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________________ व्यास प्राचीन चरित्रकोश वेदों का विभाजन - पुराणों के अनुसार, व्यास के द्वारा चतुष्पाद वैदिक संहिता ग्रंथ का विभाजन कर, इनकी चार स्वतंत्र संहिताएँ बतायी गयीः ततः स ऋच उद्धृत्य ऋग्वेदसमकल्पयत् । (वायु. ६०.१९; ब्रह्मांड. ३.३४.१९ ) । ( व्यास ने ऋग्वेद की ऋचाएँ अलग कर, उन्हें 'ऋग्वेद संहिता' के रूप में एकत्र कर दिया ) । व्यास के पूर्वकाल में ऋक्, यजु, साम, एवं अथर्व मंत्र यद्यपि अस्तित्व में थे, फिर भी वें सारे एक हो वैदिक संहिता में मिलेजुले रूप में अस्तित्व में थे। इसी एकात्मक वैदिक संहिता को चार स्वतंत्र संहिताओं में विभाजित करने का अत्यंत महत्त्वपूर्ण कार्य व्यास ने किया । इस प्रकार विद्यमानकालीन वैदिक संहिताओं का चतुर्विध विभाजन, एवं उनका रचनात्मक आविष्कार ये दोनों वैदिक साहित्य को व्यास की देन है, जो इस साहित्य के इतिहास में एक सर्वश्रेष्ठ कार्य माना जा सकता है । व्यास के द्वारा रचित वैदिक संहिताओं को तत्कालीन 1 भारतीय ज्ञाताओं ने विना हिचकिचाहट स्वीकार किया, यह एक ही घटना व्यास के कार्य का निर्दोषत्व एवं तत्कालीन समाज में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान प्रस्थापित कर देती है ( पार्गि. ३१८ ) । व्यास की वैदिक शिष्यपरंपरा - - व्यास की वैदिक शिष्यपरंपरा की विस्तृत जानकारी पुराणों में दी गयी है । इनमें से सर्वाधिक प्रामाणिक एवं विस्तृत जानकारी वायु एवं ब्रह्मांड में प्राप्त है, जिसकी तुलना में विष्णु एवं भागवत में दी गयी जानकारी त्रुटिपूर्ण एवं संक्षेपित प्रतीत होती है। इस जानकारी के अनुसार, व्यास की वैदिक शिष्यपरंपरा के ऋक्, यजु, साम एवं अथर्व ऐसे चार प्रमुख विभाग थे । व्यास की उपर्युक्त शिष्यपरंपरा में से 'मौखिक' सांप्रदाय के प्रमुख आचार्यों की नामावलि 'वैदिक शिष्यपरंपरा' के तालिका में दी गयी है। ग्रंथिक' सांप्रदाय के आचार्यों की नामावलि 'वैदिक धर्मग्रन्थ ' की तालिका में दी गयी है । व्यास इंद्रप्रमति एवं वाष्कल ( बाष्कलि) नामक दो शिष्यों को प्रदान किया । (अ) बाकल - शाखा -- यही संहिता आगे चलकर बाष्कल ने अपने निम्नलिखित शिष्यों को सिखायी :-- १. बोध्य (बोध, बौध्य ); २. अग्निमाठर ( अग्निमित्र, अग्निमातर ); ३. पराशर ; ४. याज्ञवल्क्यः ५. कालायनि ( वालायनि); ६. गार्ग्य (भज्य ); ७. कथा जव (कासार) | इनमें से पहले चार शिष्यों के नाम सभी पुराणों में प्राप्त हैं, अंतिम नाम केवल भागवत एवं विष्णु ही प्राप्त हैं । (आ) इंद्रप्रमति - शाखा -- इंद्रप्रमति का प्रमुख शिष्य माण्डुकेय (मार्कडेय ) था । आगे चलकर माण्डुके वह संहिता अपने पुत्र सत्यश्रवस् को सिखायी। सत्यश्रवस् ने उसे अपने शिष्य सत्यहित को, एवं उसने अपने पुत्र सत्यश्री को सिखायी। विष्णु में इंद्रप्रमति के द्वितीय शिष्य का नाम शाकपूर्णि ( शाकवैण) रथीतर दिया गया है, किन्तु वायु एवं ब्रह्मांड में सत्यश्री शाकपूणि को सत्यश्री का पुत्र बताया गया है। (इ) सत्यश्री - शाखा -- सत्यश्री के निम्नलिखित तीन सुविख्यात शिष्य थे:-- १. देवमित्र शाकल्य, जिसे भागवत में सत्यश्री का नहीं, बल्कि माण्डुकेय का शिष्य कहा गया है । २. शाकवैण रथीतर ( रथेतर, रथान्तरं ); ३. बाष्कलि भारद्वाज, जिसे भागवत में जातूकर्ण्य कहा गया है। (ई) देवमित्र शाकल्य - शाखा -- देवमित्र के निम्नलिखित शिष्य प्रमुख थे : -- १. मुद्गल; २. गोखल (गोखल्य, गोलख ); २. शालीय ( खालीय, खलियस् ); ४. वत्स ( मत्स्य, वात्स्य, वास्य ); ५. शैशिरेय (शिशिर); ६. जातूकर्ण, जिसका निर्देश केवल भागवत में ही प्राप्त है। ( उ ) शाकवैण स्थीतर - शाखा - - इसके निम्नलिखित चार शिष्य प्रमुख थे :-- १. केतव ( क्रौंच, पैज, पैल); २. दालकि (वैतालिक, वैताल, इक्षलक ); ३. शतचलाक ( बलाक, धर्मशर्मन्); ४. नैगम ( निरुक्तकृत, विरज गज, देवशर्मन् ) । (ऊ) बाष्कलि भारद्वाज - शाखा - - इसके निम्नलिखित तीन शिष्य प्रमुख थे : -- १. नंदायनीय (अपनाप ); २. पन्नगारि, ३. अर्जव ( अर्थव ) ( विष्णु. ३.४.१६ - २६ मा १२.६.५४ - ५९; वायु. ६०.२४–६६; ब्रह्मांड. २.३४-३५) । ( १ ) व्यास की ऋ शिष्यपरंपरा - व्यास की ऋशिष्यपरंपरा का प्रमुख शिष्य पैल था । व्यास से प्राप्त ऋक्संहिता की दो संहिताएँ बना कर पैल ने उन्हें अपने | ९२०
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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