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________________ विष्णु . प्राचीन चरित्रकोश विष्णुगुप्त 'चाणक्य' विष्णु के तीर्थ थान--महाभारत एवं पुराणों में विष्णु नामान्तर भी प्राप्त था (भा. १२.११.४४; उरुक्रम के निम्नलिखित तीर्थस्थानों का निर्देश प्राप्त है:- | देखिये )। (1) विष्णुपदतीर्थ--यह कुरुक्षेत्र में था। यही ६. भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार (मत्स्य. १९५.२०)। नाम के अन्य तीर्थ भी भारतवर्ष में अनेक थ इस तीर्थ में। ७. पाण्डवों के पक्ष का एक राजा, जो कण के द्वारा स्नान कर के वामन की पूजा करनेवाला मनुष्य विष्णु | मारा गया था। लोक में जाता है (म. व. ८१.८७)। ८. सावर्णि मनु के पुत्रों में से एक। (२) विष्णुपद-- गया में स्थित एक पवित्र पर्वत, १. धर्मसावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक । जहाँ धर्मरथ ने यज्ञ किया था (म स्य. ४८.९३ )। १०. भौत्य मनु के पुत्रों में से एक । ब्रह्मांड में निषद पर्वतों में स्थित एक सरोवर का नाम भी विष्णु प्रजापति-एक प्रजापति, जिसके मानसपुत्र 'विष्णय दिया गया है (ब्रह्मांड. २.१८.६७) । इसी ग्रन्थ | का नाम विर जस् था। महाभारत में विरजस् राजा का वंश में अन्यत्र गंगानदी के उगमस्थान को 'विष्णपद' कहा गया निम्न प्रकार दिया गया है:-विरजस- कीर्तिमतहै, एवं ध्रुव का तपस्यास्थान भी वही बताया गया है कर्दम--अनंग- अतिबल ( पत्नी-सुनीथा )--वेन-- (ब्रह्मांड. २.२१.१७६ )। पृथु वैन्य (म. शां. ५९.९३-९९)। । कई प्रमुख वणव सांप्रदाय---- श्रीविष्णु एवं वासुदेव- विष्णु प्राजापत्य-एक वैदिक सक्तद्रष्टा (ऋ. १०. . कृष्ण की उपासना के अनेकानेक सांप्रदाय ऐतिहासिक २८४ ) । काल में उत्पन्न हुए थे, जिन्होंने विष्णु-उपासना का विष्णुगुप्त चाणक्य--एक आचार्य, जो कौटिलीय स्त्रोत सदियों तक जागृत रखने वा महनीय कार्य किया। | 'अर्थशास्त्र'नामक सुविख्यात राजनैतिक ग्रंथ का कता माना विष्णु उपासना के निम्नलिखित सांप्रदाय प्रमुख माने | जाता है । जाते है :--१. रामानुज-सांप्रदाय (११ वीं शताब्दी) यह एक ऐसा अद्भुत राजनीतिज्ञ था कि, एक २.माध्य अथवा आनंदतीर्थ सांप्रदाय (११ वीं शताब्दी); ओर इसने मगध देश के नंद राजाओं के द्वारा शासित ३. निंबार्क-सांप्रदाय (१२ वीं शताब्दी); ४. नामदेव राजसत्ता को विनष्ट कर, उसके स्थान पर मौर्य साम्राज्य की एवं तुकाराम-सांप्रदाय (१३ वीं शताब्दी ); ५. कबीर प्रतिष्ठापना की, एवं दूसरी ओर 'कौटिलीय अर्थशास्त्र' जैसे सांप्रदाय (१५ वीं शताब्दी); ६. वल्लभ-सांप्रदाय (१५ | राजनीतिशास्त्रविषयक अपूर्व ग्रंथ की रचना कर, संस्कृत •धी शताब्दी); ७. चैतन्य-सांप्रदाय (१५ वीं शताब्दी); साहित्य के इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया। ८. तुलसीदास-सांप्रदाय (१६ वीं शताब्दी)। (विष्णु. ४.२४.६-७;भा.१२.१.१२-१३)। '.२. एक धर्मशास्त्रकार, जिसके द्वारा रचित स्मृतिग्रंथ | इसी कारण कौटिलीय अर्थशास्त्र के अन्त में इसने स्वयं में संस्कार एवं आश्रमधर्म का प्रतिपादन किया गया है। के संबंध में जो कथन किया है वह योग्य प्रतीत होता है:यह स्मृति प्रेतायुग में कलापनगरी में कथन की गयी थी। येन शास्त्रं च शस्त्रं च नंदराजगता च भूः। इस स्मृति के पाँच अध्याय हैं, एवं व्यंकटेश्वर प्रेस के अमर्षणोद्धृतान्याशु तेन शारूमिदं कृतम् ॥ द्वारा मुद्रित 'अष्टादशस्मृतिसमुच्चय' में यह उपलब्ध है। (कौ. अ. १५.१.१८०)। इसके 'वृद्धविष्णुस्मृति' का निर्देश संस्कारकौस्तुभ (नंदराजाओं जैसे दुष्ट राजवंश के हाथ में गये पृथ्वी, ग्रंथ में, एवं विज्ञानेश्वर के द्वारा किया गया है। शत्र एवं शास्त्रों को जिसने विमुक्त किया, उसी आचार्य ३. एक अग्नि, जो भानु (मनु) नामक अग्नि का तृ... के द्वारा इस ग्रंथ की रचना की गयी है)। पुत्र था। यह अंगिरसगात्रीय था, एवं इसे धृतिमत् नामा- राजनीतिशास्त्र जैसे अनूठे विषय की चर्चा करने के न्तर भी प्राप्त था । दर्शपौर्णमास नामक यज्ञ में इसे हविष्य । कारण ही केवल नहीं, बल्कि चंद्रगुप्त मौर्यकालीन भारतीय समर्पण किया जाता है (म. व. २११.१२)। शासनव्यवस्था की प्रामाणिक सामग्री प्रदान करने के ४. आमूतरजम् देवों में से एक। कारण, 'कौटिलीय अर्थशास्त्र' एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण ५. एक सूर्य, जो कार्तिक माह में अश्वतर नाग, रंभा ग्रंथ माना जाता है। उसकी तुलना मेगस्थिनिस के द्वारा अप्सरा, गंधर्व एवं यक्षों के साथ घूमता है। इसे उरुक्रम लिखित 'इंडिका' से ही केवल हो सकती है, जो ग्रंथ ८८७
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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