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प्राचीन चरित्रकोश
व्यास
वैदिक साहित्य में वैदिक संहिता साहित्य में व्यास का निर्देश अप्राप्य है । ' सामविधान ब्राह्मण' में इसे ' पाराशर्य' पैतृक नाम प्रदान किया गया है, एवं इसे विष्वक्सेन नामक आचार्य का शिष्य कहा गया है (सा. ब्रा. १.४६२७७)। तैत्तिरीय आरण्यक में भी महाभारत के रचयिता के नाते व्यास एवं वैशंपायन ऋषियों का निर्देश प्राप्त है (ते. आ. १.९.२) । वेवर के अनुसार, शुक्ल यजुर्वेद की आचार्य परंपरा में पराशर एवं उसके वंशजों का काफी प्रभुत्व शुरू से ही प्रतीत होता है । साहित्य में बुद्ध के पूर्व जन्मों में से एक जन्म का नाम 'वह दीपायन (कृष्ण द्वैपायन) दिया गया है (वेर. पू. १८४ ) । इससे प्रतीत होता है कि, बौद्ध साहित्य की रचनाकाल में व्यास का कृष्ण द्वैपायन नाम काफी प्रसिद्ध हो चुका था । -
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पाणिनीय व्याकरण में पाणिनि के अष्टाध्यायी में व्यास का निर्देश अप्राप्य है, एवं महाभारत शब्द वा निर्देश भी वहाँ एक ग्रंथ के नाते नहीं, बल्कि भरतवंश में उत्पन्न युधिष्ठिर आदि श्रेष्ठ व्यक्तियों को उद्दिश्य कर प्रयुक्त किया गया है (पा. सू. ६:२.३८ ) ।
इससे प्रतीत होता है कि, महाभारत का निर्माण पाणिमो उत्तर काल में, एवं पतंजलि के पूर्वकाल में उत्पन हुआ होगा।
महाभारत एवं पुराणों में इन ग्रंथों में इसे महर्षि परादार का पुत्र कहा गया है, एवं इसकी माता का नाम सत्यवती (काली) बताया गया है, जो कैवर्तराज ( धीवर) की कन्या थी। इसका जन्म यमुनाद्वीप में हुआ था, जिस कारण इसे 'द्वैपायन' नाम प्राप्त हुआ था (म. आ. ५४.२)। इसकी माता का नाम 'काली' होने के कारण इसे 'कृष्ण' अर्थात कृष्ण द्वैपायन नाम प्राप्त हुआ था। भागवत के अनुसार, यह स्वयं कृष्णवर्णीय था, जिस कारण इसे 'कृष्णद्वैपायन नाम प्राप्त हुआ था।
पतंजलि के व्याकरण - महाभाष्य में महाभारत कथा 'का निर्देश अनेकवार प्राप्त है, इतना ही नहीं, शुक्र वैयासकि नामक एक आचार्य का निर्देश भी वहाँ प्राप्त है, जिसे व्यास का पुत्र होने के कारण 'देवासहि' पैतृक नाम प्राप्त हुआ था (महा. २.२५३) ।
( म. आश्र. ३६.२०-२१ ) | कौरवपाण्डवों का पितामह - यह कौरवपाण्डवों का पितामह था, इसी कारण यह सदैव उनके हित के लिए तत्पर रहता था। इसके द्वारा विरचित महाभारत ग्रंथ में यह केवल निवेशक के नाते नहीं, बल्कि पांडवों के हितचिंतक के नाते कार्य करता हुआ प्रतीत होता है ।
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व्यास
भी मनाया जाता है। आषाढ पौर्णिमा को इसीके ही । नाम से 'व्यास पौर्णिमा' कहा जाता है।
विभिन्न नामान्तर- इसने समस्त वेदों की पुनर्रचना की थी, जिस कारण इसे व्यास नाम प्राप्त हुआ था:-- विस्वास वेदान् यस्मात् तस्माद् व्यास इति स्मृतः । (म. आ. ५७००३) । महाभारत में इसके पराशरात्मज, पाराशर्य, सत्यवती सुत नामान्तर बताये गये है। वायु में इसे 'पुराणप्रवक्ता' कहा गया है, जो नाम इसे आख्यान, उपाख्यान, गाथा कुल कर्म आदि से संयुक्त पुराणों की रचना करने के कारण प्राप्त हुआ था (वायु ६०.११-२१ विष्णुधर्म. १.७४) ।
तपस्या -- अत्यंत कठोर तपस्या कर के इसने अनेकानेक सिद्धियाँ प्राप्त की थी। यह दूरयण दूर-दर्शन आदि अनेक विद्याओं में प्रवीण था (म. आश्र. ३७.१६ ) । अपनी तपस्या के बारे में यह कहता है
पश्यन्तु तपसो वीर्यमद्य मे चिरनृतम् । तदुच्यतां महाबाहो के कामं प्रदिशामि ते ॥ प्रवणोऽस्मि वरं पश्य मे तो बह
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जन्मतिथि वैशाख पूर्णिमा यह दिन व्यास की तिथि मानी जाती है। उसी दिन इसका जन्मोत्सव
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जनमेजय के यज्ञमण्डप में महाभारत के अनुसार, यह जनमेजय के सर्पसत्र में उपस्थित था। इसे आता हुआ देख कर जनमेजय ने इसका यथोचित स्वागत किया, एवं सुवर्ण सिंहासन पर बैठ कर इसका पूजन किया था। पश्चात कननेजय ने 'महाभारत' का वृत्तांत पृछा, राव इसने अपने पास बैठे हुए शयन नामक शिष्य को स्वरचित 'महाभारत' कथा सुनाने की आशा दी ( म. आ. ५४ ) ।
उस समय व्यास को नमस्कार कर वैशंपायन ने 'कारणवेद' नाम से सुविख्यात महाभारत की कथा कह सुनाई।
पाण्डवों का हितचिंतक - - इसने पाण्डवों को द्रौपदीस्वयंवर की बार्ता सुनाई थी। इसने युधिष्ठिर के राजसूय यश के समय अर्जुन, भीम, सहदेव एवं नकुल को क्रमशः उत्तर पूर्व, दक्षिण तथा पश्चिम दिशाओं की ओर जाने के लिए उपदेश दिया था।
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