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विष्णु
प्राचीन चरित्रकोश
विष्णु
(३०) मांधातृ चक्रवर्तिन्-(मत्स्य. ४७.१५, वायु. (४८) सार्वभौम--सावर्णि मन्वन्तर का एक अवतार। ९.८.९०; ब्रह्मांड, ३.७३.९०)।
(४९) सुयज्ञ-रुचि एव आकृति का पुत्र (भा. २. (३१) मोहिनी-(म. आ. १६.२९; भा. १.३.१७; | ७.२)। ८.८; ह. वं. २.२२.४१; विष्णु. १.९.१०६-१०९)। (५०) स्वधामन--रुद्रसावर्णि मन्वन्तर का एक
(३२) यज्ञ--पद्मनाभ का नामांतर (ह. वं. २.७१. अवतार । ३०, भा. १.३.१२, ८.१.६)।
(५१) हंस--(म. शां. ३२६.९४; भा. ११.१३ )। (३३) राम दाशरथि--(अग्नि. ५-११; वायु. ९८.
(५२) हयग्रीव--(म. शां. ३२६.५६, ९४; ३३५ ९२; म. व. २५७-२७६; शां. ३२६.७८-८१: व.१४६. |
भा. २.७.११, ११.४.१७)। १५७; मा. २.७.२५; ११.४.२१; ह. वं. १.४१.१२१
(५३) हरि--१. गजेन्द्रमोक्ष (भा. ८.२-४,१०); १५५, २.२२.४४; ४८.२२; ७१.३८; मत्स्य. ४७.२४;
२. चतुर्वृह अवतारों में से एक (म. शां.६२१.८-१७; ब्रह्मांड. ३.७३.९१-९२; विष्णु. ४.४४०; ब्रह्म. २१३. |
नरनारायण देखिये)। - १२४-१५८; पद्म. उ. २४२-२४४)।
विष्णु सांप्रदाय के ग्रंथ--इस सांप्रदाय के निम्न(३४) रामकृष्ण-(भा. १.३.२३)।
लिखित ग्रन्थ प्रमुख हैं जो, 'पंचरत्न' सामुहिक नाम. से (३५) रुद्र--त्रिपुरदहन (पन, स. १९१)।
प्रसिद्ध हैं। 'पंचरत्न' में समाविष्ट पाँच आख्यान (३६) वराह--(म. स. ३५: परि. १.२१.१४०
महाभारत एवं भागवत में समाविष्ट है, एवं विष्णु के १६९; शां. २०२.१५-२८, ३२६.७२, ३३७.३६; भा.
| उपासक उसका नित्य पठन करते हैं :१.३.७, २.७.१, ३.१३-१९, ११.७.१८: ह. वं. १. ४०, ४१.२८.३९; २.२२.४०, ४८.१२-१३; ७१.३३;
- (1) भगवद्गीता-भगवान् कृष्ण ने यह अर्जुन को.
कथन की थी। यह वैष्णव सांप्रदायांतर्गत 'एकान्तिक विष्णु. १.४.८; अग्नि. ४.१.२; ब्रह्म. २१३.३२-७३;
धर्म' का आद्य ग्रन्थ माना जाता है। ब्रह्मांड. ३.७२.७३; पद्म. सु. १३.१९४; उ. २३७)। | (३७) वामन--(म. स.३५ : परि १.२१.३७०; शां.
। (२) विष्णुसहस्रनाम-महाभारत के अनुशासन ३२६.७४-७५, ब्रह्मांड. ३.७३.७७; ३३७.३६, भा. १.
पर्व में विष्णुसहस्रनाम प्राप्त है, जिसमें १०७ श्लोकों में - ३.१९; २.७.१७; ११.४.२०; ह. वं. १.४१,७९-१०६; |
विष्णु के सहस्रनाम दिये गये है। इस ग्रंथ पर आद्य शंकरा२.२२. ४३, ४८.१८; ७१.३४; मत्स्य. ४७; ब्रह्म.
चार्य के द्वारा लिखित भाष्य उपलब्ध है। इसके अंतर्गत २१३.१०५, वायु. ९८.७४-७७. ब्रह्मांड, ३.७२.७३;
विष्णु के बहुत सारे नाम वैदिक साहित्य में से (ऋषिभिः पद्म. सु. २३९.२४०; अग्नि. ४.७-११)।
परिगीतानि) उद्धृत किये गये हैं। इन्हीं नामां का कथन
भीष्म के द्वारा युधिष्ठिर को एक सर्वश्रेष्ठ जपसाधन के (३८) विष्वक्सेन-ब्रह्मसावर्णि मन्वन्तर का एक
रूप में किया गया था (म. अनु. १४९.१४-१२०)। अवतार । (३९) वैकुण्ठ--रैवत एवं चाक्षुष मन्वन्तर का एक
। (३) अनुगील -यह कृष्ण के द्वारा उत्तंक को कथन
की गयी थी (म. आश्व. ५३-५५)। अवतार। (४०) व्यास-(भा. ३.१.२१, २.७.३६; मत्स्या |
(४) भीष्मस्तवराज---इसमें भीष्म के द्वारा की गयो ४७; ह. वं. १.४१.१६१-१६२, वायु. ९८.९३; ब्रह्मांड.
विष्णु की स्तुति संग्रहित की गयी है। ३.७३.९२-९३; कर्म. पूर्व. ५१.१-११: म. शां. ३३४ (५) गजेंद्रमोक्ष-यह आख्यान शुक के द्वारा परिक्षित् ९; ३३७.३८-४०:५३-५७)।
राजा को सुनाया गया था, जहाँ उत्तम मन्वन्तर में हुए (४१) शिव (भव) (ह. वं. २.२२.३९)। 'गजेंद्रमोक्ष' की कथा सुनायी गयी है (भा. ८.२-४) (४२) संकर्षण--(भा. ५.२५.१)।
उपर्युक्त आख्यानों के अतिरिक्त निम्नलिखित पुराण(४३) सत्य (सत्यसेन)-उत्तम मन्वन्तर का एक | ग्रन्थ भी विष्णु से संबंधित, अतएव 'वैष्णव' कहलाते अवतार।
है :--१. गरुडपुराण; २. नारदपुराण; ३. भागवत(४४) सनक; (४५) सनत्कुमार; (४६) सनंदन, | पुराण; ४. विष्णुपुराण, जिसमें विष्णुधर्मोत्तर पुराण भी (४७) सनातन-(भा. २.७.५, ३.१२.४, ४.८.१)। | समाविष्ट है ( स्कंद. शिवरहत्यखंड. संभवकाण्ड.२.३४)।