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________________ प्राचीन चरित्रकोश व्यास ध्यास . (१) ऋग्वेदीय ब्राह्मण-ग्रन्थ-१. शैलालि। उपर्युक्त विषयों में से एक ही उपांग पर जो पुराणग्रंथ (२) कृष्णयजुर्वेदीय ब्राह्मण-ग्रन्थ-१. आह्वरक; आधरित रहता है, उसे 'उपपुराण' कहते हैं। उपोप२. कंटिन् ; ३. चरक; ४. छागलेय (तैत्तिरीय); ५. पुराण स्वतंत्र ग्रंथ न हो कर, महापुराण का ही एक भाग पैंग्याय निः ६. मैत्रायणी; ७. श्वेताश्वतर (चरक, चारा- रहता है। यणीय): ८. हारिद्राविक (चरक, चारायणीय)। । पुराणों में चर्चित विषय--पौराणिक साहित्य में चर्चित (३) शुकृयजुर्वेदीय ब्राह्मग-ग्रन्थ--१. जाबालि। | विषयों की जानकारी वायु में प्राप्त है, जिसके अनुसार (४) सामवेदीय ब्राह्मण-ग्रन्थ-१. जैमिनीय २. ब्रह्मचारिन् , गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यासी, रागी, विरागी, स्त्री, शूद्र एवं संकर जातियों के लिए सुयोग्य धर्माचरण तलवकार (राणायनीय); ३. कालवविन् ; ४. भालविन् ; ५. रोरुकि; ६. शाट्यायन (रामायनीय); ७. माषशरा क्या हो सकता है, इसकी जानकारी पुराणों में प्राप्त होती है । इन ग्रंथों में यज्ञ, व्रत, तप, दान, यम, नियम, योग, विन् (बटकृष्ण घोष, कलेक्शन ऑफ दि फ्रेंग्मेन्टम ऑफ | सांख्य, भागवत, भक्ति, ज्ञान, उपासनाविधि आदि विभिन्न लॉल्ट ब्राहणाज)। धार्मिक विषयों की जानकारी प्राप्त है। पुराण ग्रंथों का प्रणयन--वैदिक ग्रंथों की पुनर्रचना पुराणों में समस्त देवताओं का अविरोध से समावेश के साथ साथ, व्यास ने तत्कालीन समाज में प्राप्त कथा करने का प्रयत्न किया गया है, एवं ब्राह्म, शैव, वैष्णव, सौर, आख्यायिका एवं गीत (गाथा) एकत्रित कर आद्य 'पुराण शाक्त, सिद्ध आदि सांप्रदायों के द्वारा प्रणीत उपासना ग्रंथों की रचना की, एवं इस प्रकार यह प्राचीन पौराणिक वहाँ आत्मौपम्य बुद्धि से दी गयी है। देवताओं का साहित्य का भी आय जनक बन गया। माहात्म्य बढ़ाना, एवं उनके उपासनादि का प्रचार करना, प्राचीन भारत में उत्पन्न हुए राजवंश एवं मन्वन्तरों की यह पुराणग्रंथों का प्रमुख उद्देश्य है। परंपरागत जानकारी एकत्रित करना यह पुराणों का आद्य ___पुरणों के विभिन्न प्रकार-मत्स्य में पुराणों के सात्विक, हेतु है। किन्तु उनका मूल अधिष्ठान' नीतिप्रवण धर्म राजस एवं तामस तीन प्रकार बताये गये हैं। मत्स्य में ग्रंथों का है, जहाँ धर्म एवं नीति की शिक्षा सामान्य मनुष्य प्रतिपादन किया गया पुराणों का यह विभाजन देवतामात्र की बौद्धिक धारणा ध्यान में रखकर दी गयी है। प्रमुखत्व के तत्त्व पर आधारित है, एवं विष्णु, ब्रह्मा एवं पंचमहाभूत, प्राणिसृष्टि एवं मनुष्यसृष्टि की ओर भूतदया अग्नि शिव की उपासना प्रतिपादन करनेवाले पुराणों को बाद का आदश पुराणग्रंथों में रखा गया है, जहाँ व्रत, | वहाँ क्रमशः 'सात्विक,' 'राजस' एवं 'तामस' कहा गया है । उपासना एवं तपस्या को अधिकाधिक प्राधान्य दिया सरस्वती एवं पितरों का माहात्म्य कथन करनेवाले पुराणों गया है। को वहाँ 'संकीर्ण' कहा गया है (मत्स्य. ५३.६८-६९)। 'कुटुम्ब, राज्य, राष्ट्र, शासन आदि की ओर एक पष्म एवं भविष्य में भी पुराणों के सात्विक आदि प्रकार आदर्श नागरिक के नाते हर एक व्यक्ति के क्या कर्तव्य दिये गये है, किन्तु वहाँ इन पुराणों का विभाजन विभिन्न हैं. इनका उच्चतम आदश सामान्य जनों के सम्मुख पुराण प्रकार से किया गया है (पन. उ. २६३.८१-८५, ग्रंथ रखते हैं। इस प्रकार जहाँ राज्यशासन के विधि- आनंदाश्रम संस्करण; भविष्य. प्रति. ३.२८.१०-१५)। नियम अयशस्वी होते हैं, वहाँ पुराणग्रंथों का शासन | श्लोकसंख्या-विभिन्न पुराणों की श्लोकसंख्या बहुत सामान्य जनमानस पर दिखाई देता है। सारे पुराणों में दी गयी है, जिसमें प्रायः एकवाक्यता है । पराणों के प्रकार--पौराणिक साहित्य के 'महापुराण,' पराणों के इसी श्लोकसंख्या से विशिष्ट पुराण पूर्ण है, या 'उपपुराण' एवं 'उपोपपुराण' नामक तीन प्रमुख प्रकार अपर्णावस्था में उपलब्ध है. इसका पता चलता है। माने जाते हैं। जिन पुराणों में वंश, वंशानुचरित, ___पुराणों के वक्ता-पुराणों का कथन करनेवाले आचार्यों मन्वन्तर, सर्ग एवं प्रतिसर्ग आदि सारे विषयों का समावेश | को 'वक्ता' कहा जाता है, जिनकी सविस्तृत नामावलि किया जाता है, उन पुराणों को महापुराण कहते हैं-- भविष्य पुराण में प्राप्त है (भवि. प्रति. ३.२८.१०-१५)। आख्यानैश्चाप्युपाख्यानैर्गाथाभिः कल्पशुद्धिभिः । महापुराण--महापुराणों की संख्या अठारह बतायी पुराणसंहितां चके पुराणार्थविशारदः ॥ गयी है, जिनके नामों के संबंध में प्रायः सर्वत्र एक (विष्णु. ३.६.१६-१६)। वाक्यता है। ९२५
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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