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________________ विष्णुगुप्त 'चाणक्य प्राचीन चरित्रकोश . विष्णुगुप्त 'चाणक्य' अपने संपूर्ण स्वरूप में नहीं, बल्कि टूटेफूटे एवं पुनरुद्धृत | कौटिल्य के अर्थशास्त्र में राज्यशासन से संबंधित रूप में आज उपलब्ध है। | समस्त अंगोपांगों का सविस्तृत परामर्ष लिया गया है। नाम-यद्यपि इसे चाणक्य, कौटिल्य आदि नामान्तर | इस ग्रंथ में चर्चित प्रमुख विषय निम्नप्रकार हैं, जो प्राप्त थे, फिर भी इसका पितृप्रदत्त नाम विष्णुगुप्त था। उसमें प्राप्त अधिकरणों के क्रमानुसार दिये गये है:-- ई. स. ४०० में रचित 'कामंदकीय नीति-सार' में इसका १. विनयाधिकारिक ( राजा के लिए सुयोग्य आचरण); निर्देश विष्णुगुप्त नाम से ही किया गया है : २. अध्यक्षप्रचार (सरकारी अधिकारियों के कर्तव्य ); नीतिशास्त्रामृतं धीमानर्थशास्त्रमहोदधेः । ३. धर्मस्थीय (न्यायविधि); ४. कंटकशोधन (राज्य समुद्दधे नमस्तस्मै विष्णु गुप्ताय वेधसे ।। की अंतर्गत शांति एवं सुव्यवस्था ); ५. योगवृत्त (फितुर लोगों का बंदोबस्त ); ६. मंडलयोनि ( राजा, अमात्य ( अर्थशास्त्ररूपी समुद्र से जिसने नीतिशास्त्ररूपी आदि 'प्रकृतियों के गुणवैशिष्टय ); ७. पाइगुण्य (परनवनीत का दोहन किया, उस विष्णुगुप्त आचार्य को मैं राष्ट्रीय राजकारण ); ८. व्यसनाधिकारिक ( प्रकृतियों क प्रणाम करता हूँ)। • व्यसन एवं उनका प्रतिकार ): ९. अभियास्यत्कर्म चणक नामक किसी आचार्य का पुत्र होने के कारण, (युद्ध की तैयारी); १०. सांग्रमिक ( युद्धशास्त्र ); इसे संभवतः 'चाणक्य' पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा। ११. संघवृत्त ( राज्य के नानाविध संघटनाओं के साथ कौटिलीय अर्थशास्त्र में इसने स्वयं का निर्देश अनेक बार व्यवहार); १२. आवलीयस (बलाढ्य शत्रु से व्यवहार); 'कौटिल्य' नाम से किया है, जो संभवतः इसका गोत्रज | १३. दुर्गलभोपाय ( दुगों पर विजय प्राप्त करना); नाम था। कई अभ्यासकों के अनुसार, यह राजनीति- १४. औपनिषदिक (गुप्तचरविद्या ); १५. तंत्रयुक्ति शास्त्र में कुटिल नीति का पुरस्कर्ता था, जिस कारण इसे (अर्थशास्त्र की युक्तियाँ)। 'कौटिल्य' नाम प्राप्त हुआ था । म. म. गणपतिशास्त्री के इस प्रकार इस ग्रंथ में, राज्यशासन के अंतर्गत परअनुसार, इसके नाम का सही पाठ 'कौटल्य' था, जो राष्ट्रीय, युद्धशास्त्रीय, आर्थिक, वैधानिक, वाणिज्य आदि इसके 'कुटल' नामक गोत्रनाम से व्युत्पन्न हुआ था। समस्त अंगों का सविस्तृत परामर्ष लिया गया है, यहाँ नामांतर--हेमचंद्र के 'अभिधानचिंतामणि' में तक की, राज्य में उपयोग करने योग्य वजन, नाप एवं इसके निम्नलिखित नामांतर प्राप्त है:-वात्स्यायन, काल-मापन के परिमाण भी वहाँ दिये गये हैं। मलनाग, कुटिल, चणकात्मज, द्रामिल, पक्षिलस्वामिन् , भाषाशैली--इस ग्रंथ की भाषाशैली आपस्तंब. बौ वायन विष्णुगुप्त, अंगुल (अभिधान. ८५३-८५४)। आदि सूत्रकारों से मिलती जुलती है । इस ग्रंथ में उपयोग ___जीवनवृत्तांत--इसके जीवन के संबंध में प्रामाणिक | किये गये अनेक शब्द पाणिनीय व्याकरण, एवं प्रचलित सामग्री अनुपलब्ध है, एवं जो भी सामग्री उपलब्ध है वह संस्कृत भाषा में अप्राप्य है। उदाहरणार्थ, इस ग्रंथ में प्रायः सारी आख्यायिकात्मक है। उनमें से बहतसारी प्रयुक्त 'प्रकृति' (सम्राट् ); 'युक्त' (सरकारी अधिकारी): सामग्री विशाखदत्त कृत 'मुद्राराक्षस' नाटक में प्राप्त 'तत्पुरुष' (नोकर); 'अयुक्त' (बिनसरकारी नोकर) ये शब्द है, जहाँ यह 'ब्राह्मण' चित्रित किया गया है, एवं संस्कृत भाषा में अप्राप्य, एवं केवल अशोक शिलालेख महापद्म नंद राजा के द्वारा किये अपमान का बदला लेने में ही निर्दिष्ट हैं। के लिए, इसने चंद्रगुप्त मौर्य को मगध देश के राजगद्दी पूर्वाचार्य--अपने ग्रंथ में इसने अर्थशास्त्रसंबंधी ग्रंथपर प्रतिष्ठापित करने की कथा वहाँ प्राप्त है। रचना करनेवाले अनेकानेक पूर्वाचायों का निर्देश किया कौटिलीय अर्थशास्त्र-यह एक राजनीतिशास्त्रविषयक है, एवं लिखा है, 'पृथिवी की प्राप्ति एवं उसकी रक्षा के ग्रंथ है, जिसमें राज्यसंपादन एवं संचालन के शास्त्र लिए पुरातन आचार्यों ने जितने भी अर्थशास्त्रविषयक को 'अर्थशास्त्र' कहा गया है। इस ग्रंथ में पंद्रह अधि- ग्रंथों का निर्माण किया है, उन सब का सार-संकलन कर करण, एक सौ पचास अध्याय, एक सौ अस्सी प्रकरण प्रस्तुत अर्थशास्त्र की रचना की गयी है। (को. अ. एवं छः हजार श्लोक है । यह ग्रंथ प्रायः गद्यमय है, । १.१.११)। जिस कारण इसकी श्लोकसंख्या अक्षरों की गणना से दी इसके द्वारा निर्देशित पूर्वाचार्यों में मनु, बृहस्पति, गयी है। द्रोण-भरद्वाज, उशनस् , किंचलक, कात्यायन, घोटकमुख, / लिए परा है, 'प्रथि मपंद्रह
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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