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________________ शंग शंग शास्त्रायाने आत्रेय -- एक आचार्य, जो नगरिन् जानश्रुतेय नामक आचार्य का शिष्य था (जै. उ. ब्रा. ३. ४०. १ ) । ' शास्त्रायन' का वंशज होने के कारण, इसे 'शास्त्रायनि ' पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा । प्राचीन चरित्रकोश शची पौलोमी -- एक वैदिक सूक्तद्रष्ट्री, जो पुलोमन् राजा की कन्या थी । इसके द्वारा रचित सूक्त में सौत का नाश करने के लिए प्रार्थना की गयी है (ऋ. १०. १५९)। पौराणिक साहित्य में - इस साहित्य में इसे इन्द्र की पत्नी एवं जयन्त की माता कहा गया है ( ब्रह्मांड. ३.६. २३) इन्द्र- नहुष संघर्ष में इसने महत्त्वपूर्ण भाग लिया था (नहुष २. देखिये) । इसका सूर्य के साथ संवाद हुआ था (म. अनु. १४.५-६ कुं.) । एक था (म. आ. ५९.२८ ) । २. (सो. वसु. ) एक यादव, जो वसुदेव एवं रोहिणी के पुत्रों में से एक था। कृष्ण के साथ, यह उपलव्य नगरी में पांडवों से मिलने गया था। शतजित् अपनी ओर आकृष्ट किया, एवं इस प्रकार असुरों को पराजित किया । ये शुक्र के प्रमुख शिष्यों में से दो थे, एवं असुरपक्ष को विजय प्राप्त कराने के हेतु शुक्र ने इन्हें असुरों का प्रमुख गुरु बनाया था। किंतु अंत में देवों ने इन्हें सोम शठ - एक दानव, जो कश्यप एवं दनु के पुत्रों में से की लालच दिखा कर अपने पक्ष में दाखल कराया, एवं समय छलांग मारी थी ( वा. रा. सुं. ६.२४ ) । ४. वसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ऋषिगण । शंड -- शंडामर्क नामक ऋषिद्वय में से एक (शेडाम देखिये) । २. एक कुष्मांड पिशाच, जो कपि नामक पिशाच के दो पुत्रों में से एक था। इसके भाई का नाम अज था। इसकी जंतुधना, एवं ब्रह्मधामा नामक दो कन्याएँ थीं, जिनका विवाह क्रमशः यक्ष एवं रक्षस् से हुआ था । शेड की इन दोनों कन्याओं का वंशविस्तार पुराणों में प्राप्त है (ब्रह्मांड. ३.७.७४–९७ ) । आगे चल कर, देवों के द्वारा यज्ञ प्रारंभ करते ही, सोमप्राप्ति की आशा से ये उपस्थित हुए। किंतु देवों ने इन्हें सोम देने से साफ इन्कार किया, एवं फजिहत कर इन्हें यज्ञस्थान से दूर भगा दिया ( तै. सं. ६.४.१० तै. बा. १.१.१ ) । पौराणिक साहित्य में - इस साहित्य में इन्हें शुक्र एवं गो के चार पुत्रों में से दो कहा गया है, एवं इनके अन्य दो भाइयों के नाम त्वष्ट एवं वरत्रिन् बताये गये हैं। प्रल्हाद के गुरु -- असुरराज हिरण्यकशिपु ने इन्हें ३. एक राक्षस, जिसके घर पर हनुमत् ने लंकादहन के अपने पुत्र प्रह्लाद का गुरु नियुक्त किया था, किंतु . यह कार्य भी ये सुयोग्य प्रकार से पूरा न कर सकें (भा. ७.५.१) । इस प्रकार असुरों को पराजित करने के कार्य में देवपक्ष सफल बन गया ( वायु. ९८.६२-६७; मत्स्य. ४७.५४६ २२९.३३, ब्रह्मांड. ३.७२-७३ ) । शंडामर्क -- एक ऋषिद्वय, जो असुरों का पुरोहित था ( तै. सं. ६.४.१०.१९; मै. सं. ४.६.३; तै. बा. १.१.१. ५; श. ब्रा. ४.२.१.४-६ ) । वैदिक साहित्य में इन दोनों का अलग-अलग निर्देश भी प्राप्त है ( वा. सं. ७.२.१२१३, १६.१७ ) । ' शुक्रामंधिग्रह ' ग्रहण करने की पद्धति इन दो पुरोहितों के कारण प्रस्थापित हुई थी ( तै. सं. ६. ४. १०) । असुरों के पुरोहित - बृहस्पति जिस प्रकार देवों का पुरोहित था, उसी प्रकार शेड एवं मर्क असुरों के पुरोहित थे। इन्हींके कारण असुर-पक्ष सदैव अजेय रहता था । अंत में इन्हें सोम की लालच दिखा कर, देवों ने इन्हें ९३८ शंडिल - कश्यप कुलोत्पन्न एक गोत्रकार । २. अट्ठाइस व्यासों में से एक ( व्यास पाराशर देखिये) । शत-- जंभासुर के शतंदुदुभि नामक पुत्र का नामांतर ( वायु. ६७.७८ ) । शतकिलाक -- जैगीषव्य ऋषि का पिता । शतगामि-- जटायु के पुत्रों में से एक (मत्स्य. ६. ३६, पद्म. सृ. ६) । शतगुण -- एक देवगंधर्व, जो कश्यप एवं क्रोधा के पुत्रों में से एक था ( ब्रह्मांड. ३.६.३९ ) । शतग्रीव - एक दानव, जो कश्यप एवं दनु के पुत्रों में से एक था ( ब्रह्मांड. ३.६.११ ) । शतघंटा -- स्कंद की अनुचरी एक मातृका (म. श. ४५.११) । शतचंद्र -- कौरव पक्ष का एक योद्धा, जो गांधारराज सुबल का पुत्र, एवं शकुनि का भाई था । भीमसेन ने इसका वध किया ( म. द्रो. १३२.२० ) । शतजित् - - ( स्वा. प्रिय.) एक राजा, जो विरज एवं विषूची के सौ पुत्रों में से एक था ( भा. ५.५.१५ ) ।
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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