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शक्ति वासिष्ट
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शक्ति वासिष्ठ - एक ऋषि जो अरंपती के सौ पुत्रों में ज्येष्ठ पुत्र था ( भा. ४.१.४१; म. आ. १६६.४ ) | मत्स्य में इसे 'शक्तिवर्धन' कहा गया है (मास्य. १४५.९२-९३ ) इसे वर्तमान वैवस्वत मन्वंतर काछबीसों वेदव्यास कहा गया है। वैदिक साहित्य में -- त्रग्वेद एवं ब्राह्मण ग्रंथों में विश्वामित्र ऋषि से हुए इसके संघर्ष की, एवं इस संघर्ष में इसे जलाकर भस्म किये जाने की, अनेकानेक कथाएँ प्राप्त हैं ।
प्राचीन चरित्रकोश
ऋग्वेद के कई मंत्रों का यह द्रष्टा है (ऋ. ७.३२.२६ - २७; ९.९७. १९-२१; १०८.३. १४ - १६ ) । इन मंत्रों में से छब्बीसवें ऋचा का केवल पहला ही चरण इसके
द्वारा रचाया गया था।
ऋग्वेद में प्राप्त एक ऋचा से प्रतीत होता है, कि एक बार जब यह विश्वामित्र के उद्यान में गया था, तब वहाँ के सेवकों ने इसे जला कर भस्म किया था (ऋ. वेदार्थदीपिका ७.३२.२६ ) ।
गेल्डर के अनुसार, ऋग्वेद की अन्य एक ऋचा में शक्ति के मृत्यु - संघर्ष का वर्णन प्राप्त है (ऋ. ३.५३. २२) । किंतु यह व्याखा अत्यधिक संदिग्ध प्रतीत होती है ।
ऋग्वेद के सायणभाष्य में, इसके संबंध में शाट्यायन ब्राह्मण के अंतर्गत एक आख्यायिका उद्धृत की गयी है । एक बार सौदास राजा के घर में एक यज्ञ, हुआ जहाँ इसने विश्वामित्र ऋषि को पराजित किया। तदुपरांत, विश्वामित्र ने जमदग्नि के घर आश्रय लिया, जिसने उसे ' ससर्परी विद्या' सिखायी । इसी विद्या के आधार से विश्वामित्र ने इसे वन में भस्म किया एवं इस प्रकार अपने पराजय का प्रतिशोध लिया (वेद सायणभाग्य २.५३.१५१६ ऋग्वेद सर्वानुक्रमणी ७.२२ ) ।
जैमिनि ब्राह्मण में, विश्वामित्र ऋषि के अनुयायियों के द्वारा इसे आग में फेंक दिये जाने की कृपा अधिक स्पष्ट रूप से प्राप्त है (जै. बा. २.३९० ) ।
महाभारत एवं पौराणिक साहित्य में इस साहित्य में यह विश्वामित्र के अनुयायियों के द्वारा नहीं, बल्कि राक्षसरूप प्राप्त हुए कल्माषपाद सौदास राजा के द्वारा भक्षण किये जाने का निर्देश प्राप्त है (म. आ. १६६.२६) महाभारत में प्राप्त यह निर्देप अयोग्य प्रतीत होता है, क्योंकि, यह कल्माषपाद सौदास के द्वारा नहीं, बल्कि सुदास राजा के द्वारा मारा गया था।
ज्योति
राक्षस के द्वारा इसे भक्षण किये जाने की कथा लिंग में भी प्राप्त है ( लिंग. ६४-६५ ) । इसकी मृत्यु होने पर इसके पुत्र पराशर ने इसका वध का प्रतिशोध लेने के लिए राक्षसत्र प्रारंभ किया। आगे चलकर उसके पितामह बसि ने उसे इस पापकर्म से पराइन किया ( पराशर देखिये ) । अपनी मृत्यु की पश्चात्, यह शिवभक्ति के कारण स्वर्गलोक पहुँच गया (पद्म पा ११० ) ।
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वायुपुराण का कथन इसे दक्ष से 'वायुपुराण' का ज्ञान प्राप्त हुआ था, जिसे इसने गर्भावस्था में स्थित अपने पराशर नामक पुत्र को निवेदित किया था (ब्रह्मांड. २.३२.९९ ) ।
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परिवार इसकी पत्नी का नाम अयन्ती था जिससे इसे पराशर नामक सुविख्यात पुत्र उत्पन्न हुआ था ( भा. ४.१.४१ ) । इसका यह पुत्र इसकी मृत्यु के पश्चात् बारह वर्षों के उपरांत उत्पन्न हुआ था ( पराशर देखिये) ।
शक्तिवर्धन - वसिष्ठपुत्र शक्ति का नामांतर ( मल्य १४५.९३; शक्ति वासिष्ठ देखिये) ।
शक्तिसेन -- (सो. वृष्णि. ) एक यादव राजा, जो मत्स्य एवं पद्म के अनुसार निम्न राजा का पुत्र था । विष्णु एवं भागवत में इसे 'सश्राजित्', एवं वायु में इसे 'शक्रजित् ' कहा गया है ( मत्स्य. ४५.३, वायु. ९६.२० -२९ ) ।
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यह परम सूर्यभक्त था, जिसने इसे 'स्यमंतक' नामक दिव्य मणि दिया था । इसी 'स्यमंतक मणि के कारण, इसका कृष्ण से संघर्ष हुआ। किंतु अंत में इसे यह मणि पुनः प्राप्त हुआ।
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इसकी कुल दस पत्नियाँ थी, जिनसे इसे सौ पुत्र उत्पन्न हुए थे। इसके पुत्रों में भंगकार, व्रतपति, एवं अपस्वान्त प्रमुख थे ( वायु. ९६.५० -५३) ।
२. (सो.वि.) एक राजा, जो मत्स्य के अनुसार शोणाश्व राजा का पुत्र था ।
शक्तिहस्त - एक राक्षस, जो जयंत के द्वारा मारा गया (पद्म, स. ७५) ।
शक्र - बारह आदित्यों में से एक (म. आ. ५९१५ ) | यह इंद्र था, एवं इसे शतक्रतु नामांतर प्राप्त था (इंद्र १. देखिये) । इसके भाई का नाम उपेंद्र था ( भा. ६.६.३९ ) ।
शक्रज्योति - मरुतों के प्रथम गणों में से एक ।
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