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वृकद्वरस्
प्राचीन चरित्रकोश
इसका सही पाठ 'वृकध्वरस्' था । हिलेब्रांट के अनुसार, । २. अमिताभ देवों में से एक । यह इरान से संबंधित किसी राजा का नाम था। वृत्र--एक अंतरिक्षीय दैत्य, जो इंद्र के प्रमुख शत्रु
वृकदेवा अथवा वृकदेवी--देवक राजा की सात था। यास्क ने इसे 'मेघ दैत्य' माना है, जो आकाशस्थ कन्याओं में से एक, जो वसुदेव की पन्नी थी। इसे | जल का अवरोध करता है। प्रभंजनों के स्वामी इंद्र ने अवगाहक एवं नंदक नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए थे (वायु. | अपने वज्र (विद्युत् ) से इस असुर का विच्छेद किया, ९६.१३०)।
एवं पृथ्वी पर जल वर्षा की । इसीका वध करने के लिए वकल-वृक गजा का नामान्तर (वृक १२. देखिये)। इंद्र ने जन्म लिया था, जिस कारण उसे ऋग्वेद में २. अक्रर के पुत्रों में से एक (मत्स्य. ४५.२९)। वृत्रहन्' उपाधि दी गयी है (ऋ. ८.७८) । वृत्र के वकोदर--भीमसेन पाण्डव का नामान्तर (भा. १. साथ इंद्र ने किये संघर्ष को ऋग्वेद में 'वृत्रहत्त्या' एवं
'वृत्रतूर्य' कहा गया है। वृकोदरी--पूतना राक्षसी की बहन (आदि. १८.
जन्म-वृत्र की माता का नाम दानु था,जो शब्द ऋग्वेद १०१)।
में जलधारा के अर्थ में प्रयुक्त किया गया है (ऋ. १. वृक्षावासिन्--कुवेरसभा का एक यक्ष ।
३२)। इसी शब्द का पुलिंगी रूप 'दानव' एक मातृक वृचया--कक्षीवत् नामक ऋषि की पत्नी, जो उसे
नाम के नाते वृत्र अथवा सर्प के लिए, और्णवाम नामक अश्विनों के द्वारा प्रदान की गयी थी (ऋ. १.५१.३;
दैत्य के लिए, एवं इंद्रद्वारा वधित सात दै.यों के लिए कक्षीवत् देखिये)।
प्रयुक्त किया गया है (ऋ. २.११, १२, १०.१२०.६)। वृचीवत्--एक ज्ञातिसमूह, जिसे संजयराज दैववात ने जीत लिया था (ऋ. ६.२७.५) । ऋग्वेद में इनका
___ स्वरूपवर्णन--वृत्र का रूप सर्पवत् माना गया है, निर्देश तुर्वश लोगों के साथ प्राप्त है । ऋग्वेद के इसी
अतः इसके हाथ एवं पैर नहीं है (ऋ. ३.३०.८ )। सूक्त में अभ्यावर्तिन चायमन के द्वारा इन लोगों का। किंतु इसके सर का एवं जबड़ों का निर्देश ऋग्वेद में हरियूपीया नदी के तट पर पराजित होने का निर्देश
प्राप्त है (ऋ. १.५२.१०, ८.६.६, ७३.२)। सर्प की प्राप्त है । ओल्डेनबर्ग के अनुसार, ये लोग एवं तुर्वशलोग | भाति यह फूफकारता है (ऋ. ८.८५); एवं गर्जन, संजयों के विपक्ष में थे (ओल्डेनबर्ग, बुद्ध. ४०४)।
विद्यत् एवं झंझावात इसके आधीन है (ऋ. १.८०)। त्सीमर के अनुसार, ये एवं तुर्वश लोग दोनों एक ही थे निवासस्थान-वृत्र का एक गुप्त (निणय ) निवासस्थान (सीमर, अल्टिबिडशे लेबेन. १२४) । किन्तु यह तर्क | था, जो एक शिखर ( सानु ) पर स्थित था (ऋ. १.३२; अयोग्य प्रतीत होता है।
८०)। इसी निवासस्थान में इंद्र ने जलधाराएँ छोड़ कर पंचविंश ब्राह्मण के अनुसार, ये एवं जह्न लोगों में वृत्र का वध किया था, एवं बहुत उँचाई से इसे नीचे राजसत्ता प्राप्त करने के लिए संघर्ष हुआ था, जिसमें गिराया था (ऋ. ८.३)। इसके निन्यानब्बे दुर्ग थे, जो जह्न लोगों का राजा विश्वामित्र ने इन्हें परास्त किया था। इन्द्र ने इसकी मृत्यु के समय ध्वस्त किये थे (ऋ. ७.१९: (ता. ब्रा. २१.१२.२)।
१०.८९)। वृजिन्वत्-(सो. क्रोष्टु.) एक राजा, जो क्रोष्टु राजा
पराक्रम-वृत्र के निम्नलिखित पराक्रमों का निर्देश का पुत्र एवं स्वाही राजा का पिता था (भा. ९.२३.
ऋग्वेद में प्राप्त है :-१. जलधाराओं को रोकना (ऋ२. ३१)! महाभारत में इसके पुत्र का नाम उषगु दिया
१५.६); २. गायों का हरण करना (ऋ. २.१९.३); गया है (म. अनु. १४७.२८-२९)।
३. सूर्य को ढंकना (ऋ. २.१९.३); ४. सूर्योदय (उपस्) वृत्त--एक सर्प, जो कश्यप एवं कद्र के पुत्रों में से
को रोकना (ऋ. ४.१९.८) । ऋग्वेद में अन्यत्र वृत्र के
द्वारा मेघो को अपने उदर में छिपाने का निर्देश भी प्राप्त एक था।
२. (स्वा. उत्तान.) एक राजा, जो शिष्ट एवं सुन्छाया है (ऋ. १.५७)। शंबर, बल, अहि आदि दानवों के के पुत्रों में से एक था।
| लिए भी ऋग्वेद में यही पराक्रम वर्णित है। वृत्ति--मनु नामक रुद्र की पत्नी (भा. ३. वध--इसका वध करने के लिए देवों ने इंद्र का वध १२.१३)।
| किया (ऋ. ३.४९.१; ४.१९.१)। इंद्र एवं वृत्र का युद्ध ८९६