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व्यात्रदत्त
प्राचीन चरित्रकोश
व्याडि
कृष्ण-रक्त ऐसे संमिश्र रंग के थे (म. द्रो. २२.१६६४, पाणिनि अपने मातृवंश की ओर से रिश्तेदार थे, ऐसा पंक्ति. १-२)।
माना जाता है। ६. एक पाण्डवपक्षीय राजा, जो अश्वत्थामन् के द्वारा । व्याडि की बहन का नाम व्याड्या था (पा. सू. ४. मारा गया (म. क. ४.३७*)।
१.८०), एवं पाणिनि की माता का नाम दाक्षी था । कई व्याघ्रपद-वसिष्ठ ऋषि का एक पुत्र । यह व्याधयोनि
अभ्यासकों के अनुसार, व्याड्या एवं दाक्षी दोनों एक में उत्पन्न होने के कारण इसे 'व्याघ्रपद' नाम प्राप्त हुआ
ही थे, एवं इस प्रकार व्याडि आचार्य पाणिनि के मामा या (म. अनु. ५३.३०)। इसके उपमन्यु एवं धौम्य
थे। किंतु बेबर के अनुसार, इन दो व्याकरणकारों में दो नामक दो पुत्र थे, जिसमें से उपमन्य को 'वैयाघ्रपद पाहाया का अतर था, एवं 'नमातिशाख्य' में निर्दिष्ट पैतृक नाम प्राप्त हुआ था (म. अनु. १४.४५)।
व्याडि पाणिनि से उत्तरकालीन था। २. वसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ऋषिगण ।
संभवतः इसके पिता का नाम व्यड था, जिस कारण व्याघ्रपाद वासिष्ट---- एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. ९.
इसे 'व्याडि' पैतृक नाम हुआ होगा। इसके ' दाक्षायण' ९७.१६-१८)।
नाम से इसके वंश के मूळ पुरुष का नाम दक्ष विदित २. एक स्मृतिकार जिसके नाम पर एक स्मृतिग्रंथ
होता है। किंतु अन्य कई अभ्यासक, 'दाक्षायण' इसका उपलब्ध है (C.C.)।
पैतृक नहीं, बल्कि 'दैशिक' नाम मानते है, एवं इसे व्याघ्रहर--एक राक्षस, जो उर्ध्वष्टी नामक राक्षस का दाक्षायण देश का रहनेवाला बताते है । मत्स्य में दाक्षि पुत्र था। इसके पुत्र का नाम शरभ था (ब्रह्मांड. ३.७. को अंगिराकुलोत्पन्न ब्राह्मण कहा गया है (मत्स्य २०७)।
१९५.२५)। व्याघ्राक्ष--रकंट का एक सैनिक (म..श. ४४.५४)। ऋकातिशाख्य में--शौनक के 'ऋक्प्रातिशाख्य' में व्याज-एक देव, जो भृगु ऋषि का पुत्र था( ब्रह्मांड. वैदिक व्याकरण के एक श्रेष्ठ आचार्य के नाते व्याडि का
निर्देश अनेक बार मिलता है, जिससे प्रतीत होता है कि, २. नुपित देवों में से एक।
यह शौनक के शिष्यों में से एक था। अपने 'विकृतवल्ली' व्याची-वसिष्ठ ऋषि की पत्नी । इसके कुल १९ ग्रंथ के आरंभ में इसने आचार्य शौनक को नमन गोत्रकार पुत्र थे, जिनमें निम्नलिखित प्रमुख थे :-१. किया है। व्याघ्रपाद २. मन्ध; ३. बादलोम; ४. जाबालि; ५. मन्यु; पाणिनीय व्याकरण का व्याख्याता--व्याडि वैदिक ६. उपम यः ७. सेतुकर्ण आदि (म. अनु, ५३.३०-३२ व्याकरण का ही नहीं, बल्कि पाणिनीय व्याकरण का भी
श्रेष्ठ भाष्यकार थाव्याडि दाक्षायण--एक सुविख्यात व्याकरण कार
रसाचार्यः कविाडिः शब्दब्रह्मैकवाङ्मुनिः। जो संग्रह' नामक वैदिक व्याकरणविषयक ग्रन्थ का
दाक्षीपुत्रवचोव्याख्यापटुर्मीमांसाग्रणिः । कर्ता माना जाता है । इसका यही ग्रन्थ लुप्त होने पर,
(समुद्रगुप्तकृत 'कृष्णचरित' १६)। पतंजलि ने व्याकरण महाभाष्य नामक ग्रंथ की रचना की थी । अमरकोश के अनेकानेक भाष्यग्रन्थों में, व्या डि एवं । | संग्रहकार व्याडि पाणिनि के अष्टाध्यायी का ('दाक्षीवररुचि को व्याकरणशास्त्र के अंतर्गत लिंगभेदादि के | पुत्रवचन') का श्रेष्ठ व्याख्याता, रसाचार्य, एवं मीमांसक शास्त्र का सर्वश्रेष्ठ आचार्य कहा गया है।
था।] व्याकरण महाभाष्य में एवं का शिका में इसका निर्देश इसके 'मीमांसाग्रणि' उपाधि से प्रतीत होता है क्रमशः 'दाक्षायण' एवं 'दाक्षि' नाम से प्राप्त है | कि, इसने मीमांसाशास्त्र पर भी कोई ग्रंथ लिखा होगा। (महा. २.३.६६ काशिका. ६.२.६९) । काशिका के | पतंजलि के व्याकरण-महाभाष्य में इसे 'द्रव्यपदार्थवादी' अनुसार, दाक्षि एवं दाक्षायण समानार्थि शब्द माने जाते | कहा गया है (महा. १.२.६४) । अष्टाध्यायी में भी थे (काशिका. ४.१.१७, तत्रभवान दाक्षायणः दाक्षिा )। 'व्या डिशाला' शब्द का निर्देश प्राप्त है, जिसका संकेत
वंश-आचार्य पाणि नि दाक्षीपुत्र नाम से सुविख्यात | संभवतः इसी के ही विस्तृत शिष्यशाखा की ओर किया था। इसी कारण 'दाक्षायण' व्याडि एवं दाक्षीपुत्र' | गया होगा (पा. सू. ६.२.८६ )।
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पापा।