________________
व्यास
प्राचीन चरित्रकोश
व्यास
। ११)।
व्यास स्थल-व्यास के जीवन से संबंधित निम्नलिखित ५. अय्यारुण ( आरुणि ); ५१. धनंजय ( देव, कृतंजय, स्थलों का निर्देश महाभारत एवं पुराणों में प्राप्त है :- संजय, ऋतं जय); १७. कृतंजय (मेधातिथि );
(१) व्यासपन--यह कुरुक्षेत्र में है (म. व. ८१. १८. ऋणज्य (बतिन् ); १९. भरद्वाज; २०. गौतम; ७८; नारद. ३.६५.५ ८२, वामन. ३५.५, ३६.५६)। २७. उत्तम (हामन्); २२. वेन (राजःस्रवस् ,
(२) व्यापस्थली---यह कुरुक्षेत्र में है। यहाँ पुत्रशोक वाजश्रवस ,वाजश्रवस, वाचःश्रवस् ); २३. शुप्मायण सोम के कारण, व्याप्त देहत्याग के लिए प्रवृत्त हुआ था (तृणबिंदु, सौम आमुष्यायण); २४. वाल्मीकि (ऋक्ष(म. व. ८१.८१: नारट. उ. ६५.८५; वामन. ३६.६०)। भार्गव ); २५. शक्ति (शक्ति वासिष्ठ, भार्गव, यक्ष,
(३) व्यासाश्रम--यह हिमालय पर्वत में बदरिकाश्रम कृष्ण); २६. पराशर (शाक्तेय): २७. जातूकण; के पास अलकनंदा-सरस्वती नदियों के संगम पर शन्या- २८. कृष्ण द्वैपायन (प्रस्तुत) (विष्णु. ३.३.११-२०; प्रासतीर्थ के समीप बसा हुआ था।
दे. भा. १.३, लिंग, १.२४. शिव. शत. ५: शिव. वायु. इसी आश्रम में व्यास के द्वारा सुमंत, वैशंपायन. सं. ८; वायु. २३: कंद. १.२.४० : कूर्म, पूर्व. ५१.१जैमिनि एवं पैल आदि आचायों को वेदों की शिक्षा दी गयी थी । व्यास का वेदप्रसार का कार्य इसी आश्रम में व्यावसहायक शिवावतार-पुराणों में निर्दिष्ट उपयुक्त प्रारंभ हुआ था, एवं चारों वणा में वेदप्रसार करने के अट्ठाईस व्यासों के अतिरिक्त कई पुराणों में व्यास, नियम आदि हमी आश्रम में व्यास के द्वारा निश्चित । सहायक शिवावतार भी दिये गये हैं, जो कलियुग के किये गये थे (म. शां. ३१४)।
प्रारंभ में उपन्न हो कर द्वापर युग के व्यासों का काय (४) व्या काशी-यह वाराणसी में रामनगर के आगे चलाते है। व्याससहायक शिवावतार के, एवं समीप बसी हुई थी।
उसके चार शिष्यों के नाम विभिन्न पुराणों में दिये गये है अट्राईम व्यास -- यद्यपि महाभारत की रचना करनेवाले
(शिव. शत. ४-५: शिव. वायु. ८.९; वायु. २३; व्यास महर्षि एक ही थे, फिर भी पुराणों में अहाईस लिग. ७)। व्यासों की एक नामावलि दी गयी है, जिसके अनुसार कर्तृत्त्व--व्यास के कतत्त्व के तीन प्रमुख पहलू माने वैवस्वत मन्वन्तर के हर एक द्वापर में उत्पन्न हुआ व्यास जाते हैं:--१. वेदरक्षणार्थ वेदविभाजनः २. पौराणिक अलग व्यक्ति बताया गया है। वर्तमान वैवस्वत मन्वन्तर साहित्य का निर्माणः ३. महाभारत का निर्माण। के अढाईस द्वापर आज तक पूरे हो चुके है, इसी कारण व्यास के इन तीनों कार्यों की संक्षिप्त जानकारी नीचे पुराणों में व्यासों की संख्या अट्ठाईस बतायी गयी है, जहाँ दी गयी है। कृष्ण द्वैपायन व्यास को अठ्ठाइसवाँ व्यास कहा गया है। वेदसंरक्षणार्थ वेदविभाग-द्वापर युग के अन्त में वेदों .. पुराणों में दी गयी अहाईस व्यासों की नामावलि कल्पना- का संरक्षण करने वाले द्विज लोग दुर्बल होने लगे, एवं रम्य, अनैतिहासिक एवं आद्य व्यास महर्षि की महत्ता समस्त वैदिक वाङ्मय नष्ट होने की संभावना उत्पन्न हो बढाने के लिए तैयार की गयी प्रतीत होती है। विभिन्न गयी । वेदों का नाश होने से समस्त भारतीय संस्कृति पराणों में प्राप्त अट्ठाईस व्यासों के नाम एक दूसरे से मेल का नाश होगा, यह जान कर व्यास ने समस्त वैदिक नहीं खाते हैं । इन व्यासों का निर्देश एवं जानकारी प्राचीन वाङमय की पुनर्रचना की। इस वाङ्मय का ऋग्वेद, यजुर्वेद, साहित्य में अन्यत्र कहीं भी प्राप्त नहीं है।
सामवेद एवं अथर्ववेद इन चार स्वतंत्र संहिताओं में विष्णु पुरण में प्राप्त अट्ठाईस व्यासों को नामावलि विभाजन कर, इन चार वेदों की विभिन्न शाखाएँ निर्माण नीचे दी गयी है, एवं अन्य पुराणों में प्राप्त पाठभेद की। आगे चल कर, इन वैदिक संहिताओं के संरक्षण कोष्टक में दिये गये है:- १. स्वयंभु (प्रभु, ऋभु, ऋतु); एवं प्रचार के लिए इसने विभिन्न शिष्यपरंपराओं का २. प्रजापति (मत्य ): ३. उशनम् ( भार्गव ); ४, बृहस्पति निर्माण किया (वायु. ६०.१-१६) । व्यास के द्वारा (अंगिरस् ); ५. सवितः ६. मृत्यु, ७. इंदः ८. वसिष्ट किये गये वैदिक संहिताओं की पुनर्रचना का यह ९. सारस्वत; १०. त्रिधामन् १६. विवषन (निवृत्त): क्रान्तिदर्शी कार्य इतना सफल साबित हुआ कि, आज १२. भरद्वाज (शततेजस् ): १३. अन्तरिक्ष (धर्म- हज़ारों वर्षों के बाद भी वैदिक संहिता ग्रंथ अपने मूल नारायण ): ११ वप्रिन् (धर्म, रक्ष, स्वरक्षस , सुरक्षण): | स्वरूप में ही आज उपलब्ध हैं।
९१९