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________________ शंख प्राचीन चरित्रकोश गये। १३)। अपने बल एवं पराक्रम से, इसने समस्त देव एवं प्रवृत्त हुआ। उस समय, व्यास ने उसे राजधर्म का लोकपालों को सुवर्ण-पर्वत की गुफा में भगा दिया था। | उपदेश करते समय कहावेदों पर आक्रमण--आगे चल कर, देवपक्ष के देव ___ दण्ड एवं ही राजेंद्र क्षत्रधर्मो न मुण्डनम् । वेदों के बल से पुनः सामर्थ्यशाली न हो जायें, इस हेतु | से इसने चारों वेदों को नष्ट करना चाहा। एक बार विष्णु (क्षत्रिय का प्रथम कर्तव्य राज्य करना है, संन्यास जब गहरी निद्रा में सो रहे थे, तब इसने वेदों पर आक्रमण | लेना नहीं है)। किया। इसके भय से चारों वेद भाग कर समुद्र में छिप ___ अपने उपर्युक्त कथन के पुष्टयर्थ, व्यास ने शंख एवं लिखित नामक ऋषियों में संघर्ष होने पर, सुद्युम्न राजा ने __ वेदों के लुप्त हो जाने से, पृथ्वी की सारी जनता संत्रस्त | किस प्रकार व्यक्तिनिरपेक्ष न्याय दिया, इस संबंध में हुई। पश्चात् ब्रह्मा ने विष्णु के पास जा कर उन्हें जगाया, एक प्राचीन कथा का निवेदन किया (म. शां. २४; एवं शंख का वध करने की प्रार्थना की। लिखित देखिये)। वध--तदुपरांत विष्णु ने मत्स्य का रूप धारण कर धर्मशास्त्रकार-- इसके नाम पर निम्नलिखित तीन समुद्र में प्रवेश किया, एवं कार्तिक शुक एकादशी के | स्मृतिग्रंथ उपलब्ध है:-१. लघुशंखस्मृति, जिसमें ७१ दिन इसका वध किया। इसके वध के पश्चात् , विष्णु ने | श्लोक हैं, एवं जो आनंदाश्रम, पूना के 'स्मृतिसमुच्चय' चारों वेदों कों विमुक्त किया। इसी कारण कार्तिक माह, में प्रकाशित की गयी है; २. बृहतूशंखस्मृति, जिसमें एवं विशेषतः कार्तिक शुक्ल एकादशी विष्णुभक्तों में अत्यंत अठारह अध्याय हैं, एवं जो वेंकटेश्वर प्रेस, बैबई के पवित्र मानी जाती है ( पद्म. स. १; उ. ९०-९१)। द्वारा प्रकाशित हो चुकी है; ३. शंख-लिखितस्मृति, जो स्कंद के अनुसार, इसका वध कार्तिक एकादशी के दिन इसने अपने भाई लिखित' के सहयोग से लिखी थी। नहीं, बल्कि आषाढ शुक्ल एकादशी के दिन हुआ था (स्कंद. इस स्मृति में कुल ३४ श्लोक हैं, एवं उसमें परान्न । ४.२.३३)। भोजन, अतिथिपूजन आदि विषयों की चर्चा की गयी है। २. पाताल में रहनेवाला एक सहस्रशीर्ष नाग, जो | आनंदाश्रम, पूना के द्वारा वह प्रकाशित की गयी है। • कश्यप एवं कद के पुत्रों में से एक था (म. आ. ३१.८ ७. (सो. पूरू.) एक राजा, जो जनमेजय पारिक्षित ' भा. ५.२४.३१)। नारद ने इंद्रसारथि मातलि से इसका | राजा एवं वपुष्टमा का पुत्र, एवं शतानीक राजा का भाई परिचय कराया था (म. उ. १०१.१२)। बलराम के | था (म. आ. ९०.९४)। निर्वाण के समय, यह उनके स्वागतार्थ उपस्थित हुआ था। ८. एक ऋषि, जिसे ब्रह्मदत्त राजा ने अपना सारा धन (म.मौ. ५.१४)। दान के रूप में प्रदान किया था (म. शां. २२६. ३. उत्तम मन्वंतर के सप्तर्षियों में से एक । | २९; अनु. १३७.१७)। . ४. एक मत्स्यदेशीय महारथ राजकुमार (म. उ. ९. एक केकयराजकुमार, जो भारतीय युद्ध में ५६९%), जो विराट एवं सुरथा का पुत्र, तथा उत्तर एवं | पांडवों के पक्ष में शामिल था, एवं जिसकी श्रेणी 'रथी' उत्तरा का भाई था। भारतीय युद्ध में, यह द्रोण के द्वारा | थी (म. उ. १६८.१४)1 मारा गया (म. भी. ७८. २१)। १०. कुवेरसभा का एक यक्ष (म. स. ९.१३)। ५. एक यक्ष, जो मणिभद्र एवं पुण्यजनी के पुत्रों में | ११. एक जगन्नाथभक्त राजा, जो हैहयवंशीय भूत से एक था (ब्रह्मांड. ३.७.१२३)। राजा का पुत्र था । जगन्नाथ ने दर्शन दे कर, इसे मुक्ति ६. एक ऋषि, जो जैगीषव्य एवं एकपर्णा (एकपाटाला) प्रदान की (स्कंद. २.१.३८)। हैहय राजाओं के वंशाका पुत्र, एवं लिखित ऋषि का भाई था (ब्रह्मांड. २.३०. | वलि में इसका नाम अप्राप्य है। ४०; वायु ७२.१९)। १२. एक राजा, जिसे सत्पुरुषों के पदधूलि से मुक्ति महाभारत में--इसकी एवं इसके भाई लिखित की | प्राप्त हुई (पद्म. क्रि. २१)। कथा महाभारत में विस्तृत रूप में प्राप्त है, जो व्यास के १३. एक ब्राह्मण, जिसने स्वयं की चोरी करने आये. द्वारा युधिष्ठिर को कथन की गयी थी। भारतीय युद्ध के | व्याध को 'वैशाख-माहात्म्य' सुना कर उसका उद्धार पश्चात , युधिष्ठिर विरागी बन कर राज्यत्याग करने के लिए | किया (स्कंद. २.७.१७-३१)। .
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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