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वैशीपुत्र
प्राचीन चरित्रकोश
व्याघ्रदत्त
वैशीपुत्र-एक व्यक्ति (ते. ब्रा. ३.९.७.३; श. वैसूप--एक दानव, जो कश्यप एवं दनु के पुत्रों में से ब्रा. १३.२)। एक वैश्यपत्नी का पुत्र होने के कारण, इसे | एक था । यह नाम प्राप्त हुआ होगा।
वैहीनरी-भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । वैश्येश्वर--एक शिव-अवतार, जो महानंदा के वोद-एक आचार्य, जिसका निर्देश शुकयजुर्वेदीय लोगों उद्धार के लिए अवतीर्ण हुआ था ( महानंदा देखिये)। के ब्रह्मयज्ञांगतर्पण में प्राप्त है (पा. ग. परिशिष्ट; मत्स्य.
वैश्रवण--कुबेर का पैतृक नाम, जो उसे विश्रवस् १०८,१०२.१८ ) अन्य पुराणों में भी इसे एक सिद्धिप्राप्त ऋषि का पुत्र होने के कारण प्राप्त हुआ था। प्राचीन | ब्रह्मर्षि कहा गया है (वाय. १०१.३३८; ब्रह्मांड. ४.२. साहित्य में सर्वत्र इसे ' यक्षराज' कहा गया है, केवल | २७३; कूर्म. १.५३.१५)। ब्रह्मांड में इसका स्वरूप राक्षसों जैसा बताया गया है। वोहलि--एक आचार्य, जिसका निर्देश ब्रह्मयज्ञांगतर्पण यह महाहनु, शंकुकर्ण एवं ह्रस्वबाहु था । इसका | में प्राप्त है ( दे.भा. ११.२०)। शरीर बड़ा था, एवं सिर मोटा था। इसके केस भूरे थे वौलि--वसिष्टकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । एवं इसके शरीर का वर्ण पिंगा था। इस प्रकार इसका वौशडि--अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। शरीर जन्म से ही अत्यंत विरूप होने के कारण, इसे व्यंस-एक दानव, जो इंद्र का शत्रु था (ऋ. २.१४.)। कुबेर नामान्तर प्राप्त हुआ था ( ब्रह्मांड. ३.८.४०-४४: | सायणाचार्य इसे व्यक्तिवाचक नाम नहीं मानते । कुबेर देखिये)।
___ व्यश्व--एक ऋषि, जो अश्विनों की कृपापात्र व्यक्तियों महाभारत में मुचकुंद राजा से हुआ इसका संवाद
में से एक था (ऋ. १.११२.१५ ) । ऋग्वेद के आठवें प्राप्त है, जो 'मुचकुंद-वैश्रवण संवाद' नाम से प्रसिद्ध
मंडल के अनेक सूक्तों में इसका निर्देश प्राप्त है, जिनकी
मडल क अ है (म. उ. १३०.८-१०; मुचकुंद देखिये)।
रचना संभवतः इसके विश्वमनस् वैयश्व नामक वैश्वानर--इंद्रसभा का एक ऋषि ।
शिष्य के द्वारा की गयी थी (. ८.२३.१६; २३; २. एक अग्नि, जो भानु (मनु) नामक अग्नि का | २४.२२, २६.९)। ऋग्वेद में अन्यत्र एक प्राचीन ऋषि के प्रथम पुत्र था। इसकी उपासना के लिए पाँच वैश्वदेव- |
नाते इसका निर्देश प्राप्त है (ऋ. ८.९.१०, ९.६५.७)। विधि बताये गये है (भा. २.२.२४) ।
| २. एक जातिविशेष, जिसमें वश अश्व्य नामक आचार्य ३. एक दानव, जो कश्यप एवं दनु के पत्रों में से एक उत्पन्न हुआ था (ऋ.८.२४.२८)। था। इसकी उपदानवी, हयशीरा, पुलोमा एवं कालका नाम | व्यश्व आंगिरस-एक साम एवं सूक्तद्रष्टा ऋषि चार कन्याएँ थी, जिनमें से अंतिम दो कन्याओं का | (ऋ८. २६; पं. वा. १४.१०.९)। विवाह कश्यप प्रजापति से हुआ था ( भा. ६.६.६)। । व्यष्टि-एक आचार्य, जो सनारु नामक आचार्य का
वैश्वानरि--भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। | शिष्य था। इसके शिष्य का नाम विप्रचित्ति था (बृ. उ.
वैश्वामि-एक पैतृक नाम, जो विश्वामित्र के पुत्र | ४.५.२२, ४.५.२८ माध्य.), एवं वंशजों के लिए प्रयुक्त किया जाता है। ऋग्वेद में
| व्याघ्र-एक राक्षस, जो यातुधान नामक राक्षस का पुत्र निम्नलिखित सूनद्राओं के लिए 'वैश्वामित्र' पैतृक नाम | था। इसके पुत्र का नाम निरानंद था (ब्रह्मांड. ३.७.७९)। प्रयुक्त किया गया है:-१. अष्टक (ऋ. १०.१०४ );
२. एक यक्ष, जो भाद्रपद माह के सूर्य के साथ भ्रमण २. कत (ऋ. ३.१७ ); ३. पूरण (ऋ. १०.१६०);
करता है। प्रजापति (ऋ. ३.३८.४); ५. मधुच्छंदस् (ऋ. १.१
___ व्या रकेतु-पाण्डव पक्ष का एक पांचाल योद्धा, १०); ६. रेणु (ऋ. ९.७०)।
जो भारतीय युद्ध में कर्ण के द्वारा मारा गया (म. क. ऐतरेय ब्राह्मण में, देवरात के लिए भी इस पैतृक नाम | ४०.४६-४८)। का प्रयोग किय गया है (ऐ. ब्रा. ७.१७ )।
व्यावदत्त-मगध देश का एक राजकुमार, जो वैष्टपुरय--एक आचार्य, जो रोहिणायन एवं | भारतीय युद्ध में कौरवों के पक्ष में शामिल था। सात्यकि शांडिल्य नामक आचार्यों का शिष्य था (बृ. उ. २.५. ने इसका वध किया (म. द्रो. ८२.३२)। २०; ४. .२५ माध्यं.)। विष्ठपुर का वंशज होने से, २. पाण्डवों के पक्ष का एक पांचाल योद्धा, जो भारइसे यह नाम प्राप्त हुआ होगा।
| तीय युद्ध में द्रोण के द्वारा मारा गया । इसक अश्व