________________
व्यास
• प्राचीन चरित्रकोश
व्यास
युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के समय, यह ब्रह्मा बना शुकदेव को उपदेश--इसने अपने पुत्र शुकदेव को था। उसी यज्ञ में, आनेवाले क्षत्रियसंहार का भविष्य इसने निम्नलिखित विषयों पर आधारित तत्त्वज्ञानपर उपदेश युधिष्ठिर को सुनाया था।
कथन किया था :--सृष्टिक्रम एवं युगधर्म; ब्राह्मप्रलय एवं प्रतिस्मृतिविद्या का उपदेश-पांडवों के वनवासकाल | महाप्रलय, मोक्षधर्म एवं क्रियाफल आदि। में भी, समय समय उनका धीरज बँधाने का कार्य | उपदेशक व्यास-नारद के मुख से इसे सात्वतधर्म यह करता रहा। वनवास के प्रारंभकाल में युधिष्ठिर जब | का ज्ञान हुआ था, जो इसने आगे चल कर युधिष्ठिर को अत्यंत निराश हुआ था, तब इसने उसे 'प्रतिस्मृतिविद्या' कथन किया था। इसके अतिरिक्त इसने भीष्म (म. प्रदान की थी। इसी विद्या के कारण, अर्जुन रुद्र एवं इंद्र अनु. २४.५-१२); मैत्रेय (म. अनु. १२०-१२२); से अनेकानेक प्रकार के अस्त्र प्राप्त कर सका (म, व. शुक आदि को भी उपदेश प्रदान किया था। ३७.२७-३०)।
| अश्वमेध यज्ञ में--इसने युधिष्ठिर को मनःशांति के
लिए अश्वमेध यज्ञ करने का आदेश दिया था। इस यज्ञ पश्चात् यह कुरुक्षेत्र में गया, एवं वहाँ स्थित सभी तीर्थी का इसने एकत्रीकरण किया। वहाँ स्थित 'व्यासवन'
में अर्जुन, भीम, नकुल एवं सहदेव को क्रमशः अश्वरक्षा, एवं व्यासस्थली' में इसने तपस्या की।
राज्यरक्षा, कुटुंबव्यवस्था का कार्य इसी के द्वारा ही सौंपा ___ भारतीय युद्ध में---भारतीय युद्ध के समय, इसने
गया था। धृतराष्ट्र को दृष्टि प्रदान कर, उसे युद्ध देखने के लिए
___ यज्ञ के पश्चात् , युधिष्ठिर ने अपना सारा राज्य इसे समर्थ बनाना चाहा । किंतु धृतराष्ट्र के द्वारा युद्ध का रौद्र
दान में दिया। इसने उसे स्वीकार कर के उसे पुनः स्वरूप देखने के लिए इन्कार किये जाने पर, इसने संजय
एक बार युधिष्ठिर को लौटा दिया, एवं आज्ञा दी कि, वह को दिव्यदृष्ट प्रदान की, एवं युद्धवार्ता धृतराष्ट्र तक
समस्त धनलक्ष्मी ब्राह्मणों को दान में दे।
स. पहुँचाने की व्यवस्था की थी (म. भी. २.९)।
__ परिवार-घृताची अप्सरा (अरणी) से इसे शुक
नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था (म. आ. ५७.७४ )। कंद भारतीय युद्ध में, सात्यकि ने संजय को पकड़ने का
में शुक को जाबालि ऋषि की कन्या वटिका से उत्पन्न पुत्र .
वालि तिकी (म. श. २४.५१), एवं मार डालने का (म. श. २८. कहा गया है।
| कहा गया है (कंद. ६८.१४७-१४८)। ३५-३८) प्रयत्न किया। किंतु इन दोनों प्रसंग में
शुक्र के अतिरिक्त, इसे विचित्रवीर्य राजाओं की व्यास ने संजय की रक्षा की । युद्ध के पश्चात् , व्यासकृपा
अंबिका एवं अंबालिका नामक पत्नियों से क्रमशः धृतराष्ट्र से संजय को प्राप्त हुई दिव्यदृष्टि नष्ट हो गयी (म. सौ.
एवं पाण्डु नामक नियोगज पुत्र उत्पन्न हुए थे विदुर भी ९.५८)।
इसीका ही पुत्र था, जो अंबालिका के शूद्र जातीय दासी ___पुत्रवध के दुख से गांधारी पांडवों को शाप देने के |
से इसे उत्पन्न हुआ था। . लिए उद्यत हुई, किंतु अंतर्ज्ञान से यह जान कर, व्यास ने उसे परावृत्त किया (म. स्त्री. १३.३-५)। धृतराष्ट्र
व्यास-वंश-इसके पुत्र शुक ने इसका वंश आगे
चलाया । शक का विवाह पीवरी से हुआ था, जिससे एवं गांधारी को दिव्यचक्षु प्रदान कर, इसने उन्हें गंगा
उसे भूरिश्रवस् , प्रभु, शंभु, कृष्ण एवं गौर नामक पाँच नदी के प्रवाह में उनके मृत पुत्रों का दर्शन कराया था
पुत्र, एवं कीर्तिमती नामक एक कन्या उत्पन्न हुई थी, (म. आश्र. ४०)।
जिसका विवाह अणुह राजा से हुआ था। कीर्तिमती के भारतीय युद्ध के पश्चात्--युद्ध के पश्चात् इसने युधिष्ठिर | पुत्र का नाम ब्रह्मदत्त था (वायु. ४०.८४-८६.)। को शंख, लिखित, सुझुम्न, हयग्रीव, सेना जित् आदि | चिरंजीवित्व-कुरुवंशीय राजाओं में से शंतनु, राजाओं के चरित्र सुना कर राजधर्म एवं राजदंड का उप-विचित्रवीय, धृतराष्ट्र, कौरवपांडव, अभिमन्यु, परिक्षित, देश किया। इसने युधिष्ठिर को सेना जित् राजा का उदा- जनमेजय, शतानीक आठ पीढीयों के राजाओं से व्यास हरण दे कर निराशावादी न बनने का, एवं जनक की | का जीवनचरित्र संबंधित प्रतीत होता है। ये सारे कथा सुना कर प्रारब्ध की प्रबलता का उपदेश निवेदित निर्देश इसके दीर्घायुष्य की ओर संकेत करते है। किया । पश्चात् इसने उसे मनःशांति के लिए प्रायश्चित्त- प्राचीन साहित्य में इसे केवल दीवायुषी ही नहीं, बल्कि विधि भी कथन किया।
चिरंजीव कहा गया है।