः पुनः उद्धृत किये पक्षिराज गरुड इसके आश्रम में अतिथि के नाते आये। | गये हैं । इसने उनका उत्तम आदरसत्कार किया, एवं रात्रि के 'बृहदारण्यक उपनिषद' में- इस ग्रंथ में इसे निम्नलिए उन्हें अपने आश्रम में ठहराया। | लिखित आचार्यों का शिष्य कहा गया है:- १. कैशोर्य ९५९
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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