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शंबुक
प्राचीन चरित्रकोश
शर शौरदेव्य
ने राम के सम्मुख पेश की, एवं एक राजा के नाते उसे । ४. एक यादव राजकुमार, जो श्रीकृष्ण एवं रुक्मिणी इस घटना के लिए दोषी ठहराया।
के पुत्रों में से एक था (म. अनु. १४.३३)। - इसी समय राम को ज्ञात हुआ कि, शंबूक के वर्णीतर५. एक धर्मप्रवण प्राचीन राजा, जिसने जीवन में के पाप के कारण, ब्राह्मणपुत्र के अपमृत्यु की घटना घटित कभी मांस नहीं खाया था (म. अनु. ११५.६६)। हुई है । यह ज्ञात होते ही, राम विमान में बैठ कर दक्षिणा- | - ६. ग्यारह रुद्रों में से एक (मत्स्य. १५३.१९)। पथ में शैवलक के उत्तर में स्थित जनस्थान में गया, एवं ७. ब्रह्मसावर्णि मन्वन्तर का इंद्र, जो विष्वक्सेन का वहाँ तपस्या करनेवाले इस शूद्रजातीय मुनि का उसने वध मित्र था (भा. ८.१३.२२)। किया। इसका वध होते ही मृत हुआ ब्राह्मणपुत्र पुनः ८. शुक एवं पीवरी का पुत्र (ब्रह्मांड. ३.८.९३)। जीवित हुआ।
९. सत्य देवो में से एक । इसी प्रकार की एक कथा मांधातृ राजा के संबंध में । १०. सुख देवों में से एक। भी प्राप्त है, किंतु वहाँ मांधातृ राजा ने शूद्र मुनि का वध ११. विरोचन दैत्य के छः पुत्रों में से एक (वायु. न कर, अपनी तपस्या के प्रभाव से ब्राह्मणपुत्र को पुनः | ६७.७६-८१)। जीवित करने का निर्देश वहाँ प्राप्त है (पद्म. उ. ५७)। १२. एक राक्षस, जो संवाद राक्षस का पुत्र था। __ शंबककथा का अन्वयार्थ--चातुर्वर्ण्य में हर एक इसके पुत्रों के नाम राजाज एवं गोम थे (ब्रह्मांड. ३. वर्ण को अपना नियत कर्तव्य निभाना चाहिये, एवं | ५.४०)। वर्णान्तर नहीं करना चाहिये, क्योंकि, ऐसे वर्णान्तर से १३. एक ऋषि, जिसने राम को श्राद्ध विधि, भस्मसमाज की रचना बिगड़ जाने की संभावना है, इस तत्त्व | माहात्म्य एवं शिवपूजाविधि आदि बतायी थी (पन. पा. के प्रतिपादन के लिए शंबूक की कथा महाभारत एवं १०६)। रामायण में दी गयी है।
१४. एक ब्राह्मण, जो पुराणों से 'शलाका प्रश्न' कथन बौद्ध धर्म जैसे संन्यासधर्म को प्रधानता देनेवाले धर्म | करने के कार्य में प्रवीण था (पन. पा. १०४)। के प्रचार के पश्चात् , समाज के हरएक व्यक्ति का झुकाव शंभुवा-धृतराष्ट्र की एक पत्नी, जो गांधारराज सुबल अपना नियत कर्तव्य छोड़ कर, संन्यासधर्म को स्वीकार | राजा की कन्या, एवं गांधारी की बहन थी (म. आ.१०४, करने की ओर होने लगा। उस समय समाज की संन्यासः | १११३% १क्ति. ५)। प्रवणता कम करने के हेतु उपर्युक्त कथा की रचना की | शंमद् आंगिरस--एक सामद्रष्टा ऋषि (पं. ब्रा. गयी होगी, जिसमें तपश्चर्या के समान अनुत्पादक व्यवहार | १५.५.१०-११)। अपने साम के कारण इसे स्वर्ग की की कटु आलोचना की गयी है ।
| प्राप्ति हुई। आगे चल कर पौराणिक साहित्य के रचनाकाल में | शम्याक--शंपाक नामक ब्राह्मण का नामांतर । भक्तिमार्ग की प्रबलता समाज में पुनः एक बार बढ़| शम्यु बार्हस्पत्य-एक आचार्य (श. ब्रा. १.९.१. गयी, जिस समय इस कथा को बदल कर उसका परिवर्तन | २५)। तपस्याप्रधान कथा में किया जाने लगा, जिसका यथार्थ | शयु-एक ऋषि, जो अश्विनों का अश्रित था । अश्विनों रूप मांधात की कथा में पाया जाता है।
ने इसके वंध्या गाय को दुग्धा बनाया था (ऋ. १.११२. २. सहिष्णु नामक शिवावतार का एक शिष्य। । १६; ११६.२२; ११७.२०)।
३. एक आदित्य, जो कश्यप एवं दिति के पुत्रों में शय्याति-शर्यात राजा का नामांतर। से एक था।
शर आर्चत्क-एक ऋषि, जिसे अश्विनों ने गहरे ४. स्कंद का एक सैनिक (म. श. ४४.७१)। कुएँ से पानी निकाल कर दिया था (ऋ. १.११६.२२)। शंभु--कश्यप एवं सुरभि के पुत्रों में से एक। संभवतः 'आर्चत्क' उसका पैतृक नाम (= ऋचत्क का
२. (सो. नाभाग.) एक राजा, जो भागवत के अनुसार | पुत्र ) न हो कर, केवल इसकी उपाधि मात्र ही थी। अंबरीष राजा का कनिष्ठ पुत्र था (भा. ९.६.१)। । शर शौरदेव्य-एक राजा, जिसने तीन ऋषियों को . ३. एक अग्नि, जो तप नामक अग्नि का पुत्र था (म. | एक ही बछड़ा दान में दिया था (ऋ. ८.७०.१३-१५)। व. २११.५)।
| ऋग्वेद में इसकी यह 'दानस्तुति' व्यंगात्मक प्रतीत ९४७