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________________ शर शौरदेव्य प्राचीन चरित्रकोश शरभ होती है (पिशेल, वेदिशे स्टूडियन. १.५-७)। शूरदेव उसे चार प्रकार के धनुर्वेद एवं शस्त्र-शास्त्रों की शिक्षा का पुत्र होने के कारण, इसे 'शौरदेव्य' पैतृक नाम | प्रदान की। प्राप्त हुआ होगा। शरद्वसु--शूलिन् नामक शिवावतार का शिष्य । शरगुल्म--रामसेना का एक वानर (वा. रा. कि. शरभ--एक ऋषि, जिसे इंद्र ने विपुल धन प्रदान ४१.३)। किया था (ऋ. ८.१००.६)। शरण-वासुकिकुलोत्पन्न एक नाग, जो जनमेजय के | २. चेदिराज धृष्टकेतु का भाई, जो शिशुपाल के पुत्रों में सर्पसत्र में दग्ध हुआ था (म. आ. ५२.६)। से एक था। भारतीय युद्ध में यह पांडवों के पक्ष में शरद्वत्--(सो. गुह्यु.) एक राजा, जो मत्स्य के शामिल था (म. उ. ४९.४३ )। अनुसार सेतु राजा का पुत्र था (मत्स्य. ४८.६)। इसे | युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ के समय, शुक्तिसा नगरी में 'अंगार' नामांतर भी प्राप्त था (अंगार देखिये)। राज्य करनेवाले शरभ ने सर्वप्रथम अर्जुन से युद्ध २. एक ऋषि, जो प्रायोपवेशन करनेवाले परिक्षित् करना चाहा। किंतु पश्चात् इसने अर्जुन को करभार राजा से मिलने आया था। अर्पण कर, अश्वमेधीय अश्व की विधिपूर्वक पूजा की (म. ३. एक ऋषि, जिसे त्रिधामा ऋषि ने 'वायुपुराण' | आश्व. ८४.३)। कथन किया था, जो इसने आगे चल कर त्रिविष्ट को ___३. गांधारराज सुबल का पुत्र, जो शकुनि के ग्यारह कथन किया था (वायु. १०३.६१)। भाइयों में से एक था। भीमसेन के द्वारा किये गये ४. सावर्णि मन्वंतर के सप्तर्षियों में से एक। रात्रियुद्ध में उसने इसका वध किया (म. द्रो.१३२.२१)। ५. अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार एवं मंत्रकार, जो ४. एक दानव, जो कश्यप एवं दनु के प्रमुख चौंतीस अंगिरस् ऋषि का पुत्र था। पुत्रों में से एक था (म. आ. ५९.२६)। ६. गौतमगोत्रीय एक ऋषि, जो उतथ्य ऋषि का शिष्य | था (वायु. ६४.२६)। ५. तक्षककुल में उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजय के ७. गौतम ऋषि का नामान्तर (गौतम देखिये)। सर्पसत्र में दग्ध हुआ था-(म. आ. ५२.९ पाठ.)। | शरद्वत् गौतम--एक महर्षि, जो गौतम ऋषि एवं | ६. ऐरावतकुल में उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजय के . अहल्या का पुत्र था। वायु में इसे 'शारद्वत' कहा गया है सर्पसत्र में दग्ध हुआ था (मः आ. ५२.१०)। (वायु. ९९.२०१)। ७. यमसभा का एक ऋषि (म. स. ८.१४)। तपोभंग--यह शुरू से ही अत्यंत बुद्धिमान था. तथा ८. यम के पाँच पुत्रों में से एक। वेदाध्ययन के साथ-साथ धनुर्वेद में भी प्रवीण था। इसकी ९. एक रामपक्षीय वानर, जो साल्वेय पर्वत का तपस्या से डर कर, इंद्र ने तपोभंग करने के लिए | निवासी था (वा. रा. यु. २६.३०)। जालपदी नामक अप्सरा इसके पास भेज दी । उसे देख १०. एक विध्यपर्वतवासी वानरजाति, जो हरि एवं कर इसके धनुष एवं बाण पृथ्वी पर गिर पड़े, एवं इसका | पुलह की संतान थी (ब्रह्मांड. ३.७.१७४ )। वीर्य दर्भासन पर गिर पड़ा। ११. एक वानर, जो जांबवत् वानर का पुत्र था। आगे कृप एवं कृपी का जन्म--पश्चात् यह धनुर्बाण, मृग- चल कर इसीसे ही 'शरभ' नामक वानरजाति का चर्म, आश्रम आदि छोड़ कर वहाँ से चला गया। | निर्माण हुआ (ब्रह्मांड. ३.७.३०४)। . दर्भासन पर पड़े हुए इसके वीर्य के दो भाग हुए, जिनसे | १२. कृष्ण एवं रुक्मिणी के पुत्रों में से एक (वायु. आगे चल कर एक पुत्र एवं एक कन्या उत्पन्न हुई । उन दोनों | ९६.२३७)। का सुविख्यात कुरुवंशीय राजा शांतनु ने कृपापूर्वक पालन १३. शिव की क्रोधमूर्ति वीरभद्र का एक अवतार, किया, जिस कारण उन्हें 'कृष' एवं 'कृपी' नाम प्राप्त | जो उसने नृसिंह को पराजित करने के लिए धारण किया हुए । इसकी इन संतानों में से कृर कौरव पांण्डवों का | था। इसने नृसिंह को परास्त कर, उसका चमड़ा एक आचार्य बन गया, एवं कृपी का विवाह द्रोणाचार्य के साथ | वसन के नाते अपने शरीर पर ओढ लिया, जिस कारण हुआ (म. आ. १२०)। पश्चात् इसने गुप्तरूप से | शिव को 'नृसिंहकृत्तिवसन' उपाधि प्राप्त हुई (शिव. कृपाचार्य को उसके गोत्र आदि का परिचय दिया, एवं | शत. १२)।
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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