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________________ वेद । प्राचीन चरित्रकोश वेदशिरस् प्रकार से निभाने के कारण इसने उत्तंक को अनेकानेक | अग्निप्रवेश--एक बार रावण ने इस पर बलात्कार आशीर्वाद प्रदान किये ।' | करना चाहा, किंतु उससे अपनी मुक्तता कर इसने अग्निअपनी शिक्षा समाप्त होने के पश्चात् , उत्तंक ने इसकी | प्रवेश कर अपनी इज्जत बचायी । मृत्यु के पूर्व इसने पत्नी को पौष्य राजा की पत्नी के कुण्डल गुरुदक्षिणा के | रावण को शाप दिया था। राम दाशरथि के द्वारा रावण रूप में प्रदान किये (उत्तंक देखिये)। का वध होने की विधिघटना का यही प्रारंभ हुआ, जिसका ३. एक शिवभक्त राजा, जो सिंधुद्वीप राजा का भाई था। स्मरण रावण को अपनी मृत्यु के समय हूंआ था (ब्रह्मवै. वेददर्शन--देवदर्श नामक आचार्य का नामान्तर २.१४.५२; वा. रा. उ. १७) ( देवदर्श देखिये)। इसने सुमन्तु से अथर्ववेद संहिता | वेदवृध्द--एक आचार्य, जो वायु एवं ब्रह्मांड के सीखी थी, जो आगे चल कर इसने अपने शौक्लायानि | अनुसार, व्यास की सामशिष्यपरंपरा में से कौथुम पाराशय आदि शिष्यों को प्रदान की (भा. १२.७.१-२)। नामक आचार्य का शिष्य था (व्यास देखिये)। वेदनाथ–एक राजा, जो ब्राह्मण के द्रव्य का अप- वेदव्यास-एक सुविख्यात ऋषिसनुदाय । वैवस्वत हरण करने के कारण वानर बन गया था। अपने मित्र | मन्वन्तर के अट्ठाईस द्वापारों में उत्पन्न होने वाले अट्ठाईस सिंधुद्वीप की सलाह के अनुसार, धनुषकोटी तीर्थ में स्नान | वेद व्यासों की नामावलि पुराणों में प्राप्त है। ये सभी ऋषि कर, यह वानरयोनि से मुक्त हुआ (स्कंद. १.३.१४)। इसे | वेदव्यास नाम से ही अधिक सुविख्यात है ( ब्रह्मांड, 'वेदभृतिपुत्र' एवं 'भालंकिपुत्र' नामान्तर भी प्राप्त थे।। २.३३.३३: ३५.११७-१२५; व्यास देखिये)। वेदवाहु-कृष्ण के पुत्रों में से एक (भा. १०.९०.३४)। २. कृष्ण द्वैपायन व्यास का नामान्तर (व्यास पाराशर्य २. रैवत मन्वन्तर का एक ऋषि । | देखिये)। वेदमित्र-एक आचार्य, जो विष्णु के अनुसार वेदशर्मन्--(सो. विदू.) एक राजा, जो मत्स्य के व्यास की ऋक् शिष्य परंपरा में से मांडकेय नामक अनुसार शोणाश्व राजा का पुत्र था। आचार्य का शिष्य था। यह स्वयं शाकलगोत्रीय था, एवं २. बिदुर का एक मित्र, जो उसके साथ कालिंजर व्याकरणशास्त्र के संबंधित इसके अनेकानेक मतों के पर्वत पर गया.था । वहाँ सिद्धों के द्वारा प्राप्त उपदेश . उद्धरण ऋप्रातिशाख्य में प्राप्त है (ऋ. प्रा. ५२)। के अनुसार, इसने सोमवती अमावास्या के दिन 'अघइसके कुल पाँच शिष्य थे। इसके नाम के लिए | | तीर्थ' पर स्नान किया, जिस कारण इसे मुक्ति प्राप्त हुई 'देवमित्र' पाठभेद प्राप्त है (व्यास देखिये )। (पद्म भू. ९१.-९२)। . वेदवती--एक राजकन्या, जो कुशध्वज जनक की | ३. पिशाचयोनि में प्रविष्ट हुआ एक ब्राह्मण, जो कन्या थी । इसकी माता का नाम मालावती था। इसे | - सीता का पूर्वजन्मकालीन अवतार माना जाता है । जन्म मुनिशर्मन् नामक विष्णुभक्त ब्राह्मण के द्वारा मुक्त हुआ होते ही इसने मुख से वेदध्वनि निकाला, जिस कारण | (पद्म. पा. ९४)। . इसे 'वेदवती' नाम प्राप्त हुआ। ४. शिवशर्मन् नामक विष्णुभक्त ब्राहाण का पुत्र । - इसके पिता की इच्छा थी कि, इसका विवाह विष्ण वेदशिरस्-एक शिवावतार, जो वाराहकल्पान्तर्गत से किया जाय । एक बार शंभु नामक राक्षस ने इससे | वैवस्वत मन्वन्तर में से पंद्रहवें युगचक्र में उत्पन्न हुआ. विवाह करना चाहा, किन्तु अपने पूर्व योजना के अनुसार | था। सरस्वती नदी के उत्तरीतट पर हिमालय पर्वत के कुशध्वज ने उसे ना कह दिया। इस कारण क्रुद्ध हो | अंतर्भाग में स्थित वेदशीर्ष नामक स्थान में यह अवतीर्ण कर, शंभु राक्षस ने कुशध्वज जनक का वध किया। हुआ। इसका प्रमुख अस्त्र महावीय था, एवं इसके शिष्यों तपस्या--अपने पिता के मृत्यु की पश्चात् , यह में निम्नलिखित चार शिष्य प्रमुख थे:- १. कुणि; २. पुष्करतीर्थ पर जा कर तपस्या करने लगी, जिस कारण कुणिबाहु; ३. कुशरीर; ४. कुनेत्रक ( शिव. शत. ५; अगले जन्म में विष्णु की पत्नी बनने का आशीर्वाद इसे | वायु. २३.१६६-१६८)। प्राप्त हुआ । इसी आशीर्वाद के अनुसार, अपने अगले २. एक भृगुवंशीय ऋषि, जो मार्कंडेय ऋषि का पुत्र जन्म में यह श्रीविष्णुस्वरूपी राम दाशरथि राजा की | था। इसकी माता का नाम मूर्धन्या (धूम्रा) था। इसकी पत्नी बनी। पत्नी का नाम पीवरी था, जिससे इसे 'मार्कंडेय ९०६
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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