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________________ वैशंपायन की सारी चर्चा विस्तृत रूप में दी गयी है, एवं इसी सत्र में भारत ग्रंथ सर्वप्रथम कथन किये जाने का निर्देश वहाँ स्पष्ट रूप से प्राप्त है ( म. आ. ५३ ) । प्राचीन चरित्रकोश 'मास' ग्रन्थ का प्रचार - वैशंपायन के 'भारत' ग्रंथ को को सौति ने काफी परिवर्धित किया, एवं एक लक्ष श्लोकों का यह महाभारत ग्रंथ, शौनकादि ऋषियों के द्वारा नैमि पारण्य में आयोजित द्वादशवर्षीय रूप में सर्वप्रथम कथन किया | अनेक आख्यान एवं उपाख्यान सम्मिलित किये जाने के कारण सीति के इस महाभारत ग्रन्थ को विस्तार काफी बढ़ गया था। उसी परिवर्धित रूप में महाभारत ग्रंथ आज उपलब्ध है । व्यास, वैशंपायन एवं सौति के द्वारा विरचित 'जय' 'भारत एवं 'महाभारत' का रचनाकाल प्रमशः ग्रंथों ३१०० ई. पू. २५०० ई. पू. एवं २००० ई. पू. लगभग माना जाता है। भविष्य के अनुसार, व्यास के द्वारा प्राप्त 'जय' ग्रंथ इसने सुमन्तुको कथन किया, जो आगे चल कर सुमन्तु ने कामेजय पुत्र शतानीक राजा को कपन किया (भवि. ब्राह्म. १.३०-३८ ) । वैशालेय ग्रंथ - इसके नाम पर निम्नलिखित ग्रंथ उपलब्ध है:१. वैशंपायन - संहिता; २. वैशंपायन - नीतिसंग्रह; ३. वैशपायन स्मृति ४. वैरायन नीतिप्रकाशिका (CC)। २. भृगुकुलोत्पन्न एक गोकार | ३. युधिविर के राजसूय यश में उपस्थित एक ऋि (भा. १०.७४.८ ) 1 याज्ञवल्क्य ज्ञान से विरोध वैशंपायन के उत्तरकालीन आयुष्य से याशय से इसका 'दुर्वेद संहिता' से संविदा बढ़ता ही गया, यहाँ तक कि स्वयं जननेजय राजा ने भी वैशंपायन के 'कृष्णयजुर्वेद' का त्याग करावय के द्वारा प्रणीत 'द' को स्वीकार किया। स्वयं के द्वारा किये गये अश्वमेध यज्ञ में उसने इसे टाल पर यावदय को अपने यश का ब्रह्मा बनाया। ४. एक ऋषि, जिसका शौनक ऋषि के साथ तत्त्वज्ञान पर संबाद हुआ था (वायु. ९९.२५१ ) । वैशाख्य- एक आचार्य, जो वायु एवं ब्रह्मांड के अनुसार, व्यास की सामशिष्यपरंपरा में से कौथुम पाराशर्य नामक ऋषि का शिष्य था । वैशाल एक आचार्य, जो वायु एवं के अनुसार व्यास की सामशिष्यपरंपरा में से हिरण्यनाभ नामक आचार्य का शिष्य था । पाठभेद (ब्रह्मांड पुराण) - 'वैशालिन् '। वैशालि -- अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । वैशालिनी अविक्षित राम की पानी, मरुत आविक्षित राजा की माता थी। इसके पिता का नाम विशाल था। इसके स्वयंवर के समय अधिक्षित् राजा ने इससे विवाह करना चाहा । किन्तु अन्य राजाओं ने उसे पराजित कर इसका पुनः स्वयंवर करने की आशा विशाल आज्ञा राजा को दी । किन्तु इसी समय, अविक्षित् राजा के पिता करंचम ने उपस्थित राजाओं को परास्त कर इसका हरण किया, एवं अपने पुत्र अविक्षित् से इसका विवाह कराया । अविक्षित् राजा से इसे मरुत्त आविक्षित नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था, थे अपने समय का सर्वश्रेष्ठ सम्रा था। इसके पति अविक्षित के द्वारा सर्पयज्ञ किये जाने पर, इसने अपने पुत्र मरुत्त के द्वारा सपों को अभय दिया धा ( मार्क. ११९ - १२६) । आगे चलकर वैशंपायन एवं यायलय का यह बादविवाह इतना वह गया कि उस कारण जनमेजय को राज्यत्याग करना पड़ा (मत्स्य १०.५७-६४१ बा इसके अतिरिक्त अविक्षित् राजा की निम्नलिखित ९९.३५०-३५५: याशास्य वाजसनेय एवं जनमेजय पत्नियाँ थी, जो सभी उसे स्वयंवर में प्राप्त हुई थी याज्ञवल्क्य ८. देखिये) । आययन एवं हिरण्यकेशिन् लोगों के पितृश्रौतसूत्र तर्पण में वैशंपायन का निर्देश प्राप्त है ( आ. श्री. ३.३ स. गृ. २०.८-२० ) । इसके नाम पर 'नीतिप्रकाशिका नामक अन्य एक ग्रंथ भी उपलब्ध है, जिसका अंग्रेजी अनुषा हो ओपर्ट के द्वारा किया गया है। इस ग्रंथ डॉ. नेत्रों के साथ बंदूक के बारूद का उल्लेख भी प्राप्त है १. हेमधर्मकन्या वराः २. सुदेवकन्या गौरी; ३. बलिकन्या सुभद्रा ४. वीरकन्या लीलावती ५ वीर विभा ६. भीमकन्या मान्यवती, एवं ७. दंमकन्या कुमुद्वती ( मार्के. ११९.१६-१७ ) । 3 वैशालेय - तक्षक नामक आचार्य का पैतृक नाम (अ. वे. ८.१०.१९) । विशाल का वंशज होने से, इसे । यह पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा । । | । प्रा. च. ११५ ] ९१३
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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