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वेन पार्थ
प्राचीन चरित्रकोश
वैजवापायन
जानस धर्मपत्रकार, जिसक
न्मूलन किया
वेन पार्थ-एक राजा, जिसके औदार्य की प्रशंसा तान्व | वैखानस--एक पविशेष, जो व्यपोहिनी' नामक पृथुपुत्र नामक आचार्य के द्वारा की गयी है (ऋ.१०.९३. | यज्ञसंस्कार की दीक्षा ले कर उत्पन्न हुए थे। पुराणों में १४)। 'पृथा' का वंशज होने से इसे 'पार्थ' मातृक निम्नलिखित ऋषियों का निर्देश 'वैखानस संप्रदायी' नाम प्राप्त हुआ होगा (ऋ. १०.९३.१५)।
ऋषि के नाते प्राप्त है :-१. नहुषपुत्र पृथु (मत्स्य. ___ लो. तिलकजी के अनुसार, वेन एक व्यक्ति का नाम | २४.५१), २. अगस्त्य, (मत्स्य.६१.३७ ); ३. ययातिन हो कर, आकाशस्थ ग्रह का नाम था (ऋ. १०.१२३)। भ्राता यति (ब्रह्मांड. ३.६८.१४; ब्रह्म. १२.३, ह. वं. किन्तु इस संबंध में निश्चित प्रमाण उपलब्ध नहीं है। । | १.३०.३; मळ्य. २४.५१)।
वेन आर्गव -एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. ९.८५,१०. २. एक वैदिक ऋषिसमुदाय, जिसमें सौ ऋषि १२३)।
समाविष्ट थे (ऋ. ९.६६)। ये ब्रह्मा के नाखून से उत्पन्न वेन वाजश्रवस--एक ऋषि, जो बाईसवाँ व्यास था | हुए थे (ते. आं. १.२३)। पंचविंश ब्राह्मण के अनुसार (व्यास देखिये)।
रहस्य देवमलिम्लुच ने मुनिमरण नामक स्थान में इनका वेश--एक दानव, जिसे इंद्र ने आयु राजा की रक्षा
वध किया था (पं. बा. १४.४.७; तै. आ १.२३. के लिए पराजित किया था (ऋ, ७.१८.११)। संभ
३)। इस ऋषिसमूह में पुरूहन्मन् नामक ऋषि समाविष्ट वतः 'दास वेश' एवं यह दोनों एक ही व्यक्ति होंगे (ऋ. या (त. आ. १४.९.२९) । २.१३.८)।
३. एक धर्मशास्त्र कार, जिसका धर्मशास्त्रविषयक ग्रंथ
'वैखानस धर्मप्रश्न' नाम से सुविख्यात है । यह ग्रंथ कृष्णवैकर्ण--एक राजद्वय, जिनके इक्कीस जातियों
यजुर्वेदान्तर्गत धर्मसूत्र ग्रंथ माना जाता है, एवं अनंतः (जनान् ) का सुदास ने दाशराज्ञ-युद्ध में उन्मूलन किया
शयनग्रंथावलि में मुद्रित किया गया है (क्र. २८, इ.स. था (ऋ. ७.१८.२१)। सीमर के अनुसार, वैकर्ण दो
१९१३)। राजाओं का नाम न हो कर, कुरु एवं क्रिवि जातियों का
वैखानस धर्मप्रश्न--इस ग्रंथ में वानप्रस्थाश्रम ग्रहण सामूहिक नाम था (त्सीमर, अल्टिण्डिशे लेबेन १०३)।
करने का धार्मिक विधि विस्तारपूर्वक दिया गया है, एक जाति के रूप में विकर्ण लोगों का निर्देश महा
| एवं वानप्रस्थियों के लिए सुयोग्य आचार भी बताये भारत में प्राप्त है (म. भी. ४७.१५), जो काश्मीर
गये है। प्रदेश में बसे हुए थे । इससे प्रतीत होता है कि, ऋग्वेद
इस ग्रंथ में अनुलोम एवं प्रतिलोम विवाह से उत्पन्न में निर्दिष्ट वैकर्ण लोग इसी प्रदेश के रहनेवाले थे।
संतानों के लिए सुयोग्य व्यवसाय भी बताये गये हैं। वैकर्णिक-वैकर्णेय नामक कश्यपकुलोत्पन्न गोत्रकार
इसके साथ ही साथ निम्नलिखित विषयों की चर्चा भी गण का नामान्तर ।
इस ग्रंथ में प्राप्त है:-चार वर्ण एवं चार आश्रम के वैकणिनि-भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । लोगों के कर्तव्यः संध्या, वैश्वदेव, स्नान, आचमन आदि
वैकर्णय-कश्यपकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ऋषिगण । | के धार्मिक विधि, चार वर्गों के लोगों के लिए सुयोग्य पाठभेद- 'वैकणिक ।
व्यवसाय, आदि। वैकलिनायन--वैकृति गालव नामक विश्वामित्र 'वैखानस धर्मप्रश्न' के अनेक उद्धरण मनुस्मृति में कुलोत्पन्न गोत्रकार का नामान्तर ।
प्राप्त है (मनु. ६.२१)। इसके अतिरिक्त इसके नाम वैकंठ---चाक्षुष एवं रैवत मन्वन्तरों में उत्पन्न अवतार। पर 'वैखानस श्रौतसूत्र' नामक ग्रंथ भी उपलब्ध है। २. रैवत मन्वन्तर का एक देवगण।
___४. चंपक नगरी एक राजा, जिसने मार्गशीर्ष शुक्ल ३. इंद्र का अवतार (इंद्र देखिये )।
एकादशी के व्रत का पुण्य अपने पितरों को दे कर उनका ४. एक ब्राह्मण, जिसकी कथा 'दीप-महात्म्य' बताने के उद्धार किया (पन. उ.३९)। लिए पद्म में कथन की गयी है ( पद्म. ब्र. ३)। __वैगायन--भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ।
वैकति गालव-विश्वामित्रकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । वैजभृत--भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। पाठभेद-'वैकालिनायन'।
वैजवापायन-बैजवापायन नामक आचार्य का वैक्लव--वसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । | नामान्तर।
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