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________________ शनि प्राचीन चरित्रकोश शबरी को सुख एवं समृद्धि प्रदान करने की आज्ञा इसे दी | २. कीकट देश में रहनेवाला एक शिवभक्त अंत्यज, (स्कंद. ५.१.५०)। जो चिताभस्म की प्राप्ति के लिए स्वयं को दग्ध करने के ___ पराक्रम--शिव एवं त्रिपुर के युद्ध में, इसने शिव | लिए प्रवृत्त हुआ था ( स्कंद. ३.३.१७ )। के रथ पर आरूढ हो कर नरकासुर से युद्ध किया था | ३. एक विष्णुभक्त अंत्यज, जो तुलसीपत्र के प्रसाद से (भा. ८.१०.३३) । एक बार अश्वत्थ एवं पिप्पल | यमदूतों के पंजे से मुक्त हुआ (पद्म. पा. २०)। अगत्स्य ऋषि को अत्यधिक त्रस्त करने लगे, जिस कारण ४. अमिताभ देवों में से एक । इसने उनका वध किया था (ब्रह्म. ११८)। शबर काक्षीवत--एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०. दशरथ राजा से युद्ध-ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से | १६९)। शनि जब रोहिणी नक्षत्र को पीड़ित करता है (रोहिणी- शवरी-शबर जाति की एक स्त्री, जो पंपासरोवर शकट का भेदन), तब पृथ्वी के मनुष्यों के लिए वह एक के पश्चिमी तट पर रहनेवाले मातंग ऋषि की परिचारिका अशुभ योग माना जाता है । रोहिणी नक्षत्र का देवता थी। राम के प्रति अनन्य भक्ति के कारण, इसे 'सिद्धा,' प्रजापति होता है, जिस कारण शनि के द्वारा रोहिणी- 'श्रमणा' आदि श्रेष्ठ उपाधियाँ प्राप्त हुई, एवं श्रेष्ठ शकट का भेद होने पर उसका दुष्परिणाम प्रजापति पर | भक्ति की साकार प्रतिमा यह माने जाने लगी। हो कर, सारे पृथ्वी पर लोकक्षय होता है। | राम से भेंट-- कबंध राक्षस के कथनानुसार, राम दशरथ राजा के राज्यकाल में ऐसा ही कुयोग उत्पन्न | लक्ष्मण सीता का शोध करते मतंगवनं आ पहुँचे। वहाँ हुआ था। उस समय दशरथ राजा ने शनि से युद्ध | इसने उनका उचित आदरसत्कार किया, एवं कहा, 'आपके कर, इसे रोहिणीशकट के भेदन से परावृत्त किया । उस आने से पूर्व ही मातंग ऋषि का स्वर्गवास हुआ। अब समय दशरथ के द्वारा शनि का गुणगान किये जाने उन्हीं के आदेश से मैं आपकी प्रतीक्षा कर रही हूँ। पर. इसने उसे आशीर्वाद दिया, 'जो लोग अपनी प्रिय राम का स्वागत -इतना कह कर डायरी ने राम के वस्तुओं का दान कर मेरी आसना करेंगे, उनकी में रक्षा भोजन के लिए वन के विविध कन्दमूल उन्हें अर्पण करूँगा। | किये (वा. रा. अर. ७४.१७) । तत्पश्चात् मतंगवन में शंतनु--कुरुवंशीय 'शांतनु' राजा का नामांतर | स्थित मतंग ऋषि का तपस्या एवं यज्ञ का स्थान, (शांतनु तथा शांतनव देखिये)। | 'प्रत्यक्स्थली' नामक यज्ञवेदी, 'सप्तसागर' नामक तीर्थ शबर--एक म्लेंच्छ जातिविशेष, जो दक्षिणापथ प्रदेश आदि का दर्शन इसने राम को कराया। के निवासी थे। वायु में इन्हें 'दक्षिणापथवासिनः' कहा। स्वर्गप्राप्ति--पश्चात् राम की अनुज्ञा से इसने अग्नि गया है, एवं इनका निर्देश आभीर, आटव्य, पुलिंद, प्रदीप्त किया, एवं उसमें स्वयं की आहुति दे कर यह वैदर्भ, दण्डक आदि लोगों के साथ प्राप्त है ( वायु. ४५. स्वर्गलोक वासी प्रष्ट हुई। १२६)। ___ अध्यात्म रामायण में - इस ग्रंथ में शबरी के हीन ब्राह्मण ग्रंथों में-ऐतरेय ब्राह्मण में, विश्वामित्र ऋषि के जाति पर विशेष जोर दिया है। रामभक्तिसांप्रदाय का ज्येष्ठ पचास पुत्र उसी के ही शाप से आंध्र, पुण्ड, शबर, प्रचार करने के दृष्टि से इसकी जीवनगाथा वहाँ दी गयी पुलिंद एवं मूतिब आदि म्लेंच्छ बनने का निर्देश प्राप्त है । है, जिससे यह सष्ट हो जाये कि, रामभक्ति भेदभाव से (ऐ. ब्रा. ७.१८.२, सां. श्री. १५.२६.६)। ये लोग ऊपर उठ कर सब को मुक्ति प्रदान करती है (भक्तिदक्षिण भारत में पेन्नार नदी के प्रदेश में रहते थे। मुक्तिविधायनी भगवतः रामचन्द्रस्य)। इसी कारण रामायण में प्राप्त शबरी की कथा भी यही संकेत को शबरी की गुरुभक्ति, सेवाभाव, तपस्या एवं अपार रामभक्ति पुष्टि प्रदान करती है। किन्तु इन लोगों की अन्य कई का इस कथा में सविस्तृत वर्णन किया गया है। बस्तियाँ राजपुताना, हिमालय प्रदेश आदि में थी। इस कथा के अनुसार, शबरी ने राम का उचित महाभारत के अनुसार, ये लोग पहले क्षत्रिय थे, किंतु आदरसत्कार कर, उसे प्रश्न किया, 'मैं मूढ़ एवं हीन जाति बाद में हीन आचारों के कारण म्लेंच्छ बन गये । भारतीय में उत्पन्न होने के कारण, आपके दर्शन एवं उपासना की युद्ध में ये लोग कौरवों के पक्ष में शामिल थे, जहाँ सात्यकि योग्यता नही रखती हूँ'। इस पर राम ने इसे उत्तर ने इनका संहार किया था (म. द्रो. ९५.३८)। दिया, 'परमेश्वरप्राप्ति के लिए जाति की उच्चनीचता,
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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