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________________ वैजान प्राचीन चरित्रकोश वैजान-श नामक आचार्य का पैतृक नाम (पं.ब्रा. १३.३.१२) । विजान का वंशज होने के कारण, उसे यह पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा । वेबर के अनुसार, इस पैतृक नाम का सही पाठ ' वै+जानः ' था ( वेबर, इन्डिशे स्टूडियेन. १०.३२ ) । वैदभतीपुत्र -- एक आचार्य, जो काकेयीपुत्र नामक आचार्य का शिष्य था (बृ. उ. ६.५.२. काण्व ) । पाठ'वैधृतिपुत्र' । वैडव - वसिष्ठ ऋषि का पैतृक नाम (पं. बा. ११.८. १४) । 'वीड' का वंशज होने से इसे यह पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा। किन्तु सायण भाष्य में वसिष्ठ को वीड का पुत्र कहा गया है (तां. बा. ११.८.१४ ) । वैणव – विश्वामित्रकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । वैतंड्य--(तो. आयु. ) एक राजा, जो आयु (आप) राजा का पुत्र था (ब्रह्मांड. ३.३.२४, वायु ६६.२३) । वैतरण — ऋग्वेद में निर्दिष्ट एक पैतृक नाम (ऋ. १०. ६१.१७ ) । भरत एवं वध्यश्व के भाँति, वैतरण के अभि का निर्देश भी ऋग्वेद में प्राप्त है । वैतहव्य - एक परिवार का सामूहिक नाम । एक ब्राह्मण की गाय भक्षण करने के कारण, इस परिवार के लोगों के पतन होने का निर्देश अथर्ववेद में प्राप्त है (अ. वे. ५.१८.१०-११; १९.१ ) । इन्हें संजय कहा गया है, किन्तु त्सीमर के अनुसार, वैतहव्य कोई स्वतंत्र लोग न हो कर, वह संजय लोगों की केबल उपाधि मात्र ही थी । अन्य अभ्यासक लोग इन्हें स्वतंत्र परिवार मानते हैं, एवं ' वीतहव्य का वंशज' इस अर्थ से वैतहव्य की निरुक्ति बताते हैं । वैदिक साहित्य में निम्नलिखित आचायों का पैतृक नाम 'वैतव्य' दिया गया है: - १. अरुण (ऋ. १०.९१); २. वीतहव्य आंगिरस (ऋ. ६.१५ ); संजय ( अ. वे. ५.१९.१ ) । वैतान --एक आचार्य, जो कृष्णयजुर्वेदान्तर्गत 'वैतान श्रौतसूत्र' नामक ग्रंथ का रचियता माना जाता है । वैताल -- एक आचार्य, जो भागवत के अनुसार, व्यास की ऋक शिष्यपरंपरा में से जातुकर्ण्य नामक आचार्य का शिष्य था । पाठभेद - 'वैतालिक ' । वैतालिक - - एक आचार्य, जो विष्णु के अनुसार व्यास की ऋशिष्यपरंपरा में से शाकपूणि नामक आचार्य का शिष्य था । भागवत में इसे 'वैताल' कहा गया है । "वेदह वैताली - स्कंद का एक सैनिक ( म. श. ४४.६२ )। वैद-- हिरण्यदत नामक आचार्य का पैतृक नाम (ऐ. ब्रा. ३.६.४९ ऐ. आ. १०.९ ) । विद का वंशज होने से इसे यह पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा । पाठभेद'बैद' | वैदथिन--ऋजिश्वन् नामक आचार्य का पैतृक नाम ( ऋ. ४.१६.१३, ५.२९.११ ) । विदथिन् का वंशज हो से उसे यह पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा । वैददश्वि-- एक पैतृक नाम, जो वैदिक साहित्य में निम्नलिखित आचार्यों के लिए प्रयुक्त किया गया है :१. तरंत (ऋ. ५.६१.१०); २. पुरुमीह (पं. बा. १३. ७.१२; जै. ब्रा. १.५१; ३. १३९ ) । वैदृभतीपुत्र -- एक आचार्य, जो कार्शके यी पुत्र नामक आचार्य का शिष्य, एवं क्रौं चिकीपुत्र नामक आचार्यद्वय का गुरु था (बृ. उ. ६.४.३२ माध्यं. ) । बृहदारण्यक उपनिषद के काण्व संस्करण में इसे वैद्यभतीपुत्र कहा गया है (बृ. उ. ६.५.२ काण्व.) । शतपथ ब्राह्मण में इसे भालुकपुत्र नामक आचार्य का शिष्य कहा गया है ( श. बा. १४.९.४.३२ ) । वैदर्भ--भीम नामक राजपि का 'देशीय ' नाम (ऐ. प्रा. ७.३४.९ ) । विदर्भ देश का राजा होने के कारण, उसे यह नाम प्राप्त हुआ होगा । वैदर्भि --एक राजा, कन्या अगस्त्य को विवाह में दी थी ( म. अनु. १३७. जिसने अपनी लोपामुद्रा नामक ११ ) । २. भार्गव नामक आचार्य का पैतृक नाम (प्र. उ. १. ।। विदर्भ का वंशज होने के कारण उसे यह पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा। वैदर्भी--एक देशीय नाम, जो निम्नलिखित विदर्भ राजकन्याओं के लिए प्रयुक्त किया गया है:- १. दमयन्ती; २. रुक्मिणी; ३. लोपामुद्रा; ४. सगर पत्नी कोशिनी; ५. मलयध्वजपत्नी । ९०९ वैदेह---(स. निमि.) एक राजा, जो विष्णु के अनुसार निमि राजा का पुत्र था । निमि राजा के वंशजों के लिए भी यह नाम प्रयुक्त है ( भा. ९.१३.३ ) । २. एक देशीय नाम, जो विदेह देश के निम्नलिखित राजाओं के लिए प्रयुक्त किया गया है: - १. जनक ( तै. बा. ३.१०.९.२१); २. नमी साध्य (पं. बा. २५. १०.१७)।
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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