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________________ प्राचीन चरित्रकोश विष्णु (६) ऋषभ---दक्षसावर्णि मन्वंतर में उत्पन्न एक अव- (१३) जामदग्न्य राम- -(परशुराम देखिये)। तार, जो नाभि एवं सुदेवी का पुत्र था (भा. २.७.९; ५.३; (१४) दत्तात्रेय--(ब्रहा. २१३.१०६;भा. १.३.११, कंद. वैष्णव. १८)। मत्स्य. ४७; वायु. ९८.८९; ब्रह्मांड, ३.७३.८८; ह. वं. (७) कच--बृहस्पतिपुत्र (ह. वं. २.२२.३९)। १.४१.१०४-११०; २.४८.१९-२०)। (८) कपिल--सांख्यशास्त्रप्रवर्तक एक आचार्य, (१५) धन्वंतरि-(भा. १.३.१७; २.७.२१)। जो स्वायंभुव मन्वतर में उत्पन्न हुआ था। इसके शिष्य (१६) धर्मसेतु--धर्मसावर्णि मन्वंतर में उत्पन्न एक का नाम आसुरि था (भा. १.३.१०; २.७.३, ३.२४ अवतार ८.१.६; म. शां. ३२६.६४; स्कंद. वैष्णव. १८)। (१७) नरनारायण-धर्म एवं मूर्ति के पुत्र । हरि (९) कल्कि विष्णुयशसू--यह अवतार गंगा-यमुना एवं कृष्ण इन्हीं की ही मूर्तियाँ हैं (भा. १.३.९; २.७.६: नदियों के बीच में स्थित संभलग्राम में संपन्न होगा (म. ११.४.६-१६; म. शां. ३२६.११; ९९)। शां. ३२६.७२; अग्नि. १६.८-१०; ब्रह्म, २१३.१६४; ब्रह्मवै. प्रकृति. ७.५८; पद्म उ.२५२;भा. १.३.२५, २.७. (१८) नरसिंह-(नृसिंह देखिये)। (१९) नारद--सात्वतधर्मोपदेशक (भा. १.३.८; ३८; ११.४.२२; मत्स्य. ४७; वायु. ९८.१०४-११५; २.७.१९)। ह. वं. १. ४१.१६२-१६६: ब्रह्मांड. ३.७३.१०४)। (१०) कूर्म- म. शां. ३२६. ७२; भा. १.३. (२०) नारायण-हिरण्यकशिपु का वधकती (मत्स्य. ४७;ह. वं. २.७१.२४; वायु. ९८.७१-७३, ब्रह्मांड. ३. १६; २.७.१३, ११.४.१८, ह. वं. २.२२.४२; विष्णु. १.४.८; अग्नेि.३)। ७३.७२)। (११) कृष्ण-(अमि. १२; पम. उ.२४५-२५२; (२१) नृसिंह-(म. स. ३५. परि. १.२१.३१०; ब्रह्म. २१३.१५९-१६२; भा. १.३.२८, २.७.२६-३५, शा. ३२६.७३, ३३७.३६; अग्नि. ४.३-४; ब्रह्म, १०, ११.४.२२; ह. वं.. १.४१.१५६-१६०; २.२२. २१३.४३-१०४; विष्णु. १:२०; भा. १.३.१८, २.७. .. ४८; वायु. ९८.९४-१०३, ब्रह्मांड. ३.७३.९३-९४)। १४, ७.८; ११.४.१९; ह. व. १.४१.३९-७९,२.२२. इसका वर्ण कृत, त्रेता, द्वापर, एवं कलियुगों में ३७; ४८.१७; ७१.३३, ब्रह्मांड. ३.७२.७३, ७३.७४; क्रमशः श्वेत, रक्त, पीत, एवं कृष्ण रहता है (म. व. वायु. ९८.७३; मत्स्य. ४७; पद्म. उ. २३८)। १४८.१६-३३; शां. ३२६.८२-९३)। (२२) पद्मनाभ-(ह. वं. २.७१.२९)। (१२) चतुर्ग्रह-चार अवतारों का एक देवतासमूह, (२३) परशुराम जामदग्न्य-(म. शां. ३२६.७७; अग्नि - जिसमें निम्नलिखित अवतार शामिल थे: ४.२२-१९; पद्म. उ. २४१; ब्रह्म. २१३.११३-१२३; ह. वं. १.१४१.१११-१२१, २.८.२०; भा. १.३.२०; नाम गुणवैशिष्टय कार्य २.७.२२; मत्स्य. ४७; ब्रह्मांड. ३.७३.९०-९१; वायु. ९८.९१)। (२४) पौष्करक--(ब्रह्म. २१३.३१; भा. १.३.१वासुदेव ज्ञान, ऐश्वर्यादि से युक्त मुक्तिप्राप्ति २; ह. वं. १.४१.२७; म. स. परि. १.२१.१४०; शां. । संकर्षण ज्ञान-बलयुक्त शास्त्रप्रवर्तन, संहार | ३२६.६९)। प्रद्युम्न ऐश्वर्य वीर्ययुक्त धर्मन्यन, सृष्टि निर्माण (२५) बलराम--(भा. १.३)। अनिरुद्ध शक्ति तेजोयुक्त तत्त्वगमन एवं (२६) बालमुकुंद--(म. व. १८६.११४-१२२; सृष्टिरक्षण १८७.१-४७)। (म. शां. ३२६.३५-४३; ६८-६९; ब्रह्म. १८०; | (२७) बुद्ध-(म. शां. ३२६.७२; नृसिंह. ३६.९; कर्म. पूर्व. ५१.३७-५०; स्कंद. वैष्णव. वासुदेव. १८ | अमि. १६.१-८; प. उ. २५२; मत्स्य. ४७)। रामानुजदर्शन पृ. ११५)। (२८) बृहद्भानु-भौत्य मन्वंतर का एक अवतार । इनके नाम नर, नारायण, हरि तथा कृष्ण भी प्राप्त है | (२९) मत्स्य--(म. शां. ३२६.७२; अग्नि. २; (म. शां. ३२१.८-१८)। | भा. १.३, २.७.१२, ११.४.१८; विष्णु १.४.८)।
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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