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शबरी
प्राचीन चरित्रकोश
शमीक
अथवा स्त्रीपुरुष भेदाभेद आदि का कुछ भी महत्त्व नहीं शमि-(सो. उशी.) एक राजा, जो भागवत के है । महत्त्व है केवल भक्ति का, जिससे कोई भी व्यक्ति अनुसार उशीनर राजा का पुत्र था (९.२३.३)। परमपद प्राप्त कर सकता है। (अ. रा. अर.१०.१-४४)। शमिन्-(सो. विदु.) एक राजा, जो मस्य के
पौराणिक साहित्य में--मम आदि उत्तरकालीन पौरा- अनुसार शोणाश्च राजा का, एवं ब्रह्मांड के अनुसार शूर णिक साहित्य में 'अध्यात्मरामायण' की ही कथा उद्धृत | राजा का पुत्र था। इसके पुत्र का नाम प्रतिक्षत्र था की गयी है (पन्न. उ. २६९.२६५-२६८), जिस कारण (मत्स्य. ४४.७९-८०; ब्रह्मांड. ३.७१.१३८)। यह कथा भारत के सभी प्रांतिक भाषाओं में रामभक्ति शमीक--अंगिरस् कुलोत्पन्न एक ऋषि, जिसकी पत्नी के प्रचार का एक सर्वश्रेष्ठ माध्यम बन गयी। | का नाम गौ, एवं पुत्र का नाम शंगी था। यह आजन्म
शबल--एक नाग, जो कन्या एवं कद्र के पुत्रों में से मौनव्रत का पालन करता था। यह गौओं के रहने के स्थान एक था (म. आ. ३१.७)।
में रहता था, एवं गौओं का दूध पीते समय बछड़ों के २. एक चान, जो सरमा का पत्र, एतं यम वैवस्वत मुख से जो फेन निकलता था, उसीको खा-पी कर तपस्या का अनुचर था (ब्रह्मांड. ३.७.११२)।
करता था। ३. दक्ष एवं असिनी के एक हज़ार पुत्रों में से एक। परिक्षित् से भेट--एक बार परिक्षित् राजा मृगया पाटभेट-शिवलायभा.६.५.२४)।
करता हुआ इसके आश्रम में आ पहुँचा। किन्तु इसका शबलाश्व--(स.दिष्ट.) एक राजा, जो कुरु राजा मौनव्रत होने के कारण, इसने उससे कोई भी भाषण का पौत्र, एवं अतिक्षित राजा के सात पुत्रों में से एक था। नहीं किया। यह इसका औद्धत्य समझ कर, परिक्षित् इससे इसके अन्य भाइयों के नाम परिक्षित् , आदिराज, विराज, अत्यंत क्रुद्ध हुआ, एवं उसने इसकी अवहेलना करने शाल्मलि, उच्चैःश्रवस , भङ्गकार एवं जितारि थे (म. आ. के हेतु, इसके गले में एक मृतसर्प डाल दिया।
कृश नामक इसके शिष्य ने यह घटना इसके पुत्र शम-एक राजा, जो धर्म प्रजापति के तीन पुत्रों में गंगी को बतायी । अपने पिता के अपमान की यह से एक था। इसके अन्य दो भाइयों के नाम काम एवं कहानी सुन कर, शृंगी अत्यंत क्रुद्ध हुआ, एवं उसने हर्ष, तथा पत्नी का नाम प्राप्ति था (म. आ.६०.३१)। शापवाणी कह दी, 'सात दिन के अंदर नागराज तक्षक
२. (सो. मगध, भविष्य,) एक राजा, जो धर्मसूत्र के दंश से परिक्षित् राजा की मृत्यु हो जायेगी। नामक राजा का पुत्र, एवं घुमत्सेन राजा का पिता था परिक्षित् की मृत्यु-अपने पुत्र के द्वारा, परिक्षित् (भा. ९.२२.४८ ) । विष्णु एवं ब्रह्मांड में इसे 'सुश्रम' राजा को दिये गये शाप का वृत्तांत ज्ञात होते ही, इसने एवं वायु में इसे ' सुव्रत' कहा गया है।
अपने पुत्र की अत्यंत कटु आलोचना की। पश्चात् अपने ३. एक वमु, जो अहः नामक वसु के चार पुत्रों में से गौरमुख नामक शिष्य के द्वारा परिक्षित् राजा को शुंगी एक था। इसके अन्य भाइयों के नाम ज्योति, शांत एवं के इस शाप का समाचार, भेजा, एवं उसे सावधान रहने मुनि थे (म. आ. ६०.२२)। पाठभेद-भांडारकर के लिए कहा। किन्तु अंत में यह चेतावती विफल हो संहिता-'श्रम।
कर, तक्षकदंश से परिक्षित् राजा की मृत्यु हो ही गयी ४. आयु राजा का पुत्र (ब्रह्मांड. ३.३.२४)। (म. आ. ३६.३८; भा. १:१८)। ५. सुखदेवों में से एक।
गरुड़वंशीय पक्षियों की रक्षा--भारतीय युद्ध के समय ६. नंदिवेगकुलोत्पन्न एक कुलांगार राजा, जिसने अपने गरुड़वंश में उत्पन्न पिंगाक्ष, विबोध, सुपुत्र, एवं सुमुख दुर्व्यवहार के कारण, अपने वंश एवं राज्य के लोगों का नामक पक्षी सुप्रतीक नामक हाथी के घंटा के नीचे नाश किया (म. उ. ८२.१७)।
छिप कर बच गये। आगे चल कर इसने उन्हें अपने शमठ-एक त्रपि, जो गयाशीर पर्वत पर 'ब्रह्मसर' आश्रम में ला कर,एवं उनका धीरज बँधा कर, उन्हें सुरक्षित सरोवर के पास निवास करता था। इसने वनवासी पांडवों | स्थल पर पहुँचाया (मार्क. २.४४३.८६ )। को अमूर्तरयस्-पुत्र गय राजा की कथा कथन की थी २. (सो. क्रोष्ट.) एक राजा, जो वायु एवं विष्णु के
अनुसार शूर राजा का पुत्र था । विष्णु, भागवत एवं शमन--सावर्णि मनु के पुत्रों में से एक । | मत्स्य में, इसे 'सत्यप्रिय' कहा गया है। इसकी माता का प्रा. च. ११९]
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