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वेदशिरस्
प्राचीन चरित्रकोश
वेन
सामूहिक नाम धारण करनेवाले अनेकानेक पुत्र उत्पन्न ___ मृत-देह का मंथन---इसकी मृत्यु के पश्चात् , अंगवंश हुए (ब्रह्मांड. २.११.७; वायु. २८.६ )।
निवेश न हो इस हेतु इसकी माता सुनीथा ने इसके मृतएक बार इसके तप में बाधा डालने के लिए शुचि शरीर का दोहन करवाया। इसके दाहिनी जाँघ की नाम एक अप्सरा इसके पास आयी, जिससे इसे एक | मंथन से निषाद नामक एक कृष्णवर्णीय नाटा पुरुष कन्या उत्पन्न हुई। इस कन्या का हरण यमधर्म ने | उत्पन्न हुआ, जिससे आगे चल कर निषाद जाति-समूह करना चाहा, जिस कारण इसने उसे नदी बनने का शाप के लोग उत्पन्न हुए। आगे चल कर ऋषियोंने इसके दाहिने दिया । काशी में स्थित 'धर्म' नद वही है (कंद ४.२.५९)। हाथ का मंथन किया, जिससे पृथु वैन्य नामक चक्रवर्ति ३. (खा.) एक राजा, जो प्राण राजा का पुत्र था
| राजा उत्पन्न हुआ, जो साक्षात् विष्णु का अवतार था (भा. ४.१.४५)।
(म. शां. ५९.१०६)।
ऋषियों के द्वारा वेन का वध होने की, एवं इसके ४. स्वारोचिष मन्वन्तर के विभु नामक इंद्र का पिता ।
दाहिने हाथ के मंथन से पृथु वैन्य का जन्म होने की कथा ५. रैवत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक।
सभी पुराणों में प्राप्त है (ह. वं. १.५.३-१६; वायु. ६. एक ऋषि, जो कृशाश्व ऋषि एवं धिषणा का पुत्र
६२.१०७-१२५; भा. ४.१४; विष्णुधर्म. १.१०८; था। इसे पाताल में स्थित नौगों से 'विष्णु पुराण' का ज्ञान
१.१३, ७.२९; ब्रह्म. ४; मत्स्य. १०.१-१०)। प्राप्त हुआ था, जो इसने आगे चल कर प्रमति नामक अपने शिष्य को प्रदान किया (विष्णु. ६.८.४७)।
महाभारत के अनुसार, इसकी दाहिनी जाँघ की मंथन
से निषाद, एवं विंध्य गिरिवासी म्लेच्छों का निर्माण हुआ वेदशेरक--वसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ऋषि-गण ।
था (म. शां. ५९.१०१-१०३)। पद्म के अनुसार, यह वेदश्री-रेवत मन्वन्तर का एक ऋषि (ब्रह्मांड. २.
ऋषियों के द्वारा मृत नही हुआ, बल्कि एक वल्मीक में ३६.६२)।
छिप गया था (पद्म. भू. ३६-३८)। वेदश्रुत--उत्तम मन्वन्तर का एक देव (भा. ८.१.
वायु में--इस ग्रंथ में वेन के शरीर के दोहन की कथा २४)।
कुछ अलग प्रकार से प्राप्त है । दुष्टप्रकृति वेन ने मरीचि वेदस्पर्श--देवदर्शनामक आचार्य का नामान्तर । वायु
आदि ऋषियों का अपमान किया, जिस कारण ऋषियों ने में इसे कबंध ऋषि का शिष्य कहा गया है, एवं इसने
इसके हाथ एवं पाव पकड़ कर इसे नीचे गिराया । पश्चात् अथर्ववेद के चार भाग कर उसे अपने चार शिष्यों में |
उन्होंने इसके हाथ एवं पाव खूब घुमाये, जिस कारण इसके बाँट देने का निर्देश वहाँ प्राप्त है (वायु. ६१.५०)। |
दाहिने एवं बाये हाथ से क्रमशः पृथु वैन्य एवं निषाद का वेधस्-ब्रह्मा का नामान्तर (भा. ८.५.२४)। निर्माण हुआ। इनमें से निषाद का जन्म होते ही ऋषियों
२. अंगिराकुलोत्पन्न एक मंत्रकार (मत्स्य. १४५- | ने 'निषीद' कह कर अपना निषेध व्यक्त किया, जिस ९९)।
कारण इस कृष्णवर्णीय पुत्र को निषाद नाम प्राप्त हुआ। बेन-(स्वा. उत्तान.) अंग देश का एक दुष्टकर्मा | इस मंथन के बाद वेन मृत हुआ(वायु.६१.१०८-१९३)। राजा. जो अंग एवं मृत्यु की मानसकन्या सुनीथा का पुत्र | इसके दो पुत्रों में से, पृथु इसके पिता अनंग के अंश था। भागवत में इसे तेईसवा वेदव्यास कहा गया है। | से उत्पन्न हआ था, एवं निषाद की उत्पत्ति इसके स्वयं के महाभारत में कदमपुत्र अनंग को इसका पिता कहा गया | पापों से हुई थी। निषाद के रूप में इसका पाप इसके है (म. शा. ५९.९६-९९)।।
शरीर से निकल जाते ही यह पापरहित हुआ। पश्चात् अनाचार--यह शुरू से ही दुर्वत्त था। यह अपने | तृणबिंदु ऋषि के आश्रम में इसने विष्णु की उपासना की, मातामह मृत्यु (अधर्म) के घर में पालपोस कर बड़ा जिस कारण इसे स्वर्लोक की प्राप्ति हुई (पन. भू. ३९हुआ था। इसके दुष्ट कर्मों के कारण, त्रस्त हो कर इसका ४०; १२३-१२५)। महाभारत के अनुसार, अपनी मृत्यु पिता अंगदेश छोड़ कर चला गया। राज्यपद प्राप्त होते के पश्चात् यह यमसभा में सूर्यपुत्र यम की उपासना करने ही इसने यज्ञयागादि सारे कर्म बंद करवाये। यह स्वयं लगा (म. स. ८.१८)। को ईश्वर का अवतार कहलाता था। इसके दुश्चरित्र के २. एक राजा, जो वैवस्वत मनु के दस पुत्रों में से एक कारण, ऋषियों ने इसका वध किया (म. शां. ५९.१००)। था (म. आ. ७०.१३)।
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