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________________ वैयास्क प्राचीन चरित्रकोश वैशंपायन वैयास्क- छंदशास्त्र का एक आचार्य (ऋ. प्रा. १७. वैशंपायन--एक महर्षि, जो महर्षि व्यास के चार २५)।रौथ के अनुसार, यहाँ निरुक्तकार यारक की वेदप्रवर्तक शिष्यों में से एक, एवं कृष्ण यजुर्वेदीय ओर संकेत किया गया है, एवं 'वैयास्क' का सही रूप तैत्तिरीय संहिता' का आद्य जनक था। 'विशंप' का वंशज वै+ याक है। होने के कारण, इसे 'वैशंपायन' नाम प्राप्त हुआ होगा। वैरपरायण-अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। वैदिक साहित्य में इस साहित्य में से केवल तैत्तिरीय वैराज-महाभारत में निर्दिष्ट सात प्रमुख पितरों में आरण्यक एवं गृह्यसूत्रों में वैशंपायन का निर्देश मिलता एक ( पितर देखिये)। बाकी छः पितरों के नाम निम्न है। ऋग्वेद के कई मंत्रों का नया अर्थ लगाने का युगथे:- १. अग्निप्वात्तः २. सोमपः ३. गार्हपत्यः ४. एक- प्रवर्तक कार्य वैशंपायन ने किया । ऋग्वेद में 'सप्त दिशो शृंगः ५. चतुर्वेद एवं ६. कल (म. स. ११.१३३४)। नाना सूर्याः ' नामक एक मंत्र है (ऋ. १.११४.३ ). ब्रह्मांड में इन्हें विरजस् नामक प्रजापति के पुत्र कहा | जिसका अर्थ 'पृथ्वी के सात दिशाओं में सात सूर्य हैं, गया है (ब्रह्मांड. ३.७.२१२)। मत्स्य में इन्हें अमूर्त एवं श्रौतकर्म में सात दिशाओं में अधिष्ठित हए सात पितरों में से एक कहा गया है। प्रारंभ में ये योगी थे। ऋत्विज (होता) ही सूर्यरूप है, 'ऐसा अर्थ वैशंपायन वहाँ से योगभ्रष्ट होने पर, इन्हें सनातन ब्रहालोक में पुनः के काल तक किया जाता था। किंतु वैशंपायन ने ऋग्वेद में जन्म प्राप्त हुआ । वहाँ ब्रह्मा के एक दिन तक उसके साथ अन्यत्र प्राप्त 'यज्ञाव इद्र सहस्त्रं सूर्या अनु' (ऋ. ८. रहने पर, अगले कल्पारंभ में इन्हें ब्रह्मवादिन् के रूप ७०.५), के आधार से सिद्ध किया कि, ऋग्वेद में में पुनः जन्म प्राप्त हुआ। इस जन्म में इन्हें अपने | निर्दिष्ट सूर्यों की संख्या सात नहीं, बल्कि एक सहस्त्र है पूर्वजन्म का स्मरण हुआ, एवं ये पुनः एक बार योगाभ्यास | (ते. आ. १७)। में मग्न हुए। पाणिनीय व्याकरण में-एक वैदिक गुरु के नाते, आगे चल कर इसी योगसाधना से इन्हें मुक्ति प्राप्त वैशंपायन का निर्देश पाणिनि के 'अष्टाध्यायी' में प्राप्त का हुई.। इनकी मानसकन्या का नाम मेना था, जो हिमवत् है (पा. सू. ४.३.१०४)। पतंजलि के 'व्याकरण महाकी पत्नी थी। ये पितर अत्यंत परोपकारी रहते है, एवं | भाष्य' में इसे कठ एवं कला पिन् नामक आचार्यों का योगाभ्यास करनेवाले हर एक व्यक्ति को सहायता तो गुरु कहा गया है। पहुँचाते है (मत्स्य. १३.३-६)। ___ कृष्णयजुर्वेद का प्रवर्तन--वैशंपायन ऋषि 'निगद, · वैरूप--एक पैतृक नाम, जो निम्नलिखित आचार्यों (कृष्णयजुर्वेद) का प्रवर्तक, एवं वेदव्यास के चार प्रमुख के लिए प्रयुक्त किया गया है:-- १. अष्टादंष्ट्र (पं. वा. वेदप्रवर्तक शिष्यों में से एक था। वेद व्यास के पैल. ४.९.२१); २. नभःप्रभेदन (ऋ. १०.११२); ३. शत वैशंपायन, जैमिनि एवं सुमंतु नामक चार प्रमुख शिष्य प्रभेदन (ऋ. १०.११३); ४. सध्रि (ऋ. १०.११४)। थे, जिन्हें उसने क्रमशः ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं वैरोचन--असुरराज बलि का पैतृक नाम, जो उसे | अथर्ववेद का ज्ञान प्रदान किया था (बृ. उ. २.६.३; विरोचन का पुत्र होने के कारण प्राप्त हुआ था। ब्रह्मांड. १.१.११)। वैशंपायन को संपूर्ण यजुर्वेद का ज्ञान वैरोचनी-त्वष्ट्रपत्नी यशोधरा का पैतृक नाम, जो उसे प्राप्त होने का गौरवपूर्ण उल्लेख महाभारत एवं पुराणों में विरोचन असुर की कन्या होने के कारण प्राप्त हुआ था। भी प्रान्त है (म. आ. १.६१-६३% ५७.७४; शां. वैवशप-कश्यपकुलोत्पन्न गोत्रकार ऋषिगण । ३२७. १६-१८; ३२९:३३७.१०-१२, वायु.६०.१२वैवस--भृगुकुलोत्पन्न एक प्रवर । वैवस्वत--एक पैतृक नाम, जो वेदों में निम्नलिखित १५, ब्रह्मांड.२.३४.१२-१५, विष्णु. ३.४.७-९, लिंग. १.३९.५७-६०; कूर्म. १.५२.११-१३)। व्यक्तियों के लिए प्रयुक्त किया गया है:- १. यम (ऋ. ९.११३.८); २. मनु (ऋ. १०.४७.१७; अ. शिष्यशाखा--वेदव्यास से प्राप्त 'कृष्णयजर्वेद' की वे. ८.१०)। वैशंपायन ने ८६ संहिताएँ बनायी, एवं उसे याज्ञवल्क्य वैवस्वत मन-वैवस्वत नामक सातवे मन्वन्तर का | के सहित, ८६ शिष्यों में बाँट दी । विष्णा के अनसार. अधिपति मनु, जिसे पुराणों में विवस्वत एवं संज्ञा का इसने २७ संहिताएँ बनायी, जो अपने २७ शिष्यों बाँट पुत्र कहा गया है (मनु वैवस्वत देखिये)। दी (विष्णु. ३.५.५-१३)। ९११
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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