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________________ प्राचीन चरित्रकोश वेंकटेश दक्षिण भारत में प्रचलित वेंकटेश उपासना का आय प्रचारक रामानुजाचार्य माने जाते हैं, जिनके द्वारा प्रणीत रामाय वैष्णव सांप्रदाय की अधिष्ठात्री देवताओं में वेंकटेश एक माना जाता है। दक्षिण भारत में स्थित तिरुपति देवस्थान भारत का एक सर्वाधिक संपन्न देवस्थान माना जाता है, जहाँ विश्वविद्यालय, पाठशाला, धर्मशाला, बँक, बस सर्विस आदि सारी सुविधाएँ देवस्थान के द्वारा संचालित है । सारे भारत में रहनेवाले इस देवता के उपासक लक्षावधि रुपियों की भेंट इसे प्रतिवर्ष स्वयंस्फूर्ति से अर्पित ते है। वेणी एवं वेणीकंद कौरव्येत्पन्न एक नाग, जो बनने का शाप दिया। जनमेजय के सर्पसत्र में दग्ध हुआ था । वेणु--(सो. सह.) एक राजा, जो विष्णु के अनुसार शतजित् राजा का पुत्र था। इसके भाई का नाम हय था, जिसके साथ इसका निर्देश ‘वेणुहय' नाम से अनेक प्राप्त है (विष्णु ४.११.७ ) । कई अन्य पुराणों में इसका नाम चेहय दिया गया है, एवं इसके भाइयों के नाम 'हैहय' एवं ‘हयं ' बतायें गये है (भा. ९.२३.२१; वायु. ९४०४) । गुर्जय युधिशिरसभा में उपस्थित एक ऋषि (म. स. ४.१५) । वेणुदारि - एक यादव, जो दक्षिणी भारत में स्थित अश्मक देश का अधिपति था (ह. २०६१.१९) । इसने ( अकूर) की पत्नी का हरण किया था (म. स. परि. १.११.१५७२) । वर्ण ने अपने दक्षिणदिग्विजय मैं इसके पुत्र का पराजय किया था (म. व परि १. क्र. २४. पंक्ति. ५७-५८ ) | वेणुहय-- वेणु राजा का नामांतर ( वेणु देखिये) । वेणुहोत्र - ( सो. क्षत्र. ) क्षत्रवृद्धवंशीय वीतिहोत्र राजा का नामांतर (वीतिहोत्र ४. देखिये ) । वायु में इसे वृष्टकेतु राजा का पुत्र कहा गया है ( वायु. ९२.७२ ) । वेतसु --एक दानव, जो द्योतन एवं कुत्स नामक आचायों का शत्रु था। इंद्र ने अपने इन दोनो मित्रों की सहायता के लिए इसका वध किया (ऋ. ६.२०.८९ २६. ४) । बेताल - पिशाचों का एक समूह, जो रुद्रगणों में शामिल था । ये लोग युद्धभूमि में उपस्थित रह कर मानवी रक्त एवं मांस भक्षण करते थे (मा. २.१०.३९ ) । देवता मान कर इनकी पूजा की जाती थी, जहाँ सर्वत्र इन्हें शिव के उपासक ही माना जाता था ( मत्स्य. २५९.२४ ) । २.शिव का एक पद को उसके द्वारपाल का काम करता था। एक बार शिव एवं पार्वती क्रीडा कर रहे थे, उस समय क्रीडा के उन्मत्त वेश में पार्वती सहजवंश द्वार पर आयी ! उसे देख कर यह काममोहित हुआ, एवं उनका अनुनय करने लगा । इसका यह धाष्ट देख कर पार्वती अत्यंत क्रुद्ध हुई, एवं उसने इसे पृथ्वी पर मनुष्य २. एक जातिविशेष, जिसके अधिपति का नाम दशद्यु था । इस जाति के लोगों ने तुग्र लोगों को पराजित किया था (ऋ. १०.४९.४) । प्रा. च. ११४ ] पार्वती के शाप के कारण, इसने 'वेताल' के रूप में पृथ्वी पर जन्म लिया । तदुपरांत अपने प भक्तदासता से प्रेरित हो कर शिव एवं पार्वती भी महेश एवं शारदा नाम से पृथ्वी पर अवतीर्ण हुए (शिव. शत. १४) । , कालिका पुराण में -- इस ग्रंथ में इसके भाई का नाम भैरव बताया गया है एवं इन दोनों को चंद्रशेखर राजा एवं तारावती के पुत्र कहा गया है। अपने पूर्वजन्म में ये भृंगी एवं महाकाल नामक शिवदूत थे, जिन्हे पार्वती के शाप के कारण पृथ्वीलोक में जन्म प्राप्त हुआ था। इनके पिता चंद्रशेखर ने इन्हें राज्य न वे कर इनके अन्य तीन भाइयों को वह प्रदान किया। इस कारण ये अरण्य में तपस्या करने गये एवं शिव की उपासना करने लगे। आगे चल कर बसिनु की कृपा से, इन्हें संध्याचल पर्वत पर शिव का दर्शन हुआ, एवं कामाख्या देवी की उपासना से इन्हें शिवगणों का आधिपत्य भी प्राप्त हुआ। इनके वंश में उत्पन्न लोगों का ' वेतालवंश ' भी कालिका पुराण में दिया गया है। वेतालजननी - स्कंद की अनुचरी एक मातृका (म. श. ४५.१३ ) । वेद - भृगुकुलोत्पन्न एक मंत्रकार पाठभेद ( वायुपुराण ) - ' विद' | २. एक ऋषि, जो धौम्य ऋषि का शिष्य, एवं जनमेजय उपाध्याय था ( म. आ. ३.७९-८५ ) । इसे 'बैद ' नामान्तर भी प्राप्त था । का इसके शिष्य का नाम उतंक था। एक बार वह परदेश गया था, जिस समय अपने घर की एवं पत्नी की रक्षा करने के लिए इसने उत्तंक को कहा था। यह कार्य उत्तम २०५
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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