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प्राचीन चरित्रकोश
शकुन्तला
अँगूठी इसके द्वारा खो जाना, दुष्यंत राजा विस्मृति का शिकार बनना, मत्स्यगर्भ से प्राप्त अभिज्ञान की अँगूठी से उसे पुनः स्मृति प्राप्त होना, आदि अनेकानेक उपकथाविभाग दिये गये हैं। किंतु वे सारे कल्पनारम्य प्रतीत होते है, क्यों कि, उन्हें प्राचीन साहित्य में कोई भी आधार प्राप्त नहीं होता। किंतु पद्मपुराण के बंगला संस्करण में 'अभिज्ञान शाकुंतलम् ' से मिलती जुलती कथा प्राप्त है।
शक्त - (सो. पूरु. ) एक पूरुवंशीय राजा, जो पूरु राजा का प्रपौत्र, एवं मनुस्यु राजा का पुत्र था। इसकी माता का नाम सौवीरी, एवं भाइयों के नाम संहनन एवं वाग्मी. थे (म. आ. ८९.७ पाठ.) ।
शक्ति - देवी पार्वती का एक अवतार। पौराणिक साहित्य में शक्तियों की संख्या इक्कावन बतायी गयी है, जिनके विभिन्न स्थानों को वहाँ 'शक्तिपीठ' कहा गया है।
शक्तिदेवता का विकास - रुद्र के द्वारा किये गये दक्षयज्ञ के विध्वंस की कथा ब्राह्मणग्रंथों में एवं महाभारत में प्राप्त है । किन्तु जिस कल्पना के आधार से शक्तिपूजा के पीठों की निर्मिति भारतवर्ष में हुई, उस रुद्रशिव एवं पार्वती के कथा का निर्देशं, इन ग्रंथों में कहीं भी प्राप्त नहीं है, जो सर्वप्रथम उत्तरकालीन 'देवीभागवत' एवं 'कालिकापुराण' में पाया जाता है ( दे. भा. ७.३०; कालिका. १८) ।
इस कथा के अनुसार, दक्षयज्ञ में अपमानित हो कर सती ने यज्ञकुंड में अपना शरीर झोंक दिया। तत्पश्चात् क्रोध से पागल हुआ रुद्र-शिव सती का प्राणहीन देह कन्धे पर ले कर समस्त त्रैलोक्य में नृत्य करता हुआ उन्मत्त अवस्था में घूमने लगा ।
यह देख कर विष्णु ने अपने चक्र से सती के शरीर के टुकड़े टुकड़े कर उन्हें विभिन्न स्थानों पर गिरा दिया । सती के शरीर के खंड तथा आभूषण, इक्कावन स्थानों पर गिरे, जहाँ एक-एक शक्ति, एवं एक-एक भैरव विभिन्न रूप धारण कर अवतीर्ण हुए। आगे चल कर, इन्हीं स्थानों पर 'शक्तिपीठों' का निर्माण हुआ ।
शक्तिपीठ – उत्तरकालीन पौराणिक साहित्य में, एवं शाक्त उपासना के ' शिवविजय', 'दाक्षायणीतंत्र', ‘योगिनीतंत्र ' ‘तंत्रचूड़ामणि' आदि तांत्रिक ग्रंथों में 'शक्तिपीठों' की विस्तृत जानकारी प्राप्त है, जहाँ सर्वत्र इन पीठों की संख्या प्रायः सर्वत्र इक्कावन बतायी गयी है । इनमें से 'तंत्र चूड़ामणि' में प्राप्त ५२ ' शक्तिपीठों ' की, वहाँ स्थित 'शक्ति' की, एवं वहाँ गिरे हुए सती
शक्ति
के अंग या आभूषणों की नामावलि नीचे इसी क्रम से दी गयी है:
१. अट्टहास (फुल्लरा, अधरोष्ठ ); २. उज्जयिनी ( मांगल्यचंडिका, कूर्पर ); ३. करतोयातट ( अपर्णा, वामतल्प ); ४. कन्यकाश्रम ( शर्वाणी, पृष्ठ ); ५. करवीर (महिषमर्दिनी, तीनों नेत्र ); ६. कर्णाट ( जयदुर्गा, दोनों कर्ण ); ७. कश्मीर ( महामाया, कंठ ); ८. कांची ( देवगर्भा, अस्थि ); ९. कालमाधव (काली, वामनितंब ); १०. कामगिरि ( कामाख्या, योनि ); ११. कालीपीठ ( कालिका, पादांगुलि ); १२. कुरुक्षेत्र (सावित्री, दक्षिणगुल्फ ); १३. गण्डकी (गण्डकी, दक्षिण गण्ड ); १४. किरीट ( विमला, किरीट ); १५. गोदावरीतट (विश्वेशी, वामगण्ड ); १६. चहल (भवानी, दक्षिणबाहु ); १७. जनस्थान ( भ्रामरी, चिबुक ); १८. जयन्ती ( जयन्ती, वामजंघ ); १९. जालंधर ( त्रिपुरमालिनी, वामस्तन ); २०. ज्वालामुखी ( सिद्धिदा, जिव्हा ); २१. त्रिपुरी ( त्रिपुरसुंदरी, दक्षिणपाद ); २२. त्रिस्रोता ( भ्रामरी, वामपाद ); २३. नलहारी (कालिका, उदरनलिका ); २४. नन्दिपुर ( नंदिनी, कंठहार ); २५. नैपाल ( महामाया, जानु ); २६. पंचसागर ( वाराही, अधोदंतपंक्ति); २७. प्रभास ( चन्द्रभागा, उदर ); २८. प्रयाग (ललिता, हस्तांगुलि ); २९. भैरवपर्यंत (अवन्ती, ऊर्ध्वओष्ठ ); ३०. मगध (सर्वानंदकरी, दक्षिणजंघ ) : ३१. मणिवेदिका ( गायत्री, मणिबंध ); ३२. मानस ( दाक्षायणी, दक्षिणपाणि ); ३३. मिथिला ( उमा, वामस्कंध ); ३४. युगाद्या ( भूतधात्री, दक्षिणपदांगुष्ठ ); ३५ यशोर ( यशोरेश्वरी, वानपाणि); ३६. रामगिरि ( शिवानी, दक्षिणस्तन ); ३७. रत्नावली ( कुमारी, दक्षिणस्कंध ); ३८. बहुला (बहुला, वामबाहु ); ३९. लंका ( इंद्राक्षी, नूपुर ); ४०. वक्त्रेश्वर ( महिप्रमर्दिनी, मन ); ४१. वाराणसी ( विशालाक्षी, कर्णकुंडल ); ४२. वैद्यनाथ जयदुर्गा, हृदय ); ४३. विभाष (कपालिनी, वामगुल्फ); ४४. विराट ( अंबिका, वामपदांगुष्ठ ); ४५. विरजाक्षेत्र ( विमला, नाभि ); ४६. वृंदावन ( उमा, केशकलाप ); ४७. श्रीपर्वत ( श्रीसुंदरी, दक्षिणतल्प ), ४८. श्रीशैल (महालक्ष्मी, ग्रीवा ); ४९. शुचि (नारायणी, ऊर्ध्वदंतपंक्ति ); ५०. शोण ( शोणाक्षी, दक्षिण नितंब ); ५१. सुगंधा (सुनंदा, नासिका ); ५२. हिंगुला ( कोटरी, ब्रह्मरंध्र ) ।
(
२. एक आचार्य, जिसने अपने शिष्य दम को ' सामवेद ' सिखाया था (मार्क. १३० ) ।
३. ढुंढि नामक शिवावतार का पिता (दुरासद देखिये) ।
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