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शरभ
प्राचीन चरित्रकोश
१४. एक ऋषि, जिसे 'निगमोद्बोधक तीर्थ' में स्नान करने के कारण, शिवकर्मन् नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था (पद्म. उ. २०१३ २०४ - २०५ ) । इसीके कारण विकट नामक राक्षस का उद्धार हुआ था ( विकट ४. देखिये) ।
शरभंग - गौतम कुलोत्पन्न एक ब्रह्मर्षि, जो दंडकारण्य में तप करता था। दंडकारण्य में गोदावरी नदी के तर पर इसका आश्रम था (म. ८२.२९ २६१.४० ) । वाल्मीकि रामायण में इसका आश्रम मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित होने का निर्देश प्राप्त है ( वा. रा. अर. ५.३६ ) । किंतु वहाँ 'मंदाकिनी ' का संकेत 'गोदावरी नदी की ओर ही होना संभव अधिक प्रतीत होता है। महाभारत में अन्यत्र इसका आश्रमस्थान उत्तरासंद । में बताया गया है (म. पं. ८८.८ पाउं ) ।
तपः सामर्थ्य - विराध राक्षस के कथनानुसार, राम दाशरथि अपने वनवास काल में इससे मिलने के लिए इसके आश्रम में आया था उस समय इसके तप:समय से प्रसन्न होकर, इंद्र स्वयं अपना रथ लेकर इसे ब्रह्मलोक में ले जाने के लिए उपस्थित हुआ था । किंतु राम के दर्शन की अभिलाषा मन में रखनेवाले इस ऋ ने इंद्र का यह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया एवं यह राने की प्रतीक्षा करते आश्रम में ही बैठा रहा।
राम से भेंट - - राम के इसके आश्रम में आते ही, इसने 'उसका उचित आदर-सत्कार किया एवं भरने तपःसामर्थ्य की सहायता से प्राप्त होनेवाले स्वर्गलोक एवं ब्रह्म छोड़ को स्वीकार करने की प्रार्थना राम से इसने की किंतु राम ने इसका यह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया एवं स्वयं के ही तप:साधन से स्वर्गलोक प्राप्त करने का अपना निर्धार प्रकट किया ।
तदुतराम ने इससे तपस्या के लिए सुयोग्य स्थान दर्शाने की प्रार्थना की । मंदाकिनी नदी के तट पर सुतीक्ष्ण ऋषि के आश्रम के पास तपस्या करने की सूचना राम को इसने प्रदान की। पश्चात् इसने अभि में अपना शरीर शोक दिया एवं इस प्रकार वह स्वर्गलोक चला गया (बा. रा. अर. ५) ।
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शरयु वीर नामक अभि की पानी।
शरारि एक वानर, को 'हनुमत् के साथ सीताशोध के लिए दक्षिण दिशा की ओर गया था ( वा. रा. कि. ४१) ।
शर्मिष्ठा
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शरासन धृतराष्ट्रपुत्र' चित्रशरासन का नामांतर ( म. द्रो. १११.१९ ) ।
शरीर -- एक आचार्य, जो वेदमित्र शाकल्य का शिष्य था ( विष्णु. ३.४.२२ ) ।
शरू -- एक देवगंधर्व, जो अर्जुन के जन्मोत्सव में उपस्थित था ( म. आ. ११४.४७ पाठ. ) ।
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शरूथ (सो, मु.) एक राजा, जो वायु के अनुसार दुष्कृत ( दुष्यंत) राजा का पुत्र था ( वायु. ९९.५ ) । पाठभेद - ( ब्रह्मांड पुराण ) - ' सरुप्य ' | शर्कर - शिशुमार ऋषि का नामांतर ( शिशुमार १. देखिये) ।
शर्मिन्गस्य कुलोत्पन्न एक ब्राह्मण, जो गंगायमुना नदियों के बीच यामुन पर्वत के हाटी में स्थित पर्णशाला नामक ग्राम में रहता था तिलांजलि दान का माहात्म्य बताने के लिए, इसकी कथा भीष्म ने युधिडिर को कथन की थी (म. अनु. ६८) ।
पर्णशाला ग्राम में शर्मिन नाम के ही दो ब्राह्मण रहते थे। एक बार यम ने अपने एक दूत को इसे पकड़ कर लाने के लिए कहा, किंतु उसने गलती से ईसीके नाम के अपने दूत की भूल यम को शत होते ही, उसने उस अन्य ब्राह्मण को पकड़ कर यन के सम्मुख पेश किया। ब्राह्मण को अन्न, जल, तिल के दान का महत्त्व कथन किया, एवं उसे सम्मानपूर्वक बिदा किया।
पश्चात् यमदूत इसे पकड़ कर ले आये। किंतु इसके मृत्युयोग की घटिका बीत जाने के कारण, यम ने इसे भी पूर्वोक्त दान का महत्व कथन किया एवं इसे विदा कर दिया।
शर्मिन नामक दैत्य की। जो ययाति कन्या, राजा की अत्यंत प्रिय द्वितीय पत्नी थी ( देवयानी एवं ययाति देखिये) ।
इसने अपने असुर जाति के कल्याण के लिए देवयानी का दास्यत्व स्वीकार लिया था (म. आ. ७३–७५; भा. ९.१८ मय २७-२९) । किंतु आगे चलकर, ययाति राजा ने देवयानी के साथ इसे भी अपनी रानी बनाया। ययाति से इसे अनु दृ एवं पूरु नामक तीन पुत्र
उत्पन्न हुए ।
वाल्मीकि रामायण एवं वायु में इसका पूरु नामक केवल एक ही पुत्र दिया गया है ( वा. रा. उ. ५८.६९; वायु. २.७)।
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