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________________ विष्णु प्राचीन चरित्रकोश विष्णु के शिलालेख में भी वासुदेव एवं संकर्षण देवताओं का | इससे प्रतीत होता है कि, यज्ञमार्ग एवं तपस्यामार्ग निर्देश प्राप्त है। छोड़ कर आरण्यकों में निर्दिष्ट मार्गों से निलप भक्ति सिखाने पतंजलि के महाभाष्य में वासुदेव-देवता का स्पष्टी- वाला 'नारायण सांप्रदाय एक श्रेष्ठ आणि का भक्तिसांप्रदाय करण देते समय, यह वृष्णि-वंश में उत्पन्न क्षत्रिय राजा | है। बौद्ध एवं जैन धर्मों को प्रतिक्रिया स्वरूप में इस न हो कर, एक स्वतंत्र देवी देवता है, ऐसा स्पष्टीकरण | सांप्रदाय का प्रथम जन्म हुआ, एवं इसीसे आगे चल कर प्राप्त है। किन्तु फिर भी भागवत-सांप्रदाय में सर्वत्र | वैष्णव सांप्रदाय का विकास हुआ। वासुदेव-कृष्ण को वृष्णि राजकुमार ही माना जाता है, इस सांप्रदाय में कंसवध के लिए मथुरा में उत्पन्न हुए जिस परंपरा का निर्देश पतंजलि के उपर्युक्त स्पष्टीकरण | कृष्ण को 'नारायण' अथवा 'वासुदेव' का अवतार कहा में प्राप्त है। गया है । नारायण के इसी अवतार के द्वारा प्रणयन किये डॉ. भांडारकरजी के अनुसार, वासुदेव, संकर्षण एवं | गये 'भगवद्गीता' के द्वारा वैष्णवधर्म का पुनरुस्थान अनिरुद्ध ये तीनों वृष्णि अथवा सात्वत राजकुमार थे, हुआ, एवं एक देशव्यापी धार्मिक आंदोलन के रूप में यह जिनमें से वासुदेव की पूजा एक परमात्मन् के नाते | सांप्रदाय पुनराविष्कृत हुआ। पतंजलि काल से सात्वत लोगों में की जाती थी । वासुदेव- विष्णु देवता की उत्क्रान्ति --वैदिक साहित्य में एक कृष्ण की इसी पूजा का निर्देश मेगॅस्थिनीस के प्रवास- सौर देवता के नाते वर्णन किया गया विष्णु, ब्राह्मण ग्रंथों - वर्णनों में प्राप्त है, जहाँ यमुना नदी के तट पर स्थित में यज्ञदेवता बन गया। आगे चल कर यज्ञयागादि कर्मशरसेन देश में इस देवता की उपासना प्रचलित होने का काण्डों की लोकप्रियता जब कम होने लगी, तब इन कर्मकाण्डों उल्लेख है। किन्तु इस प्राचीनकाल में केवल वासुदेव से प्राप्त होनेवाला पुण्य केवल विष्णु की उपासना से ही की ही पूजा की जाती थी। . प्राप्त होता है, ऐसी धारणा समाज में दमूल हुई (मै. उ. २. नारायण उपासना-~-महाभारत के शांतिपर्व में ६.१६)। इसी काल में ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश इस 'नारायणीय' नामक उपाख्यान में नारायण की उपासना त्रिमूर्ति की कल्पना प्रचलित हुई, एवं इन तीन देवता की सविस्तार जानकारी प्राप्त है | इस जानकारी केअनु- क्रमशः सृष्टि के उत्पत्ति, स्थिति एवं लय की अधिष्ठात्री सार इस सृष्टि का परमात्मन नारायण है, जिसने अपने देवता बन गये (मै. उ. ४.५ शिखा. २)। इसी समय, एकांतिक धर्म का कथन सर्वप्रथम नारद को किया था, विष्णु को ॐ कार उपासना में स्थान प्राप्त हुआ, एवं जो आगे चल कर उसने 'हरिगीता' के द्वारा जनमेजय को ॐ कार में से 'उ' कार के साथ श्रीविष्णु को समीकृत कथन किया था। यही उपदेश कृष्णरूपधारी नारायण किया जाने लगा (नृसिंहोत्तर तापिनी. ३)। उपनिषदों में ने भारतीय युद्ध के प्रारंभ में अर्जुन को किया था। इस अन्यत्र विष्णु के नाम से एक गायत्रीमंत्र दिया गया है, सात्वत धर्म का कथन स्वयं नारायण हर एक मन्वन्तर | एवं गोपीचंदन को 'विष्णुचंदन' कहा गया है ( वास. उ. के प्रारंभ में करते है, एवं मन्वन्तर के अन्त में वह नष्ट | २.१)। हो जाता है। इस मन्वन्तर के प्रारंभ में भी नारायण ने पौराणिक साहित्य में--इस साहित्य में इसे सत्त्वगुण अपने इस धर्म का निवेदन दक्ष, विवस्वत्, मनु एवं प्रधान देवता माना गया है, एवं जगत्संचालन एवं पालन इश्वाकु राजाओं को किया था। का कार्य इसीके ही अधीन माना गया है। इसी कारण इस धर्म में, यज्ञ में की जानेवाली पशुहिंसा एवं ऋषियों विभिन्न युगों में, यह नानाविध अवतार धारण कर पृथ्वी के द्वारा अरण्य में की जानेवाली तपस्या त्याज्य मानी पर अवतीर्ण होता है, तथा दुष्टों के संहार का एवं पृथ्वी गयी है, एवं इन दोनों उपासनाओं के बदले में नारायण के पालन का कार्य निभाता है। की निष्ठापूर्वक भक्ति प्रतिपादन की गयी है। इसी संदर्भ में स्वरूपवर्णन -विष्णु का विस्तृत स्वरूपवर्णन पुराणों में बृहस्पति के द्वारा की गयी यज्ञसाधना, एवं एकत, द्वित, प्राप्त है, जहाँ इसे चतुर्हस्त, एवं शंख, चक्र पद्म, गदाधारी एवं त्रित आदि के द्वारा हज़ारों वर्षों तक की गयी तपः- बताया गया है। इसके आयुधों में शाङ्ग धनुष एवं नंदन साधना निष्फल बतायी गयी है, एवं इन दोनों उपासना- खड्ग प्रमुख थे । इसके आभूषणों में पितांबर, वनमाला, पद्धति को त्याग कर हरि की भक्ति करनेवाला उपरि- किरीटकुंडल एवं श्रीवत्स प्रमुख थे। इसकी पत्नी का नाम चर वसु राजा श्रेष्ठ बताया गया है। लक्ष्मी है, जिसके साथ यह वैकुंठलोक में निवास करता ૮૮૩
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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