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________________ व्यास प्राचीन चरित्रकोश व्यास इनमें से राणायनीय के निम्नलिखित दो शिष्य थे:-- | व्यास के शिष्यपरंपरा में से अनेकानेक आचार्यों का १. शौरिद्यु (शोरिद्यु); २. शृंगीपुत्र । इनमें से शृंगीपुत्र | निर्देश यद्यपि पुराणों में प्राप्त है, फिर भी, इनआचायों के वैन (चैल); प्राचीनयोग एवं सुबाल नामक तीन | के द्वारा निर्माण की गयी बहुत सारी ग्रंथसंपत्ति आज शिष्य थे। अप्राप्य, अतएव अज्ञात है। (3) कुथुमि अथवा कुशुमिशाखा--कुथुमि के निम्न- इसका कारण संभवतः यही है कि, व्यास की उपर्युक्त लिखित तीन शिष्य थे:--१. औरस (पाराशर्य कौथुम); | सारी शिष्यपरंपरा 'ग्रांथिक' न हो कर 'मौखिक' थी, २. नाभिवित्ति (भागवित्ति); ३. पाराशरगोत्री (रस- | जिनका प्रमुख कार्य ग्रंथनिष्पत्ति नहीं, बल्कि वैदिक संहितापासर)। साहित्य की मौखिक परंपरा अटूट रखना था। इनमें से औरस (पाराशर्य कौथुम ) के निम्नलिखित व्यास के कई अन्य शिष्यों के द्वारा रचित वैदिक छः शिष्य थे:-- १. आसुरायण; २. वैशाख्य; ३. वेद- | ग्रंथसंपत्ति में से जो भी कुछ साहित्य उपलब्ध है, उसकी वृद्धः ४. पारायण; ५. प्राचीनयोगपुत्र; ६. पतंजलि। जानकारी पृथु ९२२ पर दी गयी 'वैदिक साहित्य के धर्मइन शिष्यों में से पौष्यंजि एवं कृत ये दो शिष्य प्रमुख होने ग्रंथों की तालिका' में दी गयी है। के कारण, उन्हें 'सामसंहिताविकल्पक' कहा गया है (ब्रह्मांड. वैदिक संहिताओं का विशुद्ध रूप-- व्यास के द्वारा २.३५.३१-५४; वायु ६१.२७-४८)। विभाजन की गयी वैदिक संहिताएँ, विशुद्ध रूप में (४) व्यास की अथर्वशिष्यपरंपरा-व्यास की अथर्व कायम रखने के लिये व्याकरणशास्त्र, उच्चारणशास्त्र, शिष्यपरंपरा का प्रमुख शिष्य सुमन्तु था। सुमन्तु के शिष्य | वैदिक स्वरों का लेखनशास्त्र आदि अनेकानेक विभिन्न का नाम कबंध था, जिसके निम्नलिखित दो शिष्य थेः-- शास्त्रों का निर्माण हुआ, जिनकी संक्षिप्त जानकारी नीचे . १. देवदर्शन (वेददर्श, वेदस्पर्श); २. पथ्य। दी गयी है। (अ) देवदर्श-शाखा-देवदर्श के निम्नलिखित पाँच वैदिक व्याकरण विषयक ग्रंथों में शौनककृत 'ऋचपातिशिष्य थे:- १. शौल्कायनि (शौक्कायनि); २. पिप्पलाद शाख्य, 'तैत्तिरीय प्रातिशाख्य,' कात्यायनकृत 'शुक्लयजुवेंद (पिप्पलायनि); ३. ब्रह्मबल (ब्रह्मबलि); ४. मोद प्रातिशाख्य,' अथर्ववेद का 'पंचपटलिका ग्रंथ', एवं. (मोदोष, मौद्ग); ५. तपन (तपसिस्थित)। सामवेद का 'पुष्पसूत्र,' आदि ग्रंथ विशेष उल्लेखनीय हैं। (आ) पथ्य-शाखा-पथ्य के निम्नलिखित तीन शिष्य वैदिक मंत्रों के उच्चारणशास्त्र के संबंध में अनेकानेक थे:--१. जाजलि; २. कुमुदादि (कुमुद); ३. शौनक शिक्षाग्रंथ प्राप्त हैं, जिनमें वेदों के उच्चारण की संपूर्ण (शुनक)। जानकारी दी गयी है। इन शिक्षा ग्रंथों में अनुस्वार एवं (इ) शौनक-शाखा-शौनक के निम्नलिखित दो शिष्य विसर्गों के नानाविध प्रकार, एवं उनके कारण उत्पन्न थे:--१. बभ्र, जिसे ब्रह्मांड एवं वायु में 'मंजकेश्य,' एवं होनेवाले उच्चारणभेदों की जानकारी भी दी गयी है। 'मुंजकेश' उपाधियाँ प्रदान की गयी हैं। वैदिक साहित्य की परंपरा शुरू में 'मौखिक' पद्धति (ई) सेंधवायन-शाखा--सैंधवायन के दोनों शिष्यों ने से चल रही थी। आगे चल कर, इन मंत्रों का लेखन प्रत्येकी दो दो संहिताओं की रचना की थी। जब शुरु हुआ, तब उच्चारानुसारी लेखन का एक नया अथर्ववेदसंहिता के पाँच कल्प--इस संहिता के निम्न- शास्त्र वैदिक आचार्यों के द्वारा निर्माण हुआ। इस शास्त्र लिखित पाँच कल्प माने गये हैं:-१. नक्षत्रकल्प, २. के अनुसार, उदात्त, अनुदात्त, स्वरित आदि स्वरों के वेदकल्प (वैतान ) ३. संहिताकल्प; ४. आंगिरसकल्प, लेखन के लिए, अनेकानेक प्रकार के रेखाचिन्ह वैदिक ५. शान्तिकल्प (विष्णु. ३.६.९-१४; भा. १२.७.१-४; मंत्रों के अक्षरों के ऊपर एवं नीचे देने का क्रम शुरू. वायु. ६१.४९-५४, ब्रह्मांड २.५.५५-६२)। किया गया। यजुर्वेद संहिता में तो वैदिक मंत्रों के अक्षरों __व्यासोत्तर वैदेक वाङ्मय का विकास--व्यास के द्वारा के मध्य में भी स्वरचिह्नों का उपयोग किया जाता है। किये गये वैदिक संहिताओं के विभाजन को आदर्श मान विनष्ट हुर'ब्राह्मण ग्रन्थ'-ब्राहाण ग्रंथों में से जिन कर, आगे चल कर संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद ग्रन्थों के उद्धरण वैदिक साहित्य में मिलते है, किंतु जिसके तथा श्रोत, गृह्य, धर्म, शुल्बसूत्र आदि वैदिक साहित्य का मूल ग्रंथ आज अप्राप्य है, ऐसे ग्रन्थों की नामावलि निम्नविस्तार हुआ। प्रकार है :-- ९२४
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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