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________________ वैदेहरात प्राचीन चरित्रकोश वैयासकि वैदेहरात--विश्वामित्र कुलोत्पन्न एक ऋषिगण । ४. पृथी (ऋ. ८.९.१०; पं. वा. १३.५.२०; श. बा. पाठभेद-'देवराज'। वैदेही-जनमेजयपुत्र शतानीक की पत्नी । वैपश्चित--ताय नामक आचार्य का पैतृक नाम वैद्य--वरुण एवं सुनादेवी के पुत्रों में से एक। इसके (श. ब्रा, १३.४.३.१३)। पुत्रों के नाम घृणि एवं मुनि थे, जो आपस में लड़ कर वैपश्चित दाढजयन्ति गुप्त लौहित्य--एक आचार्य, मर गये (वायु. ८४.६-८)। जो वैपश्चित दार्ट जयन्ति दृढजयन्त लौहित्य नामक आचार्य २. सुखदेवों में से एक। का शिष्य था (जै. उ. वा. ३.४२.१)। विपश्चित् , दृढ़वैद्यग--अंगिरस्कुलोत्पन्न एक मंत्रकार। जयन्त, एवं लोहित का वंशज होने के कारण इसे 'वैपश्चित'. वैद्यनाथ--शिव का एक अवतार, जो रावण की | 'दाढजयन्ति' एवं 'लौहित्य' ये पैतृक नाम प्राप्त हुए होंगे। प्रार्थना से चिताभूमि में प्रकट हुआ था (शिव. शत. | वैपश्चित दाढजयन्ति दृढजयन्त लौहित्य-एक ४२)। कई विद्वानों के अनुसार, महाराष्ट्र में स्थित 'परली वैजनाथ' का शिवस्थान यही है (ज्योतिलिंग देखिये)। आचार्य, जो विपश्चित दृढजयन्त लौहित्य नामक आचार्य का शिष्य था (जै. उ. ब्रा. ३.४२.१)। वैधस-हरिश्चंद्र नामक आचार्य का पैतृक नाम (ऐ. | ब्रा. ७.१३.१; सां. श्री. १५.१७.१) वेधस् का वंशज | वैभांडक अथवा वैभांडकि--पूर्णभद्र नामक आचार्य होने से उसे यह नाम प्राप्त हुआ होगा। | का पैतृक नाम (पूर्णभद्र देखिये)। वधृत--धमेसावणि मन्वन्तर का इंद्र ( भा. 2. वैभूवस-त्रित नामक आचार्य का पैतक नाम १३.२५)। | (ऋ. १०.४६.३)। वैधृति--विधृति के पुत्रों का सामूहिक नाम, जिन्होंने | वैभीषणि--विभीषण का पुत्र, जिसने मणिकुंडल सारे वेद अपने मन में एकत्रित कर रखे थे (भा. नामक वैश्य को शापमुक्त किया था (मणिकुंडल देखिये)। ८.१.२९)। वैमृग-एक दानव, जो कश्यप एवं दनु के पुत्रों में से २. तामस मन्वन्तर का देवगण । एक था (ब्रह्मांड. ३.६.११)। ३. धर्मसावर्णि मन्वन्तर के धर्मसेतु नामक अवतार वयश्व---विश्वमनस् नामक आचार्य का पैतृक नाम की माता। (ऋ.८. २३.२५, २४.३३)। व्यश्व का वंशज होने से ४. धर्मसावर्णि मन्वन्तर का इंद्र । उसे यह नाम प्राप्त हुआ होगा। ५. तामस मन्वन्तर के देवों की माता। वैयाघ्रपदीपुत्र--एक आचार्य, जो काण्वीपुत्र एवं वैधेय--एक आचार्य, जो वायु एवं ब्रह्मांड के अनुसार, । का पिपुत्र नामक आचार्य का शिष्य था (बृ. उ.६.५.१ व्यास की यजुःशिष्यपरंपरा में से याज्ञवल्क्य का वाजसनेय काण्व.)। इसके शिष्य का नाम कौशिकिपुत्र था । व्याघ्रशिष्य था। पद्य के किसी स्त्री वंशज का पुत्र होने से, इसे यह मातृक वैन--एक आचार्य, जो ब्रह्मांड के अनुसार, व्यास की नाम प्राप्त हुआ होगा। सामशिष्यपरंपरा में से शंगीपुत्र नामक आचार्य का वैयाघ्रपद्य--एक पैतृक नाम, जो वैदिक साहित्य में शिष्य था। | निम्नलिखित आचार्यों के लिए प्रयुक्त किया गया है :वैनतेय--गरुड की प्रमुख संतानों में से एक १. इंद्रद्युम्न भाल्लवेय (श. बा. १०.६.१.८; छां. उ. ५. (म. उ.९९.१०)। १४.१); २. बुडिल आश्वतराश्चि (छां. उ. ५.१६.१); २. गरुड का नामान्तर (मत्स्य. १५०.२१४)। ३. गोश्रति (छां. उ. ५.२.३; सां. आ. ९.७); ४. वैनहोत्र--(सो. क्षत्र.) क्षत्रवृद्धवंशीय वीतिहोत्र राजा | राम कातुजातेय (जै. उ. बा. ३.४०.१; ४.१६.१) ५. का नामान्तर । विष्णु में इसे धृष्टकेतु राजा का पुत्र कहा | उपमन्यु वासिष्ठ (ऋ. ९.९७.१३-१५)। गया है। २. एक आचार्य (ला. श्री. ४.९.१७) । वैन्य-भृगुकुलोत्पन्न एक मंत्रकार। ३. युधिष्ठिर के द्वारा अज्ञातवास में धारण किया गया २. एक पैतृक नाम, जो निम्नलिखित राजर्षियों के लिए | नाम (म. वि. ३२.४४)। प्रयुक्त किया गया है :--१. अत्रि; २. पृथि; ३. पृथु । वैयासकि-शुक का पैतृक नाम ।
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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